आज से मुम्बई में तीन दिन की ऑटो-रिक्षावालों की हड़ताल चालू हो गई है। आम लोगों को इस हड़ताल से काफ़ी तक्लीफ़ है.. हर हड़ताल में होती ही है। मामला नए इलेक्ट्रानिक मीटर लगाने का है.. सरकार उन्हे ठेल रही है पर रिक्षेवाले तैयार नहीं हैं। सीधे-सीधे कुछ हज़ार का ज़बरदस्ती का खरचा है- कोई क्यों उठाना चाहेगा- बात समझ में आती है। आप ही को अगर सरकार बोले कि सब लोग अपनी कार-मोबाइक के अच्छे-खासे टायर बदलो तो आप भी शायद हड़ताल कर बैठें।
मगर यहाँ एक दूसरी दलील भी प्रच्छन्न है- वो ये कि मेकेनिकल मीटर के साथ खेल किया जा सकता है पर इलेक्ट्रानिक मीटर के साथ नहीं। ह्म्म.. जनता इस तर्क को निगलने को तैयार है क्योंकि सब लोग जानते हैं कि ये रिक्षेवाले साले बड़े लूटते हैं।
इसमें दो बाते हैं। एक तो यह कि ये सोच लेना कि इलेक्ट्रानिक मीटर के साथ छेड़छाड़ नहीं हो सकेगी थोड़ा बचकाना है और दूसरी यह कि इसमें सारे रिक्षेवालों को बेईमान और चोर कहा जा रहा है। आप कहेंगे कि वो तो साले हैं ही। चलिए मान लिया कि सब रिक्षे वाले बेईमान हैं। देश के बहुत सारे निम्न-मध्यम-वर्गीय लोगों की तरह उनकी भी आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया है। और आमदनी क्या.. महीने कुल मिलाकर छै-सात हजार रुपैया.. चोरी-बेईमानी करके आम आदमी को लूटने के बाद?
क्या कहना! अब इस तस्वीर के एक और पहलू पर भी विचार तो कीजिए। आप को क्या लगता है कि सरकार आम आदमी की इस रोज़-रोज़ की लूट को रोकने के लिए ये प्रगतिशील क़दम उठा रही है। क्या आप के देश की सत्ता पर आसीन लोग क्या सचमुच ऐसे नेक मक़सदों से प्रेरित होते हैं? वो किस तरह से काम करते हैं क्या आप नहीं जानते?
अच्छा आप बताइये कि ये जो इलेक्ट्रानिक मीटर लगाए जा रहे हैं वो बाज़ार में कहीं से भी तमाम मॉडलों में से चुनकर कोई भी के लगाया जा सकेगा? या कोई एक खास कम्पनी का खास मॉडल ही इस सम्मान का अधिकारी होगा? आप जानते हैं ऐसे में एक खास स्टैन्डर्ड मॉडल ही होता है। और अगर ये नया मीटर लागू हो गया तो इस खास कम्पनी की तो लॉटरी निकल आएगी.. नहीं?
और इसमें कम्पनी के मालिकों, ट्रान्सपोर्ट मंत्री, आर.टी.ओ. के अधिकारियों के बीच किसी साँठ-गाँठ होने की या कम्पनी का फ़ायदा कराने के लिए इस नीति को लागू करने के किसी षड्यंत्र होने का तो दूर-दूर तक कोई सवाल ही नहीं उठता क्योंकि चोर और बेईमान तो सिर्फ़ रिक्षेवाले, रेलवे टी.टी. और ट्रैफ़िक हवलदार होते हैं। इसलिए इसमें फ़ायदा अगर किसी का है तो सिर्फ़ आम जनता का.. !!??
.. मैं सोचने लगता हूँ कि दिल्ली में भी तो इलेक्ट्रानिक मीटर लगाया गया पर सुनते हैं वहाँ अब रिक्षेवालों ने मीटर से जाना ही बंद कर दिया। और अगर मान लीजिये कि नए मीटर लागू हो गए और उस से रिक्षेवालों की बेईमानी के चलते तीस-चालीस प्रतिशत किराए सीधे कम हो गए.. तो क्या उसके बाद रिक्षेवाले किराए में वृद्धि के लिए हड़ताल नहीं करेंगे? या आप ये सोचते हैं कि बैठते हैं तो बैठें.. पर उनकी सुनी नहीं जानी चाहिये क्योंकि उन्होने बेईमानी की और उन्हे अपने इस पाप का फल ऐसे ही मिलना चाहिए?
क्या हमें ऐसा सोचने का हक़ है? खास तौर पर उस देश में जहाँ लोग बैठे-बैठे चार-पाँच सौ करोड़ निगल जाते हैं और न डकार लेते हैं न पादते हैं। उसी देश में जहाँ किसान दस-बीस हज़ार के कर्ज़ का बोझ सहन नहीं कर पाते और पेड़ से लटक जाते हैं।
10 टिप्पणियां:
इलेक्ट्रॉनिक मीटर विद्युत मंडल में भी लगाए गए हैं. इनको ठेलने के पीछे लॉबी तो है ही - इलेक्ट्रॉनिक मीटर धूल से भी सस्ते होते हैं बनाने में और खरीदने में सोने से भी मंहगे. जाहिर है, लोग इसे पुश करने के पीछे लगे रहते हैं.
इन्हें टैम्पर करना आसान है. बॉडी टैम्पर प्रूफ होने के बावजूद जुगाड़ निकाल लेते हैं लोग. और साधारण मीटर में तो गरारी में फेर बदल करने के लिए खर्चा भी लगता है. इलेक्ट्रॉनिक मीटरों मे दस पैसे के एक रजिस्टेंस से काम बन जाता है.
दर्जनों केस विद्युत मंडल ने न्यायालय में विद्युत इलेक्ट्रॉनिक मीटरों में छेड़खानी के दर्ज कर रखे हैं - मगर फ़ायदा कुछ नहीं होता है. पतली गली सबके पास होता है :)
हमेशा की तरह बेहतरीन लताड़ लगाई आपने, हमारे मप्र में भी बिजली के लिये इलेक्ट्रानिक मीटर जबरन लगाये गये और उन मीटरों की सप्लाई का आर्डर कांग्रेस के एक बड़े नेता के भाई को मिला था… मीटर का किराया भी भरो और मीटर लगवाने का पैसा भी भरो… और एक सांसद को लाखों यूनिट बिजली मुफ़्त, क्योंकि उसे हमने यह हक दिया है कि वह हमारी छाती पर मूंग दले…
एक घटना याद आ गया.. मुझे यहां चेन्नई में एक पटना का आटो रिक्सा ड्राईवर मिल गया.. उसने बताया कि वो एक आई टी प्रोफ़ेसनल है मगर यहां जब आया था तब वो एक महीने में 7000-8000 कमाता था.. फिर उसकी दोस्ती एक आटो ड्राईवर से हुई उसी ने उसे इस धंधे में उतारा और वो अभी एक महीने में 15000 से 20000 तक बचाता है.. और वो अपने धंधे से खुश है, इसे छोड़ना नहीं चाहता है.. :)
आज का उपदेश यही है ,कि दबाये उसे जो दब जाये,पेट्रोल पंप वाले कई बार पकडे जाते है गलत मापने के कारण ,लेकिन अगर उनके पास माप विभाग वाले पहुचते है तो वो भी हडताल पर चले जाते है,अभी परसो पैतीस लीटर की टंकी मे बावन लीटर तेल डाल दिया था बेचारो ने ,दस लीटर उसमे पहले से की था,लिहाजा मारपिटाई हुई,सडक बंद हुई (खरीदने वाला बंदा पास के गाव का था) और सारे पेट्रोल पंप वाले हडताल पर चले गये ,अगले दिन से फ़िर वही चालू, :)
सॉरी, मैं यहां सिर्फ़ पादने आया हूं.. ऐसे नीति-नियमन के विरुद्ध.. और कृपया नोट किया जाये महकौवा पाद है..
इलेक्ट्रानिक मीटर कलकत्ते में टैक्सियों में भी लगाया गया. लेकिन कहते हैं इनमें छेड़खानी करना और सरल है. इस तरह की योजना के पीछे लॉबी काम तो करती ही है. ऐसी समस्याओं के लिए सारे पक्ष दोषी हैं.
सब तरह तरह के हथकंडे हैं पैसा कमाने के-आज यह तो कल वह. आम जनता-बस दर्शक बने रहो.
@Raviratlami said...
पतली गली सबके पास होता है :)
@PD said...
एक घटना याद आ गया..
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लो दो मीटर तो पहले ही खराब हो गये जी ।
जा रही हूँ ,प्रमोद जी ने साँस लेना दूभर कर दिया है आपके यहाँ ......!
क्या बात है अभय जी पहले हम जब भी आप के ब्लोग पर आते थे तो एकदम भारी भरकम विषयों पर पोस्ट होती थी, कई बार बिना कमेंटियाए लौट जाते थे। पर अब तो पिछली कुछ पोस्ट्स से हम देख रहे हैं एकदम हल्के फ़ुल्के टॉपिक्…समय की कमी के कारण या आज कल पठन कम हो रहा है…:)
आदमी बेईमान हो तो कुछ ठीक नही हो सकता.
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