मेरी पिछली पोस्ट किसे राहत दे रहा है ये न्याय पर एक अफ़्जल हुसेन नाम के एक मित्र की प्रतिक्रिया आई..
afjal husain ने कहा...
तिवारी जी
सिर्फ तिवारी होने के नाते अगर आपकी तुलना मैं अमर मणि त्रिपाठी या हरिशंकर तिवारी या किसी और ऐसे व्यक्ति से करूं तो क्या आप पसंद करेंगे? क्या सिर्फ इसलिए सारे तिवारियों के सारे जघन्य अपराध माफ़ कर दिए जाने चाहिए कि आप तिवारी हैं? नहीं न । असल में डाक्टर हनीफ़ और मेमन या या अफ्ज़ाल गुरू को एक ही पल्दे पर तुलना ऎसी ही गलती है । यह एकदम ऐसी ही गलती होगी जैसे मैं यह कहूं कि चूंकि मेरा नम अफजल है और मैं निरपराध हूँ, इसलिए अफजल नाम के सरे लोगों या मुसलमानों को बेगुनाह माना जाए और उन्हें माफ़ कर दिया जाए । कहॉ तो अफजल गुरू को फांसी न होने के लिए सर्कार की खिंचाई होनी चाहिए और कहॉ आप उल्टे उसकी तरफदारी कर रहे हैं । मैं नहीं जानता कि आप किस पार्टी के झंडाबरदार हैं, लेकिन इतना जानता हूँ कि हिंदुस्तान में मुसलामानों की जो दुर्गति है उसके बडे कारण आप जैसे धर्म निरापेक्षतावादी ही हैं । मुसलामानों पर यह झूठी हमदर्दी अगर आप न जटाएं और अफजल गुरू और मेमन जैसों को फांसी पर चढ़ने ही दें तो मुसलामानों पर आपका बड़ा करम होगा । हनीफ़ पर आयी मुसीबत कि वजह कुछ और नहीं अफजल और मेमन जैसे शैतान ही हैं । और शैतान सिर्फ शैतान होता है, उसे हिंदु या मुस्लमान के तौर पर न देखें तो बेहतर होगा ।
अफजल हुसैन
भाई अफ़जल हुसेन साहब .. शायद मैं अपनी बात पूरी सफ़ाई से रख नहीं पाया.. मेरा इरादा कतई अफ़ज़ल गुरु या याक़ूब मेमन को बेगुनाह साबित करने का नहीं है.. मैंने तो लिखा है कि याक़ूब मेमन कितना गुनहगार है मैं नहीं जानता.. अफ़ज़ल गुरु के बारे में तो मैं कह ही रहा हूँ कि वह भारतीय लोकतंत्र के प्रतीक संसद भवन पर आंतकवादी हमले की साज़िश रचने का दोषी है.. सवाल तो मैं उन्हे दी गई सजा पर उठा रहा हूँ..
और ऑस्ट्रेलिया में आतंकवादियों की सहायता करने के आरोप में गिरफ़्तार डॉक्टर हनीफ़ भी एक मुसलमान हैं और उनका नाम भी मुस्लिम आतंकवाद से जुड़ा जैसे याक़ूब का और अफ़ज़ल गुरु का.. बस समानता यहीं तक थी.. बाकी हनीफ़ निहायत पाकदामन हैं .. उनका नाम इन दोनों के साथ रखने के लिए मैं माफ़ी चाहता हूँ.. मगर मैंने ऐसा किया सिर्फ़ अपनी न्याय व्यवस्था पर ध्यान आकर्षण करने के लिए.. ऑस्ट्रेलियाई न्याय व्यवस्था के सामने अपनी न्याय व्यवस्था पर शर्मसार होते हुए..
मैं अपने लोगों पर शर्मसार हूँ जो इस न्याय का दोहरापन देख के भी खामोश बने रहते हैं.. और नाराज़ हूँ इस शासन के न्याय तंत्र से जो न्याय करते समय अलग अलग दृष्टिकोण अपनाता है..और कुछ अपराधियों के साथ रहम दिली, उपेक्षा और कुछ मामलों में बचाव के सक्रिय हस्तक्षेप तक चला जाता है.. भाई मेरे.. जब कि लगातार मुसलमान मुजरिमों के साथ इस तरह की सख्ती बरती जा रही हो और न्याय की कठोरता याद दिलाई जा रही हो.. तो समझदार आदमी को चाहिये कि गौर से देखे कि मामला क्या है..? और इतना मुक्त भी न हो जाए कि गैर साम्प्रदायिक होने के नाम पर समाज में व्यवहार की जा रही सक्रिय साम्प्रदायिकता को पहचानने की नज़र भी खो बैठे..
पते वगैरह की कोई उम्मीद आप से रखना तो व्यर्थ ही होगा अफ़्जल भाई.. मगर आखिर में एक छोटी सी बात आप को बताना चाहूँगा कि अफ़ज़ल के हिज्जो में 'ज' नही' 'ज़' का का इस्तेमाल होता है.. मायने ये कि आपने अपने नाम को यूँ लिखा है.. afjal.. जबकि होना चाहिये.. afzal.. आगे ख्याल रखियेगा.. कि जब मुसलमानों का नाम ओढ़ कर कोई हिन्दूवादी तर्क प्रस्तुत करना हो तो ऐसी ग़लती न हो..
5 टिप्पणियां:
अभय बहुत अच्छे आप से अब मुझे यही उम्मीदे थी..:)सही कहा है आपने..
अफ़जल अलबल न बतियाना..
खुल न जाये तेरा परवाना..
लोग लगेंगे बैंड बजाना..
मुश्किल हो जायेगा नाम छुपाना
रोता फिरेगा ऐसा क्या सताना..
नाम बदल-सही करके आना..
हद है फिर-फिर वही क़िस्सा पुराना.
तिवारी जी फारसी के विद्वान हैं, मुसलमान बनकर आए रंगे सियार को फ़ौरन धर दबोचा. सही है, मज़ा आया, पूरी दलील देने के बाद भिंगोकर मारा आख़िर में. मैं तो पढ़ते ही समझ गया कि कोई बहुरूपिया है.
मुझे तो पढ़ते ही समझ में आ गया था कि भाई के साथ कुछ समस्या है.
वैसे मुस्लमान होने का ये कतई मतलब नहीं कि उसे नुक़्ते की भी तमीज़ हो....और ना ही ये मतलब है कि वह आर.एस.एस और जमाते-ईस्लामी जैसी विचार धारा का विरोधी हो...
आर.एस.एस. , जमाते-ईस्लामी और वर्तमान न्यूज़ मीडीया लोगों के दीमाग़ पर करती है.हो सकता है कि इसका दीमाग़ भी वैसा बन गया होगा...कोई ताज्जुब की बात नहीं है.
भाई ऐसे लोगों को जायके की तरह लिया करो।
मन निर्मल रहेगा।
सोचो उस पर क्या बीत रही होगी धर्म भी बगला और पकड़ा भी गया। छलिया कामयाब नहीं हो पाया।
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