शुक्रवार, 27 जुलाई 2007

बड़े काम की गाली !

पिछले दिनो अपनी हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में भाषा की शालीनता और उस से जुड़े हुए सवालों पर काफ़ी चिन्ताएं की जाती रहीं.. समाज में शब्दों की उपयोगिता पर समाज के किसी वर्ग का कभी कोई वर्चस्व नहीं रहा.. कोशिशें की जाती रहीं.. आगे भी की जायेंगी.. लेकिन समाज किस शब्द को कैसे इस्तेमाल करेगा, ये तय करना किसी के लिए भी असम्भव है.. ये एक सामूहिक प्रक्रिया होती है.. जिस पर किसी का भी नियंत्रण नहीं होता है.. कब हगना या झाड़ा शब्द से लिपटी गन्दगी से बचने के लिए टट्टी जैसा शब्द श्लील हो जायेगा.. और कब टट्टी अश्लील और पॉटी श्लील.. कोई नहीं कह सकता..

ऐसा ही मामला शब्दों के रचनात्मक उपयोग का है.. जननांगो से जुड़े हुए शब्दों का उपयोग क्यों इतनी उदारता से तमाम दूसरी भावनाएं व्यक्त करने में किया जाता है.. ये तो मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्री ही बतायेंगे.. जो भी इसका कारण हो, सार्वभौमिक होगा.. क्योंकि लगभग सभी संस्कृतियों में ये आम चलन है..

फ़िलहाल यहाँ पर स्त्री-पुरुष समागम की क्रिया के लिए प्रयोग किए जाने वाले अश्लील अंग्रेज़ी शब्द के बारे में मुझे एक ऑडियो क्लिप प्राप्त हुई है.. जिसमें ओशो (आचार्य रजनीश) इस शब्द की विवेचना कर रहे हैं .. और उनके शिष्य आनन्द में हँस-हँस कर लोट-पोट हो रहे हैं.. आप भी सुनिये.. हो सकता है .. आप को भी आनन्द आये.. और यदि आनन्द के बजाय आप की भावनाओं को चोट पहुँचती है तो खुल कर ओशो को गलियाएं..


जिन्होने ओशो को सुना है.. वे ओशो के उच्चारण से परिचित होंगे.. नए लोग चौंके नहीं..
दूसरी बात ऑडियो क्लिप प्रवचन के बीच अचानक शुरु होती है.. उसके लिए खेद है..








8 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

:)

अनामदास ने कहा…

A generic abuse that is used harmlessly in English. It simply makes your sentence affirmative whatever your mood is. English is a Fu...ng language...you can not translate it in Hindi. But the best thing about it that it saves all the Moms and Sisters from being Fu...d

बेनामी ने कहा…

अभय भाई, आपके साईड बार में जो बड़ बॉक्स हैं उनमें छोटे छोट डब्बों के सिवाय कुछ नही दिखता। बाकि पेज में हिन्दी मस्त दिखती है।

Arun Arora ने कहा…

मस्त्...:)

Yunus Khan ने कहा…

अभय भाई दो बातें इसे सुनकर समझ में आईं । एक तो ये कि ओशो ने साबित कर दिया कि वे जबलपुरिया हैं, जबलपुरिया लोग इन शब्‍दों पर थीसिस भी लिख सकते हैं । दूसरे अगर आज ओशो होते तो वो स्‍टैन्‍ड अप कॉमेडी का नया संस्‍करण लाते, स्‍टैन्‍ड अप कॉमेडी और आर्ट आफ लिविंग का कम्‍प्‍लीट पैकेज । हंसते हंसते कैसे जियें । बेस्‍टसेलर हो जाते वो ।

चंद्रभूषण ने कहा…

मेरे कंप्यूटर में ऑडियो सुविधा नहीं है। क्या ओशो की टिप्पणी टेक्स्ट फॉर्म में भी मौजूद है?

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

इस किलिप को मै भी प्रेषित करने की सोच रहा था।लेकिन शंकिंत था कि कही कोई चिट्ठाकार या नारद ऐतराज ना करें। आप ने किया बहुत सही किया। अंगेजी में गाली की अच्छी व्याख्या की है।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

दो साल पहले सुना था यह !

गज़ब है भैय्या यह तो!!

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