शुक्रवार, 13 जुलाई 2007

बजरबट्टू यानी चश्मे बद दूर

शब्दों के सफ़र को वापस तय करने निकले अजित वडनेरकर जी रोज़ एक दो शब्दों के सफ़र की चर्चा कर रहे हैं.. आज उन्होने बेटा और बजरबट्टू की चर्चा की है.. मैं उनके काम का मुरीद हूँ लेकिन आज मैं उनसे सहमत नहीं हो पा रहा हूँ.. मेरा ख्याल है कि वटु से बेटा तो ठीक है.. मगर बजरबट्टू का जो उन्होने अर्थ और व्युत्पत्ति दी है वो मुझे ठीक नहीं लग रही है.. उनका कहना है कि बजरबट्टू का अर्थ मूर्ख और उसकी व्युत्पत्ति वज्र और वटुः से है..

मैंने पाया है कि बजरबट्टू शब्द का लोकप्रिय प्रयोग बुरी नज़र से बचाने वाले एक पत्थर के अर्थ के बतौर है.. रामशंकर शुक्ल 'रसाल' के भाषा शब्द कोष में भी बजरबट्टू का अर्थ है- एक पेड़ का बीज जिसे दृष्टि दोष से बचाने के लिए बच्चों को पहनाते हैं.. बजर तो साफ़ साफ़ वज्र का तद्भव है.. मगर बट्टू क्या है..? क्या वट? क्या वटन? या वटक?

मुझे तो लगता है कि यहाँ वटक ही सही है क्योंकि वटक मायने है छोटा पत्थर का ढेला..उसकी उत्पत्ति वट धातु से ही है जिसका अर्थ है.. बाँटना.. विभाजित करना.. ध्यान दीजिये.. बाँटना वट से ही आ रहा है.. तो वटक बना वो बाँट..जो चीज़ों को तौलने यानी विभाजित करने में काम आये.. जिसके लिए छोटे पत्थर के ढेलों का ही उपयोग होता रहा होगा.. और कालान्तर में हर छोटा पत्थर वटक कहलाया जाने लगा होगा.. जिसे आज हम बटा या बटिया कहते हैं.. ध्यान दें.. एक बटा दो.. और दो बटा तीन..वाला बटा भी यहीं से उपज रहा है.. तो आपका बजरबट्टू वह छोटा पत्थर है जो नज़र बचाने के काम आता है..

मगर रसाल का शब्दकोष कह रहा है कि वह एक बीज है.. अब देखिये नेट पर क्या क्या सूचना उपलब्ध है..


सूचना १) एक प्रकार के पाम या ताड़ के पेड़ का नाम भी बजर बट्टू है.. देखिये यहाँ.. जिसके पत्तो से लोग अपने झोपड़ों की छत बनाते हैं.. और पेड़ में ३० से ८० साल बाद एक ही बार हज़ारों की संख्या में फल आते हैं.. और उसके बाद पेड़ मर जाता है.. ये फल ३-४ सेंटीमीटर बड़े होते हैं और इसके अन्दर एक ही बीज होता है..

सूचना २) इस बीज का इस्तेमाल कुछ जनजातियां गले का हार बनाने में करती हैं.. देखिये यहाँ..

सूचना ३) बच्चों के गले में पहनाया जाने वाला छत्तीसगढ़ का एक महत्वपूर्ण आभूषण ‘बजरबट्टू’ है.. देखिये यहाँ..

और फिर आखिर में रसाल जी के शब्दकोष का अर्थ पुनः याद किया जाय कि बजरबट्टू, बच्चों को नज़र लगने से बचाने का एक पेड़ का बीज है..

रह गई बात पत्थर और बीज की.. तो हर छोटे पत्थर को वटक या बटा कहना और हर पत्थरनुमा बीज को भी बटा कह देना शब्द की यात्रा के पड़ाव माने जा सकते हैं..

तो मित्र अजित जी.. मेरा ख्याल है कि बजरबट्टू का बट्टू.. वटुः से नहीं बल्कि वटक से आ रहा है..

20 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

वाह!

अजित वडनेरकर ने कहा…

अभय जी आपकी बात भी एकदम सही है। बजरबट्टू का यह अर्थ भी व्यापक है। हमारे यहां इसका एक रूप नजरबट्टू भी प्रचलित है। शब्दकोशों में तो साफतौर पर बजरबट्टू को नजर से बचाने वाली माला या टोटका बताया गया है। मगर बजरबट्टू का भोंदू या मूर्ख के अर्थ में जो प्रयोग हम बचपन से से सुनते आए हैं उसकी उत्पत्ति पं भोलानाथ तिवारी के अनुसार वज्र और बटुक से है। सो इस रूप में बजरबट्टू का मूर्ख अर्थ सिद्ध होता है। बजरबट्टू के मूर्ख अर्थ की यह व्युत्पत्ति मुझे सही जान पड़ती है। टोटके वाले रूप पर कोई शंका वैसे भी नहीं हैं। आप जो जानकारियां निकालकर लाए हैं वे खरी और उपयोगी हैं। मालवा-राजस्थान क्षेत्र में खाई जाने वाली दाल बाटी, बाटी-चूरमा, में जो बाटी है वह भी इसी शब्द श्रंखला (यानी वटक वाली )से ही जुड़ती है। अच्छा लगा।

बोधिसत्व ने कहा…

अभय भाई अच्छा विमर्श है....बाट या बट के कुछ अन्य संदर्भ हैं...कविता या साहित्य में
1- बाट तकत सगरी रैन सिरानी,
2-बट माने भी रास्ता ही होता है,
3-बटमार वे थे रो राह चलते लोगों को लूटा करते थे
4- रस्सी जल जाए, पर बट(बल) ना जाए । यहाँ यह भी देखना होगा कि बट कैसे बल हो गया।
5-रस्सी बटी जाती है, यानी ऐंठन बराबर बट,
6-गणित में बटा पद प्रयोग होता है, एक बटा दो, दो बटे चार।मुझे तो लगता है कि इसी बटा से बटवारा भी है।
7-एक और शब्द है बटपरा, इसका अर्थ भी डाकू होता है,
8-बट के स-पास अपनी बटलोई भी है, अरे वही देगची,
9- और बचमारों सो बचाने वाला भी तो कोई होगा, तो वह है बटवार,
10- पर अपने लेखक बटोही या बटरोही का मूल वर्त्मारोही से है। वर्त्म का अर्थ है-मार्ग, किनारा,तरीका या धार। वर्म पर चलनावाला यानी वर्तमारोही।
वर्त्मारोही- वट्टरोही-वट्टवोही-बटोही
तो भाई बट ने बहुत सारे शव्दों में बट्टा लगाया है,
पर बट्टू तो बजरबट्टू ही है,
वह रवींद्रनाथ टैगोर का बजरा तो होने वाला नहीं। हाँ पत्थर के दानों को हम बजरी कहते हैं।कभी -कभी बरफ का ओला भी बजरी कहा जाता है।
पर कितना बजा है और कितना बज रहा है में भी एक बज है।
आसमानी बिजली को बजरागि या बज्र भी कहते हैं।
त्रिलोचन की चंपा ने तो कलकत्ते पर बजर ही गिरा दिया था।
भाई मैं बजा फरमा रहा हूँ या आप कह सकते हैं कि मैं शव्दों के अर्थ गाने वाला कौन बजवैया हूँ।

काकेश ने कहा…

आप दोनों विद्वानों के परस्पर वार्तालाप से अभिभूत हो गये हम जैसे बजरबट्टू।

Srijan Shilpi ने कहा…

भई वाह! बहुत अच्छा शब्दार्थ संधान चल रहा है यहां। लगे रहिए। हम सब का भला हो रहा है।

अजित वडनेरकर ने कहा…

बहुत खूब..
बोधिसत्व जी ने पूरा बटुआ ही खोल दिया। मज़ा आ गया। इसी वर्त्म या वर्त्मन् से मराठी का वाट (बाट, राह, रास्ता) भी बना है। और फिर मुंबइया मुहावरा..वाट लगना, जिसकी शोहरत में मुन्नाभाई ने और इजाफा कर दिया है, भी इसी वर्त्म या आधार से निकला होगा।

बेनामी ने कहा…

भोलानाथजी तिवारी के बताए माएने पता थे। बोधिसत्त्वजी के बताये 'राह तकने' वाले अर्थ में बाट जोहने और गुजराती में भी 'वाट जोऊँ छूँ' का चलन है।भोजपुरी में मूर्ख के लिए सिर्फ़ बज्र कहना भी पर्याप्त है।

इरफ़ान ने कहा…

क्या आप जानते हैं कि वेल इक्विप्ड का अर्थ किसी शब्द कोश में कूप सज्जित और पल्स क्रॉपिंग का अर्थ कंपित कृषि है?

चंद्रभूषण ने कहा…

पता नहीं भाई, हम लोग तो बचपन में बजरबट्टू भारी पेंदे वाले उस बबुआ टाइप खिलौने को कहते थे, जिसके सिर पर घूंसे-घूंसे मारो तो वह दुबारा उठकर ज्यों का त्यों खड़ा हो जाता है। इस शब्द के बाकी- नजर उतारने वाले, गहने वाले या वज्रमूर्ख वाले अर्थों से तो मेरा कोई परिचय ही नहीं था।

अभय तिवारी ने कहा…

गुजराती का वाट वाट का अर्थ है दीपक की बाती या पटाखे की बाती.. वाट लगाने का अर्थ है.. पटाखे में आग लगा कर उसमें विस्फोट कर देना.. यह वाट, वर्तिः से निकला है..जिसका अर्थ है दीपक की बाती.. और वर्तिः, वृत धातु निकला है..जो बनता है वृत्त..
दीपक की बाती लिपटी हुई गोल बनाए जाने परिपाटी रही है.. फिर इसी वृत से वर्त्मन बनता है..यानी वर्तुलाकार रास्ता, रेखा,पगडण्डी.. यही वर्त्मन, बाट में तब्दील हो जाता है..

काकेश ने कहा…

कुमाउंनी में भी एक शब्द होता है "बाट" इसका उच्चारण थोड़ा अलग है ..लेकिन अर्थ होता है रास्ता.इसी पर एक लोकगीत भी है "यो बाटो का जानो होला,सुरा सुरा देवी को मन्दीरा" ..ये रास्ता काहं जाता...सीधा सीधा देवी के मन्दिर की ओर ...

बोधिसत्व ने कहा…

बजर बट्टू के बहाने कुछ और बक्क

भाई
1- बांटा पूत परोसी नाता, तो सुना ही होगा यानी
बंटवारे के बाद बेटे से भी पड़ोसियों जैसे संबंध हो जाते हैं।
2-बाँट खाओ या साँट खाओ
यानि किसी वस्तु को मिल बाँट कर खाना चाहिए
3-बाँट खाए, राजा कहलाए।
4- दादर धुनि चहुँ दिसा सुहाई
बेद पढ़इ जनु बटु समुदाई - (मानस )
5-बटु वेष पेषन पेम पन ब्रत नेम ससि-सेखर गये (मानस)
6- बटु बिस्वास अचल निज धरमा (मानस-1-2-6)
7- बटोही के लिए
देखु कोऊ परम सुंदर सखि बटोही (गीतावली-2-18)
8-बटोरने के लिए
सुचि सुंदर सालि सकेलि सुवारि कै बीज बटोरत ऊसर को ( कवितावली7-103)

और सिल के साथ बट्टा भी होता है। बड़े काम की चीज,चाहे भंगड़ हो गृहस्थिन सब के काम आता है,कहीं -कहीं इसे बटिया या प्यार से लोढ़ा पुकारते हैं , लिख लोढ़ा, पढ़ पत्थर वाला । गृह कलह में विरोधियों का बंटाधार करता आया है।
और ध्यान दें अगर आप का बटुआ खाली है तो समझ ले आप की बदहाली है। इसलिए संदर्भ बजर का हो या बट्टू का पर आप अपने बटुए को न भूलें। नहीं तो आप के हाथ से साबुन की बट्टी लेकर कोई और अपनी किस्मत चमकाएगा। फिर आप को बटुर(सिकुड़)कर रहना पड़ेगा और इसमें ठाकुर जी का बटोर( हजारी प्रसाद द्विवेदी) करने से भी कोई फायदा नहीं होगा। और आप धूल बटोरने में उम्र बिता देंगे । अच्छा हो कि यह बट्टा बन कर किसी का भाव ना गिरा दे जैसे कि आज-कल कइयों का गिरा है।
बट्टा माने कलंक भी होता है और धब्बा भी।
बट्ट के माने गेंद भी होती है, खेले पर ऐसा भी नहीं कि बटाक( उंची जगह पर दूसरी टीम हो और आप गेहूँ बटाने( पिसाने) चले जाएँ । वैसे काम यह भी बुरा नहीं है।
और बटोही के आस-पास ही खड़ा है बटाऊ, कहीं कहा गया है-
लोग बटाऊ चलि गये हम-तुम रहे निदान,
और अपने अमर्यादित भाखा के अगुआ कबीर फर्माते हैं-
जन कबीर बटाऊआ जिन मारग लियो जाइ।
एक बात और बजर बट्टू के साथ चलते-चलते धूप लगे तो संस्कृत के पुराने जटाओं और जड़ों वाले वट वृक्ष के नीचे छहां लेना । वह पूर्वज अपना पूत समझ कर तुमसे तो किराया नहीं ही मांगेगा। और नेक सलाह के लिए मुझे याद करना। पर अक्षय वट तो इलाहाबाद के किले में छूट गया।
तेहि गिरि पर बट विटप बिसाला (मानस-1-106-1)
गप्प में बजर बट्टू को मैंने कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया। तुम्हारे किए में अपना हिस्सा बटाने आ गया। हो गई ना बंदर बाँट।
पर बाबा तुलसी कहते हैं-
राजीवलोचन राम चले तजि बाप को राज बटाऊ की नाई.

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

बजरबट्टू शब्द का प्रयोग भोजपुरी इलाके में मूर्ख के होता तो जरूर है, लेकिन बज्र और बटु से इसकी व्युत्पती का मामला इतना सही नहीं लगता. असल में बोलियों के शब्दों में जो गहरी अभिव्यंजना है उसके मूल में कारण यही है कि उसे शब्द गढ़ने या अभिव्यक्ति के लिए शास्त्र के नियमों की बहुत जरूरत नहीं होती. वह व्याकरण के दबाव में नहीं, अनुभूति के दबाव में अपनी बात कहता है और ऐसे ही अपने लिए शब्द भी चुनता है. कई बात मूल से जोड़कर देखने पर उनके प्रचलित अर्थ के तर्क समझ में नहीं आते. अब सोचिए भला 'संभव' शब्द का अर्थ कहीँ से 'आशंका' समझ में आता है? लेकिन है. - महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, कुशीनगर आदि जिलों में इस शब्द का प्रयोग बहुतायत से इस अर्थ में होता है. वैसे आपने, बोधिसत्व ने, चंद्रभूषण ने और अजित ने भी जो अर्थ बताए हैं; मैं इन सभी अर्थों में बजरबट्टू शब्द का प्रयोग देख चुका हूँ. यह अच्छा, और खास तौर अर्थों वाला सार्थक विमर्श शुरू करने के लिए बधाई स्वीकारें.

azdak ने कहा…

सही है, भाई लोगो.. बीच-बीच में आप मतभेद खोजते.. और पहचानते रहें.. और फिर हमारे फ़ायदे को ऐसी जुगलबंदियां गाते रहें.. कि आत्‍मा धन्‍य, प्रसन्‍न होती रहे..
और बोधि, आपो ऐसी छटा गिराते रहो. लड़ि‍याते रहो. सही है.

अभय तिवारी ने कहा…

बोधि भाई आप ने बटुआ और बट्टा लग जाने की अच्छी याद दिलाई.. दोनों ही वृत से निकल रहे हैं.. वर्तुल से बटुआ.. और वार्त्त से बट्टा..
आप का ज्ञान इतना सघन है कि आप को स्वतंत्र रूप से इस दिशा में कोछ ठोस काम करना चाहिये..

बेनामी ने कहा…

अजित का, आपका और बोधिसत्व जी का शब्द-विमर्श देखा , पढा और आनंद उठाया . खासा लाभान्वित हुआ . इधर जब शब्दों से अर्थ के देवता कूच कर रहे हैं,शब्द की जड़ों की ओर जाना जरूरी है . वरना कारतूसों के खाली खोल भर बचेंगे , तत्व-तत्व सब चला जाएगा .

Udan Tashtari ने कहा…

काफी आनन्दित और लाभांवित करता सधा हुआ आलेख, बधाई और आभार.

अनामदास ने कहा…

सारे वाकपटु बट-मार हिंदी के बट की चर्चा में लगे हैं, अँगरेज़ी वाले butt को भूल गए हैं. अँगरेज़ी वाले Butt का अपना अलग रंग है, मेरे एक कश्मीरी दोस्त परेशान रहते हैं, अँगरेज़ ख़ासी तफ़रीह लेते हैं उनके कुलनाम का. बंदूक की Butt हो या सिगरेट की या फिर मनुष्य की, मतलब है नीचे वाला हिस्सा जिससे Buttock बना है, buttress भी जिसका अर्थ है टेक, सहारा या पुश्ता. Butt का प्रयोग मारने-धकेलने के अर्थ में भी होता है, ज़िदान की head butting तो याद है न?

हिंदी वाले बट में कुछ बाक़ी नहीं छोड़ा आप सब भाइयों ने, लेकिन दिल नहीं माना इसलिए सोचा अँगरेज़ी वाला ही सही.

बेनामी ने कहा…

बजरबट्टू के बारे में इतना विस्तार से बताने के लिये धन्यवाद है जी, काफी मेहनत और सोच विचार किया है आपने।

बोधिसत्व ने कहा…

ऐसे लेखन से क्या हासिल होगा, बोधिसत्व हों या आप। सब इलाहाबादी लंतरानी है, बस
ऐसे लड़ियाने से भाषा का क्या बिगड़ेगा, कुछ तो नहीं।
कुछ सार्थक करो।

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