इस नगीने का नाम है अजित वडनेरकर.. और इनके ब्लॉग का नाम है शब्दों का सफ़र.. यूं तो भोपाल में एक पत्रकार की हैसियत से अपनी सामाजिक भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं अजित जी.. मगर मेरी दृष्टि में उस से भी कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण.. वे हिन्दी भाषा के संसार में एक मौलिक काम कर रहे हैं.. शब्दों को उनके मूल में जाकर जाँच परख रहे हैं.. देश काल और विभिन्न समाजों में उनकी यात्रा को खोल रहे हैं.. हमारे हितार्थ.. हिन्दी में इस प्रकार के काम विरल हैं..
रामचरितमानस छाप कर हिन्दी की सेवा पर सीना ठोंकने वाले आप को बहुत मिलेंगे मगर ऐसे नगीने दुर्लभ हैं.. पतनशील प्रकाशकों और साहित्यिक मठाधीशों के हिन्दी के भ्रष्ट भाषा संसार में ऐसी प्रतिभाएं गुमनामी की धुंध से बाहर नहीं आ पाती कभी.. इन्टरनेट की नई तकनीकों ने हमें वो आज़ादी दी है कि आज वैयक्तिक अभिव्यक्ति के लिए किसी की खुशामद की सीढ़ियों पर सर तोड़ने की ज़रूरत नहीं.. मगर अठन्नी के संतरे में बहकने वालो की ज़मीन से उगे लोग जिनकी पुरानी पीढ़ियां चपरासी के पद मद में चूर होती रहीं.. यहाँ भी सत्तामद में रो गा रहे हैं.. उन्हे अपने रुदन में लोटने दीजिये.. आइये आनन्द लीजिये अजित जी के शब्दों के स्वाद का..
संस्कृत में एक क्रिया है सृ जिसका मतलब होता है जाना, तेज-तेज चलना, धकेलना , सीधा वगैरह। इन तमाम अर्थों में गति संबंधी भाव ही प्रमुख है। सृ से ही बना है सर शब्द जिसका मतलब न सिर्फ जाना है बल्कि गतिवाले भाव को प्रदर्शित करता हुआ एक अन्य अर्थ जलप्रपात भी है। यही नहीं सर का मतलब झील भी है। इसी से सरोवर भी बना है । अमृतसर , मुक्तसर , घड़सीसर जैसे अनेक नामों में भी यही सर समाया है..
(सड़क-सरल-सरस्वती )
भारत में आमतौर पर बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन पर यात्रियों का सामान ढोने वाले के लिए कुली शब्द का प्रयोग किया जाता है। किसी जमाने में ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीति का सबसे घिनौना पहलू इसी शब्द के जरिये उजागर हुआ था । सभी ब्रिटिश उपनिवेशों के मूल निवासियों के लिए अंग्रेज कुली शब्द इस्तेमाल करने लगे थे। अंग्रेजी, पुर्तगाली के अलावा यह शब्द तुर्की,चीनी, विएतनामी बर्मी, आदि भाषाओं में भी बोला जाता है। हिन्दी को कुली शब्द पुर्तगालियों की देन है पर यह भारतीय मूल का ही शब्द है। हालांकि आर्य भाषा परिवार का न होकर इसका रिश्ता द्रविड़ भाषा परिवार से जुड़ता है।हिन्दी का कुली दरअसल तमिल मूल का शब्द है और कन्नड़ में भी बोला जाता है। इन दोनों भाषाओं में इसका उच्चारण कूलि के रूप में होता है जिसका मतलब हुआ मजदूर अर्थात ऐसा दास जो मेहनत के बदले में पैसा पाए..(कुली के कुल की पहचान )
महाभारत के प्रसिद्ध पात्र अर्जुन और दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेंटीना में भला क्या संबंध हो सकता है ? कहां अर्जुन पांच हजार साल पहले के द्वापर युग का महान योद्धा और कहां अर्जेंटीना जिसकी खोज सिर्फ पांच सौ वर्ष पहले कोलंबस ने की। दोनो में कोई रिश्ता या समानता नजर नहीं आती। पर ऐसा नहीं है। दोनों में बड़ा गहरा रिश्ता है जिसमें रजत यानी चांदी की चमक नजर आती है। भारतीय यूरोपीय भाषा परिवार का रजत शब्द से गहरा नाता है। इस परिवार की सबसे महत्वपूर्ण भाषा संस्कृत में चांदी के लिए रजत शब्द है। प्राचीन ईरानी यानी अवेस्ता में इसे अर्जत कहा गया है.. (अर्जुन, अर्जेंटीना और जरीना)
भाषा का शुद्धतम रस निचोड़ रहे हैं अजीत जी..और शुद्ध आनन्द की सरिता बहा रहे हैं.. (ध्यान दें.. सरिता में भी सर है..).. आनन्दम.. आनन्दम..
अब के पहले मैंने जिन भी लोगों का परिचय अपने ब्लॉग के माध्यम से कराया वे मेरे मित्र थे.. उनसे मेरी एक लम्बी पहचान रही थी.. मगर अजित वडनेरकर साहब से मेरा परिचय सिर्फ़ हफ़्ता भर पुराना है और चिट्ठाजगत के माध्यम से हुआ है.. वे लगभग रोज़ लिख रहे हैं..
अजित जी जैसे नए नगीनों को देखने के लिए और उन्हे लगातार पढ़ने के लिए या तो उन्हे किसी रीडर से सब्सक्राइब कर लें या देखते रहें चिट्ठाजगत.. या ब्लॉगवाणी..
27 टिप्पणियां:
मजा आ गया अजित जी का ब्लॉग देख के.अब तो देखते ही रहेंगे और काफी कुछ सीखने को मिलेगा ऎसी आशा है.
सरसरी निगाह से देखने पर ब्लॉग तो बड़ा अच्छा लग रहा है. परिचय के लिये धन्यवाद. फुर्सत से पढ़ेगे.
और अपने लेखन में तल्खी के अंश पर रबर क्यों नहीं फेर लेते! :)
धन्यवाद अजित जी के बारे में बताने के लिये.
इनके शब्दों के सफर का हम भी आनन्द ले रहे हैं
अच्छा लगा अजित जी का ब्लॉग. साधुवाद परिचय कराने के लिये.
सही है। ज्ञानजी की बात पर गौर किया जाये। :)
बहुत सराहनीय प्रयास है अजीत जी का ।साधुवाद्!
अभयजी
नगीने का परिचय कराने के लिए धन्यवाद।
सही परिचय.. जियो, स्वामीजी..
हिन्दीजगत के लिये यह अच्छी बात है कि अजित का चिट्ठा एक अलग तरह का चिट्था है। हिन्दी चिट्ठाकारी में विषयों की विविधता की अभी बहुत जरूरत है।
यह हिन्दी चिट्ठा जगत के लिए खुशी की बात है. ऐसे ही लोगो के जुड़ते रहने से ही नेट पर हिन्दी स्थीति में गुणात्तमक परिवर्तन आयेगा.
अच्छे समाचार के साथ तीसरे को कोसने का कार्य काहे करते है? आप विद्वान लोग है, मुझ जैसा व्यक्ति क्या कहे? खुशी क समाचार हँसते मुँह लेना ज्यादा भाता है.
अजित जी के काम की बानगी देख-देखकर दिल बाग-बाग है। देश-काल की सीमाओं के आर-पार शब्दों की अठखेलियां देखने का कुछ मजा हम लोगों ने त्रिलोचन जी- प्रगतिशील त्रयी के कवि त्रिलोचन शास्त्री- के साथ लिया है। अब अजित जी के शब्द-सान्निध्य में यह सुअवसर दुबारा मिला है।
आभारी हूं सभी ब्लाग-जनों का मगर मुझे बहुत ज्यादा संकोच हो रहा है। अभयजी , आपने मुझ नाचीज़ पर जो लिखा उससे अभिभूत भी हूं पर ये मेरे लिए बहुत ज्यादा है। मैं बहुत सामान्य काम कर रहा हूं। सिलसिला-ए-सफर चलता रहेगा। आमीन..
आनंदम आनंदम । धन्यवाद । धन्यवाद ।
अजित से तार्रुफ़ कराने के लिए शुक्रिया ।
नगीने कि खासियत होती है कि देखते ही उससे प्रेम हो जाता है । सचमुच बहुत ही सराहनीय काम कर रहे हैं आप ।
अजीत जी के चिट्ठे के साथ शब्दो का सफर..ज्ञानवर्धक है..नगीने को और उसे खोजने वाले को कोटि कोटि साधुवाद.
स्वागत है अजीत जी का चिट्ठाजगत में।
ये साहब वही हैं जो दैनिक भास्कर में भी एक कॉलम लिखते हैं, भाषा पर. बहुत सुंदर. धन्यवाद. आनंद आएगा,निर्मल आनंद है यही.
चलिये कुछ निर्मल आनंद की राह तो प्रशस्त हुई.
नये शव्द पारखी का स्वागत है,अपन तो जनल खोर हैं, हर अच्छा शुरुआत से जलते हैं सो इनसे भी सुलग रहे हैं। पर हमारे जलने से क्या इनके सर का शाल्त सरोवर सूख जाएगा।
बेलाग कहूँ तो यहाँ सब कुछ पुराना है, धीरेंद्र वर्मा, अंबा प्रसाद सुमन, भोलानाथ तिवारी आदि विद्वानों की लीद हटाने से क्या सब कुछ नया मान लिया जाएगा।
जानना चाहूंगा कि असर के सर का सरोवर के सर से कोई नाता हैं क्या, मत्सर या संवतसर का भी कुल गोत्र इन्हीं सरोवरों के सर में डूबा है। मैं गोताखोर नहीं हूँ, इन सब सरों का सर खोज दो भाई,
उपकार मानूँगा। देखना बीच राह में पसर नहीं जाना, यानी विलम मत रहना राजा जी। बेनाम का चिट्ठा चिपकाना ही होगा निर्मल आनन्द के लिए।
बेनाम के सर से बिंध कर रह मत जाना। दो चार दिनों में सरसराते हुए आना।
आप चुप क्यों हैं बंधु , यह सरासर अन्याय है, सरकार के सर का सर दार के सर से मिलान करा कर अपना कसर निकालो यार,या फिर मान लो कि शव्दों के साथ तुम्हारा राह चलते का साथ है कोई गुजर-बसर नहीं।
और आप का कलदार कहीं कलई से तो नहीं, चमक के लिए की गई रंगाई के कारण भी तो कल दार हो सकता है। कलई खुल जाए उसके पहले आपकी लेखनी चल जाए, तो ही अच्छा है। क्योंकि जनता अपने शव्दों को ऐसे ही नहीं बनाती। उसके पीछे तर्क भी होते हैं।
उदाहरण के लिए गार्ड शव्द है---
यह सेना में गारद हुआ और रेल में गाड अरे वही अपने गाड बाबू और पढ़े लिखे साहबों में वह गार्ड बन कर भी ड्यूटी पर डटा है। इस लिए कलदार की पैदाइश के लिए केवल कल- कारखाने के दरवाजे की तरफ झांकना इस कलयुग में आप को शोभा नहीं देता। अगर सिक्कों के नाम विक्टोरिया हो सकते हैं अभी हाल फिलहाल में 5 रुपये के सिक्के को खुदरा साग-भाजी बेचने वालों ने डालर नाम दे दिया है और वह नाम चल भी रहा है।
चंद्र भूषण जी हिंदी में और कोई भी त्रिलोचन जी हैं क्या, मुझे लगता है कि बात बात में आप यह बताना चाहते हैं कि आप ने भी ऐतिहासिक पुरुषों के साथ सहवास किया है, माफी चाहूँगा पहले साथ रहने को सहवास ही कहते थे।
और यह त्रयी कौन सी है, जिसका हवाला आप ने दिया है
1-केदार , शमशेर, त्रिलोचन
2- नागार्जुन, शमशेर, त्रिलोचन,
यह भी बताएंगें तो संदेह मिट जाएगा, मजा बढ़ जाएगा।
नगीना में चमक है यह अच्छा है पर इसमें बहुत कुछ कच्चा है।
बेनाम के सवाल भी अच्छे हैं।
गल्त बात है, एक की हद से ज्यादा तारीफ और एक को धो डाला :) संतुलन कहाँ हैं?
संतुलन खोने वाले और अपने लेखन में ज़्यादा तल्ख हो जाने वाले को माफ़ किया जाय..
क्षमा चाहूँगा , किंतु हिन्दी के सरे शब्दों का रिश्ता निकलने बैठे तो कोई शब्द भी बाकी नही रह जाएगा अपने रिश्तेदारों की गोष्ठी में जाए बिना | आनंद जी की सुने तो अमर शब्द से अमेरिका ,संकुल से स्कूल ,यापन से जापान , सरिया से सीरिया ,सुदान से सूडान आदि शब्दों का आविर्भाव हुआ है| मुझे यथार्थ का बोध ज्यादा नही है पैर मै इसका उत्तर जरुर जानने की इच्छा रखता हूँ |
क्षमा चाहूँगा , किंतु हिन्दी के सरे शब्दों का रिश्ता निकलने बैठे तो कोई शब्द भी बाकी नही रह जाएगा अपने रिश्तेदारों की गोष्ठी में जाए बिना | आनंद जी की सुने तो अमर शब्द से अमेरिका ,संकुल से स्कूल ,यापन से जापान , सरिया से सीरिया ,सुदान से सूडान आदि शब्दों का आविर्भाव हुआ है| मुझे यथार्थ का बोध ज्यादा नही है पैर मै इसका उत्तर जरुर जानने की इच्छा रखता हूँ |
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