रविवार, 8 जुलाई 2007

ई-स्वामी का भयानक सपना और मेरा जवाब

जीतेन्द्र चौधरी नारद हैं, ऐसी घोषणा तो वे हर मौके पर करते ही रहते हैं..अब ये ईस्वामी क्या हैं.. मैं नहीं जानता.. वे सनक, सनन्दन, सनातन हैं या सनत्कुमार.. हो सकता है कुछ लोग जानते हों.. मैं नहीं जानता.. हाँ उनके हाल के एक डर के बारें में ज़रूर जान गया हूँ.. उन्हे डर है कि साम्प्रदायिकता के इस (ऑफ़ कोर्स आर्टीफ़ीशिएल) हल्ले में उन्हें साम्प्रदायिक समझ लिया जायेगा.. इस पर मेरा जवाब उन्हे यह है..

साम्प्रदायिकता के मसले पर आप न ही बोलते तो कम से कम हमें आप के बारे में भम बना रहता.. पर बोल के आप ने खुद ही अपना कचरा कर लिया.. अब तो पोल खुल गई कि आप की समझ भी उतनी ही संवेदनहीन है जितनी एक बहुसंख्यक समुदाय के किसी खाते पीते व्यक्ति की होती है.. क्या समस्या है.. क्यों गला फाड़ रहे हो? थोड़ी शांति रहने दो.. हर चीज़ में साम्प्रदायिकता साम्प्रदायिकता.. हद कर रखी है तुम लोगों ने.. छी.. कब तक इस तरह का ज़हर फैलाओगे..आदि आदि.. इस प्रकार के विचार आप के नारद समुदाय में कूट कूट के भरे हैं..

आप इस बात से ही आहत हुए जा रहे हैं कि किसी ने आपको साम्प्रदायिक कह दिया.. आप को सपने आ रहे हैं कि आप की इमेज खराब हो गई.. ज़रा सोचिये..कि आप, आप के परिवार, आप के समुदाय के लोगों को राज्य और पुलिस के साथ मिल कर बहुसंख्यक समुदाय के लोग, चुन चुन कर खुले आम मारें.. (कारण पर मत जाइये.. किसने शुरु किया इस बहस को भी दिमाग में मत लाइये).. आप के घर परिवार के आधे से ज़्यादा लोग मारे जायें.. आप हत्यारों के खिलाफ़ रपट तक न लिखवा सकें.. अपना जला हुआ घर छोड़ कर कैम्पों मे गुज़ारा करें.. फिर कोई तीसरा व्यक्ति आप पर तरस खा कर आप के इस कैम्प के जीवन पर कोई छोटी से कहानी लिख दे.. और छाप दे.. और मैं उसे पढ़ कर कहूँ कि.. बड़े नीच आदमी हो इस तरह ज़हर फैला रहे हो.. फिर कोई मुझ पर सवाल उठाये तो मैं उसे बदतमीज़ कहूँ.. शालीनता बनाये रखने की बातें करूँ.. आप के समुदाय का एक साथी इस पर विरोध करे तो मै कहूँ कि निकल जाओ तुम भी.. फिर तमाम पानी बह जाने के बाद किसी से कोई माफ़ी माँगने का ख्याल दूर दूर तक मेरे मन में भी आए.. माफ़ी??!!! कैसी माफ़ी??? किस बात की माफ़ी???!!!

समझ रहे हैं..? नहीं.. आप को ये नहीं समझ में आएगा.. क्योंकि आप बहुसंख्यक संवेदनहीनता के शिकार है.. और फिर देश से बाहर भी हैं..आप अपने सपने को भयानक कह रहे हैं.. माफ़ करें आप नहीं जानते कि भय क्या होता है और भयानक क्या होता है..

आप लोगों ने एक समय में देश से बाहर रह कर अपनी ज़मीन से अपनी भाषा से जुड़े रहने के लिए एक सचेत कोशिश के तहत एक सार्थक मंच बनाया.. हम आप के उस योगदान को समझते हैं.. उसकी एक वक्त तक एक भूमिका थी.. पर हर चीज़ की तरह उस भूमिका की भी एक सीमा है.. पिछले कुछ महीनों में आप के इस मंच से जो लोग जुड़े वे अलग ज़मीन और पृष्ठभूमि से आते हैं.. आप उनकी ज़रूरत और जज़्बे को नहीं समझते.. वे विदेशी ज़मीन पर अपनी भाषा को जिलाये रखने की चिंता से ग्रस्त नहीं है.. उनका आकाश दूसरा है.. आप की खिड़कियों से वो नज़र नहीं आयेगा..

आप अभी भी नारद को एक किटी पार्टी समझ रहे हैं..जबकि इस में आजकल बहुत सारे भूखे नंगे अवर्ण अछूत आप की पार्टी स्पॉयल करने घुस आए हैं.. आप के पास दो ही रास्ते हैं या तो अपनी समझ को परिमार्जित कीजिये और इस मंच को शुद्ध व्यावसायिक स्तर पर दुबारा खड़ा कीजिये.. या अछूतों अवर्णों को बाहर कर के अपने घर के दरवाजे और कस के बंद कीजिये.. और चालू रखिये अपनी किटी पार्टी को..

9 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

अभय ,
नारद की समस्या को आप और ईस्वामी दोनों फिरकापरस्ती से जोड़ रहे हैं- यह ग़लत है और इससे वास्तविक कमजोरी पर चोट नहीं हो पा रही है।
इलाहाबाद के कवि-मित्र नीलाभ कहते हैं,'हर हिन्दू अधिकतम बीस परत नीचे हाफ़ पैन्टी है'- मुझे भी नीलाभ की बात में दम लगता है। परन्तु ,हर हिन्दू से संवाद समाप्त हो जाए यह तो हाफ़ पैन्टियों के लिए भला होगा। यह ध्यान दें कि 'लोकमंच' ,'हिन्दू जागरण' जैसे घोषित हाफ़ पैन्टी प्रयोगों से नारद मुक्त है। यह मुक्ति अराजनैतिक है और शायद तकनीकी भी-सैद्धान्तिक तो बिलकुल नहीं । अत: चोट कहाँ करनी है , इस पर गौर किया जाय।

अभय तिवारी ने कहा…

आप की बात ठीक है अफ़लातून भाई.. नारद की समस्या जो हो उसे नारद वाले निपटेंगे..आप शायद उसे पहले से देख रहे हैं.. आप उस आन्तरिक समस्या को बेहतर समझते हैं.. जैसा कि आपने अपनी हालिया पोस्ट में बताया भी..

पर नारद के आन्तरिक मसलों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं..एक ब्लॉगर की हैसियत से मेरा जितना साबका इस मंच से पड़ता है.. उतने भर की बात मैं कर सकता हूँ.. ई-स्वामी, जीतेन्द्र या नारद या किसी और पर चोट करने का ना तो मेरा कोई इरादा है और न कोई दिल़चस्पी..

नारद उनका मंच है..उसके प्रति उन्हे जो करना हो करे..मैं अपनी बात रखता हूँ..किसी के नाम किसी निजी चिट्ठी में नहीं.. एक सार्वजनिक चिट्ठे पर.. क्योंकि पढ़ने वाले और भी हैं..

azdak ने कहा…

नारद! नारद!

ढाईआखर ने कहा…

अभय जी, संवाद की कोशिश अच्‍छी है। मुझे लगता है कि एक दो बातों पर ज़ोर देना चाहिए। पहला, यह फर्क़ करना ज़रूरी है कि हिन्‍दू मज़हब और हिन्‍दुत्‍व एक दूसरे के पर्यायवाची शब्‍द नहीं है। यह दोनों अलग हैं। हाल के दिनों में इसे एक ही मनवाने की कोशिश हुई है। हममें से कितने लोगों को याद है कि आज से दस साल पहले वे हिन्‍दुत्‍व शब्‍द इस्‍तेमाल करते थे। ज्‍यादा दिक्‍कत हो तो अपने घरों के बुज़ुर्गों से पूछ लें कि इन्‍होंने हिन्‍दुत्‍व शब्‍द का हिन्‍दू मज़हब के लिए कब और कितनी बार इस्‍तेमाल किया था।
इस घालमेल से होता है कि जब भी कोई हिन्‍दुत्‍व की बात करता है तो बात धर्म पर चली जाती है। जूतम पैज़ार की नौबत आ जाती है। हिन्‍दुत्‍व एक राजनीतिक विचारधारा है, जो दूसरे समुदाय के साथ नफरत पर टिकी है।
दूसरी अहम बात है कि मिथकों और भ्रांतियों पर सहज विश्‍वास। आम तौर पर नफरत के विचार मिथकों पर ही आधारित होते हैं। पढ़े लिखे जन, जिनके पास सूचनाओं के कई स्रोत हैं, वे भी झूठ पर सहज यकीन करते हैं। जैसे मुसलमान, परिवार नियोजन के तरीके नहीं अपनाते। इस बात की सचाई का पता करना उतना ही आसान है जितना की आलू का भाव।‍ फिर भी हम झूठ पर जीते हैं।
असल में हम जिन्‍हें 'अन्‍य' मानने लगे हैं, उनके बारे में कही गयी नकारात्‍मक बात पर शक करने की आदत खत्‍म कर चुके हैं। इसलिए उनके बारे में कही गयी हर बात सहज सच लगती है।
एक और बात, जिस तरह हिन्‍दुत्‍व और हिन्‍दू का घालमेल नहीं किया जाना चाहिए ठीक उसी तरह, तालिबानी विचारधारा और इस्‍लाम को एक मानने की प्रवृत्ति भी छोड़नी चाहिए। क्‍या अफगानिस्‍तान, इराक को तबाह करने वाले बुश को किसी ने ईसाई आतंकवादी कहा है या फिर इस्राइल की कार्रवाइयों को यहूदी आतंकवादी या लोगों को जिंदा जलाने वालों, पादरियों और कलाकारों पर हमला करने वालों को हिन्‍दू आतंकवादी कहा जाता है। नहीं, तो फिर एक दूसरे समुदाय के साथ भी यह भेदभाव क्‍यूँ।
मिथकों से ऊपर उठकर ही संवाद मुमकिन है।

eSwami ने कहा…

अभयजी,

जैसा की आपने लिखा - आप मुझे नही जानते (अर्थात हम अजनबी/अपरिचित हैं)लेकिन आपने मेरे एक लेख को मेरे बारे में पूर्वप्राप्त अन्य जानकारियों से जोड कर मेरा एक मानसिक कोलाज़ चित्र जरूर बना लिया जो अधूरा है. इस जनरिक, स्टीरियोटाईप्ड कोलाज़ चित्र में जो खामियां है वो मुझ मे भी है ये भी बहुत आत्मविश्वास से अपने इस 'जवाबी' चिट्ठे में अभिव्यक्त भी कर ही दिया है.

अब हम ये समझ चुके हैं की हिंदी ब्लागिंग से जुडे कई चिट्ठाकारों में इस प्रकार के तुरत-फ़ुरत लेखन का लोभसंवरण करने की क्षमता का अभी पूरी विकसित होना बकाया है. फ़िर ऐसे लिखे पर प्रतिक्रियाओं का एक और दौर शुरु होगा(हो चुका है) - चक्र चलता रहेगा.

व्यक्ति, उसकी छवि, उसके व्यक्तिगत सरोकार, उसके ब्लाग, ब्लाग की एक पोस्ट और उसके अन्य इन्टरनेट सरोकारों को ऐसे मनघडंत सुविधाजनक कनेक्शन्स में जोड कर देखा जाना और फ़िर तुरत-फ़ुरत राय प्रकाशित किया जाना कितना सही है? ऐसे जजमेंटल लेखन का क्या मूल्य हो उस पर प्रतिक्रिया ही क्यों करूं? प्रतिक्रिया इसलिये की अब तक मैं आपका प्रतिक्रिया करने जितना पूरा सम्मान करता हूं भई! नज़र-अंदाज़ नही करता!

मेरे उस लेख में क्या कोई लिंक या नाम देखा आपने? या किसी घटना का कोई ज़िक्र? मैने अपने आसपास जो कुछ पढा उसका मुझ पर क्या प्रभाव हुआ यह एक पूर्णत: एकांगी लेख में व्यक्त किया हुआ है बस! ना संवाद की चाह में ना विवाद की राह में!

भई मैं एक पाठक और एक ब्लागर पहले हूं, बाकी सब प्रोजेक्ट्स से जुडा बाद में हूं. वैसे ही अन्य लोग भी होंगे! कुछ तो खयाल करो भाई - कोई ये लेख पढ कर ये अर्थ ना निकाले की आपको नारद की सफ़लता से चिढ होगी उस से जुडे ब्लागर्स को फ़ींच रहे हैं!(मुझे मालूम है ऐसा नही है - बस डर ज़ाहिर किया है .. डर जाता हूं आजकल!) किसी का भी कचरा करने की इतनी उतावली क्यों?

बेनामी ने कहा…

& Good debate.

अभय तिवारी ने कहा…

ई-स्वामी जी,
आप का या किसी का कचरा करने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं हैं..मैंने तो यह कहा कि आप ने स्वयं अपना कचरा किया.. (इसे आप एक 'भदेस' मुहावरे के तौर पर समझें.. गाली न मानें)..

आप मुझे प्रतिक्रिया करने लायक सम्मान अभी तक दिये हुए हैं इसका मैं आप का आभारी हूँ.. इसी प्रकार आप के लिखे पर जवाब देना आप को प्रतिक्रिया करने योग्य सम्मान देना ही है..

ब्लॉगिंग मेरे लिए ब्लॉगिंग भर ही है..सामाजिकता का जितना आयाम इस से खुलता है.. बस उस से ज़्यादा रिश्तेदारी बनाने की चाहतें मैं नहीं पालता.. तो आप कौन हैं.. नाम पता जाति गोत्र..न आप बताना चाहते हैं और न मैं जानना चाहता हूँ..

किसी ई-स्वामी नाम के चिट्ठे पर लिखे विचारों को मैं परोक्ष रूप से कचरा कह कर उनके आड़ की संवेदनहीनता को बाकी पाठकों के लिए उजागर कर रहा हूँ..अगर इस माध्यम से आप खुद उसके प्रति सचेत हो जायं.. तो सोने में सुहागा..

आप से व्यक्तिगत तौर पर मेरा कोई विरोध नहीं..

eSwami ने कहा…

अभयजी,

मेरे कठिन लेखों का सही भावार्थ बताने वाले इस टीकापूर्ण लेख व मेरे अन्य पाठकों की सहायता का ऐसा उच्च भाव रखने के लिये हार्दिक धन्यवाद.

आशा है इस बार की भांती आगे भी आप मुझे ऐसे ही पूर्वाग्रहों से मुक्त इतने ही गौर से पढेंगे. आप जैसा सुधी पाठक पा कर मैं भयंकर रूप से धन्य और घातक रूप से सम्मानित हुआ हूं! ('भयंकर' और 'घातक' भदेस वाले हैं)

बोधिसत्व ने कहा…

अभय भाई
काहे को इन स्वामियों के चक्कर में अपना आनन्द खो रहे हो। इनको इनके हाल पर छोड़ दो।
आज का दौर ऐसा ही कि कचरे को कचरा कहना उसकी तौहीन है। यह आरती उतारू दौर है, ताली बजाओ और आशीष पाओ। जब तुम किसी की कमी पर उंगली उठाओ गे तो उधर से शुक्रिया नहीं गाली पाओगे। वह वक्त गया जब कबीर रहते थे और कहते थे-
निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय।
बिन साबुन बिन नीर के मन निर्मल ह्वे जाय।

आज तो यह कहना उचित रहेगा-

निंदक मुंडी काटि के आंगन दो दफनाय।
जग में अपनी कीर्ति का झंड़ा दो फहराय।
बस अपनी तारीफ सुनने वाले दौर में काहे को अपने नाम पर सुपारी दिलाने पर तुले हो भाई।
प्रमोद भाईअब आप इससे छोटा लिख कर नहीं दिखा सकते, दिखा दें तो......
एक सुझाव है....
ना...ना....
इससे नारद और नारायण दोनों की पठनीयता बनती है।

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