दबने वाला हीन मनुष्य हो चाहे न हो, दबाने वाला ही हमेशा कमतर मनुष्य होता है।
दबाने वाले की हिंसा से प्रभावित होकर जब भी दबने वाला प्रतिहिंसा करता है, वो भी अपनी उच्चता खो बैठता है।
जिसने हिंसा के जवाब में पलटकर वार नहीं किया, वही श्रेष्ठ मनुष्य है। जिसमें सबर है, धीरज है, करुणा है।
वो भय ही है जो हमें हिंसा के लिए दूसरों को दबाने पर मजबूर करता है। जो अपने भय से संचालित नहीं, जो निर्भय है वही बेहतर मनुष्य है।
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2 टिप्पणियां:
सहना शक्ति है पर एक सीमा तक ही..
किसी के सामने तीसरा गाल करने की नौबत आने पर हिंसा से बेहतर कोई समाधान नहीं
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