अगर लोग केवल अपने समुदाय की लड़कियों को ही छेड़ते तो दंगा न होता। पर नौजवान दिल धर्म- समुदाय किसी बंधन को मानता ही नहीं।
ये बात धर्म-सम्प्रदाय को मानने वालों को बहुत बुरी लगती है। वे आदमी को नहीं देखते। उसके कपड़े देखते हैं। उसका दिल नहीं देखते। उसने किस भुलावे को अपना यक़ीन, अपना अक़ीदा बना रखा है, वो देखते हैं।
जब तक लोग समूह में अपना अस्तित्व खोजते रहेंगे। दंगे होते रहेंगे।
प्यार करने के लिए समूह नहीं चाहिए। प्यार अकेले करने वाली शै है। दंगा करने के लिए समूह चाहिए।
4 टिप्पणियां:
प्यार करने वालों को शिकार बनने के लिए जरूरी नहीं कि दूसरा समूह खोजना पड़े। अपना समूह भी मार डालने के लिए नहीं झिझकता ।
कस्बों की भी अपनी समस्याएं हैं
सबकी अपनी अपनी दुनिया,
फिसले मिट्टी, चिकनी दुनिया।
प्यार और छेड़ छाड़ में अंतर होता है भाई नौजवानी में संजीदगी भी होनी चाहिए।
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