मुक्तिबोध को पढ़ना बहुत सारी जटिलताओं से गुजरना है और मुझे लगता है हम उन्हें लगातार नहीं पढ़ सकते, कुछ मामले में अज्ञेय को भी इसी श्रेणी में लेता हूँ, कुछ पढ़ना फिर देर तक सोचना, मुक्तिबोध बहुत दुरूह लगते हैं कहीं कहीं, पकड़ में नहीं आते, उनको समझने के लिए खासी परिपक्वता की जरुरत है. आपकी जबान काफी साफ़ है. और इसे पेश करने का शुक्रिया.
अभय , मैं कभी कभार आपके ब्लॉग पर आता हूँ । आज मुक्तिबोध की इस कविता के बहाने आया । मुक्तिबोध की यह कविता उनकी अन्य कविताओं से इस मायने मे अलग है कि इसमें जो ध्वनि है वह अपने देश काल से बाहर जाकर ध्वनित होती है । इसका चयन आपने पाठ के लिये किया इस बात से मै प्रसन्न था ।और यह पाठ सुनकर वह प्रसन्नता स्थायी हो गई ।
7 टिप्पणियां:
चलिये इस बहाने आपकी आवाज भी सुन ली...वैसे पंखा धीरे धीरे बंद हुआ है....
मुक्तिबोध को पढ़ना बहुत सारी जटिलताओं से गुजरना है और मुझे लगता है हम उन्हें लगातार नहीं पढ़ सकते, कुछ मामले में अज्ञेय को भी इसी श्रेणी में लेता हूँ, कुछ पढ़ना फिर देर तक सोचना, मुक्तिबोध बहुत दुरूह लगते हैं कहीं कहीं, पकड़ में नहीं आते, उनको समझने के लिए खासी परिपक्वता की जरुरत है. आपकी जबान काफी साफ़ है. और इसे पेश करने का शुक्रिया.
बड़ी अच्छी कविता और सुन्दर पाठ।
बड़ी अच्छी कविता और सुन्दर पाठ।
अच्छा लगा सुनकर.
आप सब का शुक्रिया!
डा० साहब, याने के आप ने सब ग़ौर से देखा.. :)
अभय , मैं कभी कभार आपके ब्लॉग पर आता हूँ । आज मुक्तिबोध की इस कविता के बहाने आया । मुक्तिबोध की यह कविता उनकी अन्य कविताओं से इस मायने मे अलग है कि इसमें जो ध्वनि है वह अपने देश काल से बाहर जाकर ध्वनित होती है । इसका चयन आपने पाठ के लिये किया इस बात से मै प्रसन्न था ।और यह पाठ सुनकर वह प्रसन्नता स्थायी हो गई ।
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