शुक्रवार, 12 मार्च 2010

रोड मूवी

हिन्दी फ़िल्मों की मसालेदार दुनिया से एकदम अलग स्वाद की बनी एक हिन्दी फ़िल्म है रोड मूवी। हिन्दी समाज के किसी भी स्वाद से फ़ीकी, एकदम बेस्वाद। इस क़दर नक़ली और बनावटी कि हैरत होती है कि ऐसी फ़िल्म बनाने के पीछे क्या सोच काम कर रही है आख़िर?

नक़ली चरित्रों द्वारा एक हवाई घटनाक्रम में उचारे गए अंग्रेज़ी से तरजुमा किए हुए उतने ही नक़ली संवाद! विम वेन्डर्स की 'किंग्स ऑफ़ दि रोड' और मार्सेलो गोमेज़ की 'सिनेमा, एस्पिरिन एण्ड वलचर्स' से ‘बुरी तरह’ प्रभावित यह फ़िल्म बिलकुल बेअसर है।

हम हिन्दुस्तानी जिस तरह के कचर—मचर के समाज में रहते हैं, उन के लिए दूर-दूर तक के ख़ालीपन का आतंकित कर देने वाला लैण्डस्केप और उसमें विचरने की आज़ादी बहुत आकर्षक मालूम दे सकती है; मुझे देती है। लेकिन उसे सिनेमा की शक्ल देने का भी एक तरीक़ा होगा जिस से कि वो निहायत बेहूदी और हवाई शोशेबाज़ी न बन के रह जाय।

मैं यह नहीं मानता कि सिनेमा सिर्फ़ सामाजिक सच्चाईयों को प्रस्तुत करने का माध्यम है। आदमी के भीतर की ‘उड़ानों को पकड़ने’ का भी वो एक सशक्त और सफल माध्यम है। और अपने उसी रूप में अधिक लुभावना लगता है। असल में वो उड़ानें भी एक तरह की सच्चाईयां है- हमारे अन्तर्मन की सच्चाईयां। लेकिन कुछ फ़िल्में होती हैं जो न घर की रहती हैं न घाट की, रोड मूवी की गिनती उन्ही में की जा सकती है।

6 टिप्‍पणियां:

मुनीश ( munish ) ने कहा…

I don' t know what to say because i have not seen the movie and now u r discouraging me from seeing it so probably i'll watch U-tube again .

डॉ .अनुराग ने कहा…

मेरी उम्मीदे अलबत्ता इस फिल्म से बहुत है ......फिल्म देखकर ही अपनी राय चस्पा करेगे

कुश ने कहा…

मैं अभी तक देख नहीं पाया.. अभय देओल के लिए एक बार तो देखनी ही है.. वैसे सुना है सिनेमेटोग्राफी अच्छी है फिल्म की.. बाकी तो देखते है.. फिर सोचते है..

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

main bhi nahi dekh paya hoon lekin dekhni hai kyunki abhay deol hai aur doosra mujhe lagta hai ye kuch kuch motorcycle diaries se prerit hai...

विवेक ने कहा…

लेकिन कैमरा कहीं कहीं...कुछ शॉट्स में ही सही...जादू सा कर जाता है...नहीं?

dalip tripathi ने कहा…

i couldnt belive this was a movie

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