तमाम पढ़े-लिखे लोगों का मानना है कि इस्लाम एक निहायत कट्टर धर्म है और उसमें सुधार की कोई गुंज़ाइश नहीं है। आज के इस्लाम की जो तालिबानी और वहाबी सूरत है उस से यह मत काफ़ी सही मालूम देता है। मगर हमेशा से ऐसा नहीं था। इस्लाम के इतिहास में पहुँचे हुए पीर कहे जाने वाले तमाम मुसलमानों ने इसे अनेक रंगो से सजाया और संवारा है।
मगर आजकल चलन कुछ ऐसा हुआ है कि अगर खुदा को परदे में रखने की बात है तो पैग़म्बर की भी तस्वीर नहीं बन सकती। कुछ दानिशमंद तो इस हद तक जाते हैं कि खुद भी तस्वीर नहीं खिंचवाते और कैमरों को तोड़ फेंकने की तबियत भी रखते हैं। उनका भला कौन करेगा मैं नहीं जानता।
मैं पाता हूँ कि मेरे बचपन से अलग आजकल काफ़ी लोग टखने से ऊँचे पैजामे और शरई दाढ़ी के साथ टहलते पाए जाने लगे हैं। मेरी समझ ये है कि अगर कोई इस तरह की पहचान के दायरों में सुरक्षा तलाशने लगे तो निश्चय ही उस व्यक्ति/समुदाय में कमज़ोरी का भाव गहरे घर कर चुका है। वह अपने समय के साथ कदम मिलाकर चलने के बजाय अतीत का पल्लू पकड़ कर घिसटने में अपनी सार्थकता पा रहा है। यह दुःखद है।
इस्लाम की आलोचना आसान नहीं। आतंकवाद और इस्लाम में कट्टरता का विरोध करने वाले भी क़ुरान की किसी आयत के सहारे या मुहम्मद साहब की किसी हदीस की ही आड़ से ऐसा कर पाते हैं। हिन्दू धर्म की पुंगी बजाने वाले और ईसाईयत को लम्पून करने वाले आप को थोक के भाव उपलब्ध होंगे मगर इस्लाम और मुहम्मद का मखौल उड़ाना तो दूर तर्क के नाम से ही लोग थर-थर काँपने लगते हैं।
ब्लॉग की दुनिया में एक भाई मोमिन ने इस्लाम पर विवेकपूर्ण खरी-खरी कहने का बीड़ा उठाया है। उन की बातें बड़ी सटीक हैं। कितनी ग्राह्य और सुपाच्य होती हैं ये तो वक़्त ही बताएगा। ब्लॉग पर उनका परिचय नहीं मिलता मगर इतना तय है कि वे जो भी हैं, धन्य हैं। मैं उनका स्वागत करता हूँ और उन को इस बीहड़ काम को करने के लिए बधाई और शुभकामनाएं दोनों देता हूँ।
16 टिप्पणियां:
एक बार इस्लाम पर मैंने भी अपनी राय ज़ाहिर की थी। वक़्त मिले तो पढ़िएगा - भारत में इस्लाम का भविष्य। टिप्पणियों में कई गालियाँ भी पड़ीं। :)
अपने नाम के साथ, बिना पहचान छुपाए खुलमखुला लिखने वाले पहले बहादूर ब्लॉगर "शुएब" रहें है. इनकी खूदा सिरीज कमाल की है.
भाई मोमिन का लिंक देने का शुक्रिया!
अभय जी, किसी भी धर्म की आलोचना करना आसान काम नहीं है. लेकिन पता नहीं कैसे लोग बड़ी आसानी से यह काम कर जाते हैं. शायद ऐसा करना उनके लिए आसान होता होगा, जिन्हें पूरी जानकारी नहीं होती होगी.
सही लिखा है आपने
एक बूढा धर्म है जो आधुनिक सन्दर्भ में न बदलना चाहता है और न इस सन्दर्भ में जमीनी हकीकत को समझना चाहता है बस सारे नियमों को हदीस और शरिया में खोजने का प्रयास ही करता है और अप्रांसगिक हलो को दुत्कारने का सहस भी नहीं रखता है सुधार की काफी गुंजाइश है
Der se hi sahi par Islam main bhi pragati anivarya hai:
http://www.nytimes.com/2009/04/23/opinion/23kristof.html?_r=5
काश मोमिन का यह प्रयास कुछ मुसलमानों को अशिक्षा, पिछड़ेपन, रूढ़िवादिता, कट्टरता, अन्धविश्वास, और पश्चगामी सोच की अन्धेरी सुरंग से बाहर लाकर आधुनिक वैज्ञानिक सोच विकसित करने में सफल हो जाता।
धर्म पर खुल कर बहस होनी चाहिए कोई भी धर्म हो. हम ये क्यों नहीं मानते की धार्मिक किताबें इंसान की लिखी किताबें ही हैं. आँख बंद करके उनका पालन नहीं किया जा सकता ! भाई मोमिन का ब्लॉग देखे आते हैं.
अभयजी, मोमिन भाई के ब्लाग तक पहुँचानें के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरे बहुत करीबी मुस्लिम दोस्तों के साथ भी यह समस्या रहती है कि जब उनसे मेरिट पर इस्लाम के विषय में बात करनें की बात करो तो हत्थे से उखड़ जाते हैं। मुस्लमानों के बीच इस्लाम पर गौर करनें की आज बहुत सख्त जरूरत है। हिन्दू आदतन सहिष्णु है किन्तु दुनिया भर में इस्लाम जिस तरह से लड़ रहा है उसकी प्रतिक्रिया में हिन्दुओं में भी कट्टरता बढ़ रही है जो चिन्ता की बात है।
हिन्दी में इस्लाम पर बहुत कुछ नहीं तो भी ठीक ठीक सी जानकारियां हैं। कई साइट्स भी हैं। मज़े की बात यह कि यह तमाम सामग्री उसी रूप में इस्लाम को व्याख्यायित करती हैं जैसी मूल अरबी में हैं-अर्थात यह अनुवाद है और मिलावट से दूर है।
दिक्कत यह है कि मदरसों के मुल्ला और पढ़नेवाले दोनो ही देवनागरी में नहीं पढ़ना चाहते। मुल्ला औल-फौल जो मन में आता है, या पड़ौसियों को जो सुहाता है वैसी व्याख्या करता चला जाता है। यह वाचिक प्रणाली ही इस्लाम के नाम पर धब्बा लगा रही है क्योंकि इसके जरिये मज़हब धर्म नहीं अधर्म के रूप में सामने आ रहा है जो भेदभाव, हिंसा, ज्यादती, सर्वश्रेष्ठता,पुरुषवाद जैसी बुराइयों को बढ़ावा दे रहा है।
इस देश की मुस्लिम बिरादरी में बहुत बड़ा तबका सदियों से इसी मिलावटी खुराक पर पल कर बड़ा हुआ है। मिलावट का ज़हर रगों में बहेगा तो दिमाग पर भी असर तो होगा ही।
nirmalji,namaskar.
aap mere ek priya kavi.aapka kavita maine nepali vasame translation vi kiya tha.aapko ek chhithi vi veji thi.aapne koi jawab nahi diye.aur aapka blog mila achha laga.me follower rahunga.
आपके भाई मोमिन का ब्लाग आपके लिखने पर देखा, हमारा जवाब जो उनको भी दिया है आपके लिये भी है, यूं हैः
मेरा अनुमान है कि हम मुसलमानों को मुहम्मदी कहने वाला यह ज़रूर अहमदी होगा, क्योंकि 56 इस्लामिक देशों ने इन्हें इस्लाम से निकाल रखा है, इनके विचार कृष्ण जी के बारे में भी जानलो,
पुस्तकः श्री कृष्ण जी और कल्कि अवतार
http://www.alislam.org/hindi/
http://www.alislam.org/hindi/Shri-Krishan-Ji-Aur-Kalki-Avatar.pdf
इनके ब्लाग में झूठ देखोः
" यह तो कभी न हो सकेगा की सब बीवियों में बराबरी रखो, तुमरा कितना भी दिल चाहे."----सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (129)
कुरआन कि यह बातें इसने खुद घड ली हैं, जो सूरत और आयत नम्बर ये देरहे हैं वह यह हैः
4:129 http://www.altafseer.com/
और अगरचे तुम बहुतेरा चाहो (लेकिन) तुममें इतनी सकत (समर्थ हो) तो हरगिज़ नहीं है कि अपनी कई बीवियों में (पूरा पूरा) इन्साफ़ कर सको (मगर) ऐसा भी तो न करो कि (एक ही की तरफ़) हमातन माएल हो जाओ कि (दूसरी को अधड़ में) लटकी हुयी छोड़ दो और अगर बाहम मेल कर लो और (ज़्यादती से) बचे रहो तो ख़ुदा यक़ीनन बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है
जो सूरत इन्होंने तोड मरोड कर पेश की वह यह है
4:3 http://www.altafseer.com/
और अगर तुमको अन्देशा हो कि (निकाह करके) तुम यतीम लड़कियों (की रखरखाव) में इन्साफ न कर सकोगे तो और औरतों में अपनी मर्ज़ी के मवाफ़िक दो दो और तीन तीन और चार चार निकाह करो (फिर अगर तुम्हें इसका) अन्देशा हो कि (मुततइद) बीवियों में (भी) इन्साफ न कर सकोगे तो एक ही पर इक्तेफ़ा करो या जो (लोंडी) तुम्हारी ज़र ख़रीद हो (उसी पर क़नाअत करो) ये तदबीर बेइन्साफ़ी न करने की बहुत क़रीने क़यास है
चार बीवियों और एक बीवी पर हमारा जवाब देखना चाहें (...1954 में ‘‘हिन्दू मैरिज एक्ट’’ लागू होने के पश्चात हिन्दुओं पर एक से अधिक पत्नी रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया....) तो ऐसे 19 सवालों के जवाब के लिये पढिये
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/03/non-muslims-muslims-answer.html
इधर उधर की बातों में अपना समय बर्बाद कर रहे हो, इस्लाम को नीचा दिखाना चाहते हो तो, अल्लाह के चैलेंज का जवाब दो, मैंने हिन्दी जानने वालों के लिये 6 अल्लाह के चैलेंज तैयार किये हैं एक का भी उत्तर देदो 1400 सौ साल से इन्तजार है, तीन यहां प्रस्तुत हैं
अल्लाह का चैलेंज पूरी मानव जाति को
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/1-7.html
अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता।
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/3-7.html
अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/02/4-7.html
ऐसी पुस्तक पढो जो धर्मों के तुलनात्मक अध्यण में आपकी मदद करे, 80 में पहली कहानी एक अपाहिज औरत की इस्लाम कबूल करने फिर एक बहुत बडे डान को इस्लाम कबूल कराने की कहानी ही पढ कर दिल बाग बाग हो जायेगा, इस बात का उत्तर भी मिलेगा कि क्यूं महिलायें अधिक इस्लाम कबूल करती हैं
विश्व की 80 नव मुस्लिम महिलाओं के इस्लाम क़बूल करने की ईमान अफरोज़ दास्तातें दास्तान 'हमें खुदा कैसे मिला'छोटी सी फाइल 1,039 KB
http://www.4shared.com/file/90291497/fe7ebb77/hindi-book-hemen-khuda-kese-milihindi.html
हमारे पास आपके पढने के लिये एक किताब है
आपकी अमानत - आपकी सेवा में
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/03/armughandotin.html
आप भी कोई किताब मुझे पढवाना चाहते हों तो निसंकोच लिखें
@ शिव कुमार जी मैं आपकी बात से सहमत हूं।
@ जनाब अरुण जी, परमात्मा का संदेश हर युग मे एक ही होता है और जो धर्म, जो संदेश वकत के साथ बदल जाये वो परमात्मा का नही होता। इस धर्म मे सुधार की गुन्जाइश आज से १४३० साल पहले थी अब नही है। ज़रुरत है इसके मानने वालॊं को बदलने की।
@ मलाया जी, किस साइंस की बात कर रही है आप साइंस तो इस्लाम की किताब कुरआन से सिखता आया है। और मैं आपको चैलेंज करता हू की आप दुनिया के किसी भी धर्म की किताब पेश कर दिजिये वो साइंस के हिसाब से गलत बैठेगी सिर्फ़ कुरआन को छोड कर।
@ अभिषेक ओझा और katyayan जी, आपको इस्लाम के ताल्लुक रखती किसी भी बात की जानकारी करनी है मेरे ब्लोग इस्लाम और कुरआन पर मुझसे पुछ सकतें हैं।
www.qur-aninhindi.blogspot.com
इस्लाम के विषय में अधिक जानने के लिए देखें साइट http://www.hindusthangaurav.com
Mohammed Umar Kairanvi
aapne jo kaha bilkul sahi kaha jo bhi link aapne diye hai wo sabhi link 100% sahi hai jinme se kuch bhi hataya nahi ja sakta and na hi kuch joda ja sakta hai kyunki ye sabhi aayate kurani hai.....
and aap sabhi se meri gujaris hai ki ager aap log islam ko or jyada janana chahte hai to kuran ko hindi me padhe and Dr. Jakir Naik ki DVD's bhi sune aapko islam ke baare me sab kuch pata chal jayega.
Sacchai to yeh hai log na to apne dram ki kitaben padhte hai aur na dusron ki,bas Islam aur quran ko bewajah ghalat batate hai,meri sabhi ghair musalman bhaiyon se yehi request hai aap bhi apna dhram imandari se nibhaie aur hame bhi iman ke raste pe chalne dijie,aur Jo log kahte hai ki hm musalman development ki taraf na soch kar rudhiwadi soch rakhte hai to bara e meharbani sune Islam hamari jar hai aur hame iske sae me hi rahkar phalna phulna hai,na ke isse alag hoke ,kyunki hm musalman jante hai hm kitni bhi taraqqi kar le ,Marne ke baad hame Allah ke samne Jana hai aur har pap aur punya ka hisab dena hai.aur mere rasool prophet ke bare me bolne se pahle Islam ko achche se jaan lo ,aur Quran ko galat kahne se pahle ise achchi tarah padho aur samjho tb kisi natije pe pahuchna ,kyunki adhura sach jhoot se bhi zyada khatarnak hota hai,aur aap log to kisi ke dharm aur uske prophet pe hi ungli utha rahe hai.beshak Allah sab dekh raha hai aur achche aur galat kaam ka WO hisab karega.
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