मैंने अखबार में एक अजीब बात पढ़ी। मेक्सिको में कुछ वैज्ञानिकों ने एक इन्काई शहर# जाने के लिए कुछ मज़दूरों को साथ लिया। रास्ते में एक जगह मज़दूर अचानक रुक गए और आगे जाने से इन्कार कर दिया। इस अड़ियल व्यवहार से वैज्ञानिक बौखला गए.. और उनके बहुत हो हल्ला करने पर भी मज़दूर आगे नहीं बढ़े। घण्टों के इन्तज़ार के बाद मज़दूर फिर चलने को तैयार हो गए.. पूछने पर मज़दूरों में से एक ने बताया कि उनके इस तरह रुक जाने का कारण क्या था..
आप जानना चाहते हैं..? अगर आप अब भी पढ़ रहे हैं तो मैं मान लेता हूँ कि आप ज़रूर जानना चाहते हैं..
मज़दूर ने बताया कि वे बहुत तेज़ चल रहे थे.. इतना तेज़ कि उनकी आत्माएं पीछे छूट गई थीं।
हम अक्सर जीवन में इतना तेज़ दौड़ते हैं कि हमारी आत्मा पीछे छूट ही नहीं जाती.. खो जाती है।
मिकेलएंजेलो अन्तोनियोनी की फ़िल्म 'बियॉन्ड द क्लाउड्स' में एक चरित्र के मुख से सुनाई गई कथा।
#यह तथ्यत: ग़लत है। इंका सभ्यता का सम्बन्ध पेरू के पर्वतों से हैं.. मेक्सिको में माया सभ्यता के अवशेष हैं।
9 टिप्पणियां:
मुझे तो यह बात बिल्कुल सही लगती है, आज का इन्सान बड़ी तेजी से दौड़ रहा है. और अपनी आत्मा कहीं पीछे छोड़ आया है. महानगरों में जीवन और रिश्तों के मशीनी हो जाने के पीछे यही कारण है. हर चीज़ हर शै दिखती है पर खोजे से भी रूह नहीं मिलती.
आज की अंधी दौड में वास्तव में शरीर तो आगे बढ रहा है.....पर आत्मा पीछे रह जा रही है.....बहुत अच्छा अनुभव था उन किसानों का।
वाह , बहुत ख़ूब । आत्मा को छू गई बात ।
बिना सोचे भागने का निर्णय अगर हुआ है तो आत्मा कहां से साथ देगी ? भागने में भी आत्मा की सहमति ज़रूरी है भाई...वर्ना पहले शरीर थकेगा...और ढह जाएगा...अच्छी भली बेचारी आत्मा बेघर हो जाएगी....
इस कथा के सार को प्रतीकात्मक लेना उचित है। चूहा दौड जीवन में आदमी इंसानियत, आत्मीयता, आदर्श आदी पीछे छोडता जा रहा है अर्थात अपनी आत्मा को... क्या कुछ देर रुक कर इसपे विचार नहीं किया जाना चाहिए?
simit shabdo mai puri baat kah di apne.
आत्मा? छाया तक छूट जा रही है।
मुझे तो लगता है आत्मा आगे निकल गई , शरीर मात्र रह गया है , पीछे ?
kahi suna tha "dheere chalne mein hi safar ka aanand hai.." Jindagi koi manzil nahi, bas ek safar hai..fir jaldi kaahe ki!!
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