पिछले दिनों बेगर्स ऑपेरा पढ़ रहा था। १७२८ के लण्डन की दुनिया को दर्शाता ये वही नाटक है जिस पर आधारित कर के बर्टोल्ट ब्रेख्ट ने अपना थ्री पेनी ऑपेरा लिखा। नाटक का नायक मैकहीथ, अपनी तमाम बीवियों में से एक लूसी से ये मार्मिक निवेदन करता है- हैव यू नो बॉवेल्स, नो टेण्डरनेस, माई डियर लूसी, टु सी योर हसबैण्ड इन दिस सरकमस्टैन्सेज़?
आप ही की तरह मैं भी चौंक गया। नाटक के अंत में दिए नोट्स में बॉवेल्स को सीट ऑफ़ काइण्डनेस, पिटी और फ़र्गिवनेस बताया गया है। दया और क्षमा का सम्बन्ध आँतो से जोड़े जाने की बात मैंने पहले नहीं पढ़ी थी। आम तौर पर ह्रदय को इन भावों का आश्रय बताया गया है। इस भिन्नता के बावजूद एक बात यहाँ समान यह है कि शरीर के अंग-विशेष को एक मानवीय भाव का आश्रय बताया गया है। और यह समझ जन मानस में काफ़ी गहरे पैठी हुई है।
जैसे दिलेरी के लिए आम रूप से जिगर को ज़िम्मेदार बताया है- 'अबे जिगरा चहिये जिगरा!' पश्चिम सभ्यता में अण्डकोशों को खतरे उठाने की ज़रूरी माना जाता है- 'ही हैज़ नो बॉल्स!' भारतीय परम्परा में दिल को भय और प्रेम दोनों के लिए आश्रय बताया गया है। कुण्डलिनी तंत्र में ह्र्दय ग्रंथि में स्थित अनहत चक्र में यही दो भाव निवास करते हैं। तुलसी बाबा ये बात अच्छी तरह से जानते थे तभी बेलाग कह गए कि –'भय बिनु होय न प्रीत!'
दिल, जिगर, आँत अगर मनुष्य के पास हैं तो अन्य सभी जानवरों के पास भी हैं। और इसके प्रमाण भी मिलते हैं। आपने सुना होगा कि एक बन्दरिया ने कुत्ते के पिल्ले को पाल लिया। चूहे और बिल्ली की मोहब्बत भरी दोस्ती का वीडियो कल ही एनडीटीवी पर विनोद दुआ साहब दिखा रहे थे। भेड़िये ने मनुष्य के बच्चे को पाला, ऐसी कहानियाँ भी सुनी गई हैं।
मेरी दुविधा यह है कि क्षमा करने वाली आँत, और करुणा उपजाने वाला ह्रदय, अगर सभी कुत्ते, बिल्ली और चूहे के पास है, तो फिर मानवता क्या है? विशेषकर तब, जब कि मनुष्य ही वो अनोखा जानवर है जिसकी हिंसा का भूख और प्रजनन से स्वतंत्र भी एक अस्तित्व है।
3 टिप्पणियां:
शायद यह मानव की संस्कृति, सामाजिकता ही है जो उसे अकारण हिंसक बनाती है।
घुघूती बासूती
क्षमा करने वाली आँत, और करुणा उपजाने वाला ह्रदय, अगर सभी कुत्ते, बिल्ली और चूहे के पास है, तो फिर मानवता क्या है?
जानवरों से अलग कहां है इन्सान?
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