आतंकवाद की गुत्थी सुलझने के बजाय उलझती ही जा रही है। सूरत शहर में अब तक २० बम बरामद हो चुके हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि इसे सूरत की पुलिस की सफलता मान कर खुश हुआ जाय या ये सोचकर असफलता मान कर दुखी हो लिया जाय कि पेड़ पर और होर्डिंग पर आतंकवादी बम रखते रहे और किसी को पता तक नहीं चला। सब से रहस्यमय पहलू तो बमों के न फटने का है।
अब तो खुद सरकार की ओर ये विचार आ रहा है कि ये सारे बम पुलिस एजेन्सीज़ का ध्यान बँटाने के लिए लगाए गए थे। दिमाग की सोच को अवरुद्ध कर देने वाली बात ये है कि आतंकवादियों ने ध्यान हटाने के लिए कारगर बम क्यों नहीं लगाए? बम के धमाके होते, और लोग मरते, और आतंक फैलता.. तो क्या आतंकवादियों का मक़्सद और बेहतर तरीक़े से पूरा नहीं होता?
अब या तो आतंकवादी की यह बेहद घटिया असफलता है जिसके लिए उनके आक़ा उनकी बुरी तरह से खबर ले रहे होंगे.. “मरदूदों! बेंगलूरू और अहमदाबाद में सिर्फ़ एक-एक बम ही समय से नहीं फटा.. तो फिर सूरत में क्या अफ़ीम की पिनक में बम फ़िट किए थे.. जो एक भी नहीं फटा?” ये बात ज़रा हजम नहीं होती.. अरे कम से कम एक तो फटता! एक भी नहीं फटा..! हद है!!
(वैसे एक विचार दिमाग़ में ये भी है कि कहीं ये बम सरकार ने ही तो नहीं..? अपनी मुस्तैदी दिखाने के लिए और ध्यान बँटाने के लिए। आखिरकार एक असफलता से ध्यान बँटाने का सबसे अच्छा तरीक़ा, एक सफलता ही होता है। )
या फिर ये आतंकवादियों की जानी-बूझी नीति के तहत किया है। ये सोच कर.. “कि लो बेटा.. देखो.. अगर हम चाहें तो किसी भी शहर में (मोदी के गुजरात में भी) एक शहर में बीस-बीस बम फ़िट कर दें और सैकड़ो को हलाक कर दें। लेकिन अभी नहीं करते अभी सिर्फ़ नमूना दिखा रहे हैं.. अभी भी वक़्त है सम्हल जाओ!” अगर ये बात है तो ज़रा सोचिये हम कितनी बड़ी मुसीबत में है.. पूरी तरह से आतंकवादियों के रहमोकरम पर।
समाज के एक विशेष वर्ग की नज़र से देखा जाय जो हर मुसलमान को देशद्रोही और आतंकवादी नहीं तो कम से कम उनका मददगार तो समझता ही है, तो ये सूरते हाल भयानक है। क्योंकि उनके हिसाब आतंकवादियों का बेहद विकसित और विराट नेटवर्क है, और यदि सचमुच है तो हमें हर रोज़ एक बड़ी घटना के लिए तैयार रहना चाहिये। क्योंकि जिस हिसाब से सूरत में बम मिले हैं उस हिसाब से देश के चप्पे-चप्पे में फैले आतंकवादी हर छोटे-बड़े क़स्बे में रोज़ाना धमाके कर सकते हैं।
अगर ये धमाके नहीं हो रहे तो इसके दो वजहें हो सकती हैं। पहली तो ये कि हमारी पुलिस बहुत ही मुस्तैद और चुस्त है। सारे सम्भावित आतंकवादियों को सलाखों के भीतर किया हुआ है और उनकी आगामी गतिविधि को पहले से भाँप लेने का तंत्र तैयार किया हुआ है। ये निहायत हवाई बात है। अगर ऐसा होता तो क्या सूरत के ये सूरते हाल हो सकते थे?
और वो अपराधियों को पकड़ने में कितनी बुद्धि से काम लेती है इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगाइये कि अहमदाबाद के विस्फोट के सिलसिले में पुलिस ने हलीम नाम के जिस शख्स को पकड़ा है उस पर आरोप है कि २००२ के दंगे में अनाथ हो गए बच्चों को रिलीफ़ कैम्प के बहाने ब्रेनवाश करके जेहादी बनाने का। बताया गया है कि ये हलीम तब से फ़रार था। और ये हलीम यदि सचमुच आतंकवादियों से मिला है तो इतने दिन फ़रार रहने के बाद ठीक धमाके वाले दिन शहर में लौट आया कि लो भाई पकड़ लो मुझे? हद है! और अठारह बम अहमदाबाद में फोड़ने में सफल होने वाले आतंकवादी कितने भी मूर्ख हों पर इतने तो नहीं होंगे कि सीधे उन्ही लोगों से सम्पर्क बनायें जिन को पुलिस पहले से तड़े हुए है। तो इतना तो तय है इन सम्भावित धमाकों के न होने की वजह पुलिस की होशियारी नहीं है।
तो फिर आतंकवादी क्यों रोज़ाना हर छोटे-बड़े क़स्बे में धमाके क्यों नहीं कर रहे? क्योंकि अधिकतर पर्यवेक्षकों की बात मानी जाय तो इनका नेटवर्क बहुत्त विकसित और विराट है? तो क्या ये हम पर रहम खा कर ऐसा नहीं कर रहे? जो आतंकवादी अस्पतालों में बम विस्फोट कर चुके हैं उनके भीतर किसी भी मानवता की कल्पना बेमानी है।
तो फिर सच बात ये है कि देश का आम मुसलमान भले ही जींस के बदले अभी भी पैजामा पहनता हो, टीवी से क़तराता हो, मुख्यधारा से कटा-कटा रहता हो, और अपनी एक अलग पहचान में क़ैद रहना चाहता हो.. उस सब के बावजूद वो मासूम है। और उस पर निराधार आक्षेप लगाने वाले लोग उसे मुख्यधारा में आने में मदद करने के बजाय उसे वापस अपनी असुरक्षा के घेरे में धकेल रहे हैं।
रही बात बम फोड़ने वालों के वे आतंकवादी निश्चित ही गिने-चुने मुट्ठी भर विदेशी घुसपैठिये हैं या रोगी मानसिकता के गिने-चुने शुद्ध अपराधी हैं.. जिनका मजहब क्या है उस से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। याद रहे इस देश की दो सबसे बड़ी आतंकवादी दुर्घटनाएं जिसमें देश के दो प्रधानमंत्री शहीद हुए, किसी मुसलमान आतंकवादी ने अंजाम नहीं दी थी।
लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि हमारी पुलिस और हमारा भ्रष्ट तंत्र इन अपराधियों को पकड़ने में बुरी तरह असमर्थ है । और वो अपनी असमर्थता पर पर्दा डालने की कोशिश मासूम मुसलमानों को पकड कर करती है। जिन्हे मेरी इस बात पर अतिरंजना नज़र आ रही हो वो ज़रा आरुषि केस को याद कर लें। और ये भी याद रखें कि जिन नौकरों को अभी अपराधी की तरह प्रदर्शित किया जा रहा है उनके खिलाफ़ भी अभी भी कोई पुख्ता सबूत नहीं है।
20 टिप्पणियां:
आतंकवाद दहशत फैलाने की राजनीति का नाम है। इसलिए यकीनन इसका राजनीतिक इस्तेमाल होता है। पहले दंगों से राजनीति की सेवा करवाई जाती थी, अब आतंकवादी हमलों से। दंगों की कलई उतर चुकी है, आतंकवाद की कलई उतरने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा। इसलिए मुझे तो सूरत के मामले में शत-प्रतिशत यही लगता है कि ये मोदी सरकार के कहने पर राज्य की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा फैलाया गया प्रपंच है। हालांकि इसे साबित करना लगभग नामुमकिन है।
अभय जी लोग इतना नही समझते जितना ये नेता समझाते है. जितना हाय हुल्ला ये लोग करते है उससे वाकई एक समुदाय निशाने पर आ जाता है और ये सिर्फ़ ये दिखानेके लिये कि हम ही है जो समुदाय विषेष के साथ है ये शोर मचाते रहते है . वरना हर कौम मे जयचंदो ,अब्दुल हमीद और सैम मिलते है
'इस देश की दो सबसे बड़ी आतंकवादी दुर्घटनाएं जिसमें देश के दो प्रधानमंत्रियों शहीद हुए किसी मुसलमान आतंकवादी ने अंजाम नहीं दी थी।'
गौर करने लायक बात याद दिलायी आपने।
निर्मल जी आपने बहुत बढिया लिखा है। डेढ दर्जन से उपर बम मिले सूरत में। और एक भी विस्फोट नहीं। अब लगने लगा है कि लोक सभा चुनाव से पहले नरेन्द्र मोदी देश में सांप्रदायिक दंगा करवाना चाहते हैं। सूरत में मिल रहे बम मोदी के ही देन हैं अप्रत्यक्ष रुप से। आंतकवादी जान को खतरे में डालकर डराने के लिय बम लगायेगा। इस पर विश्वास करना मुश्किल है। यदि आंतकवदी इतने बम लगाता तो इसमें कुछ न कुछ विस्फोट जरूर कर देता। एक झूठ को छिपाने के लिये सौ झूठ बोलने पड़ते है। नरेन्द्र मोदी भी अपनी गलती को छिपाने के लिये सौ तरह के हथकंडे रच रहे हों ऐसा ही प्रतीत होता है।
मुद्दा विचारणीय है.
जितने मुँह उतनी बातें। वाह! क्या बात है।
स्वयं को जानो,यह परम्परा थी जिनकी, हुज़ूर के आस्तानें में दवा ढ़ूंढ रहे है वो/ सर्वेभवन्तु सुखिनः का घोष करते थे जो, अल्लह हू की भाषा में उनसे बात कर रहे हैं वो/ रक्त रंजित विस्तारवादी इतिहास है जिनका, इतिहास उनसे सीख़नें की सलाह दे रहें हैं वो/ पैगम्बर के आँख बन्द करते ही, नवासों औ अली को मार तख्त कब्जाया जिन्होंनें/ ऎसे मुनाफिकों को मज़हब का सिकन्दर बतला रहे हैं है वो/ परायी पत्तल चाटनॆ वाले, सुवर्ण की अपनी थाली में छेद ढ़ूढ रहे हैं वो/ बाप को माँ का बलात्कारी समझते हैं जो, बुद्धिजीवी अपने को कहलवा रहे हैं वो/......
बात विचारने योग्य है.
मासूम वाली बात जरूर मुस्कान दे गई :)
सूरत में एक भी बम न फटना और उनका यहाँ वहाँ बिखरा होना अजीब लगता है.
एक कोण यह भी है की टाइमर के स्थान पर सर्किट का उपयोग हुआ और उनकी प्रोग्रामिंग में कोई लोचा हुआ हो.
आरूषी काण्ड बताता है की पूलिस आखिर पूलिस ही रहेगी चाहे हिन्दु हो या मुस्लिम.
सूरत मे बमों का ना फटना, किसी सोची समझी हुई साजिश का नतीजा लगता है। मुझे लगता है 15 अगस्त के पहले देश मे कोई बड़ी आतंकी योजना का ताना बाना बुना जा रहा है। पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को उलझाए रखने के लिए सूरत का लोचा किया गया है। आतंकी कंही दूर अपने नैटवर्क को मजबूत करते हुए, अगली योजना पर काम कर रहे होंगे और सुरक्षा तंत्र सूरत की सफ़लता के लिए अपनी पीठ थपथपा रहा होगा।
रस्म अदायगी के लिए निन्दा,भर्त्सना,स्केच, ईनाम की घोषणा वगैरहा कर दी गयी है। मोदी सरकार कुछ दिनो मे दो चार अज्ञात लोगों को मार गिराकर एनकाउंटर की रस्म अदायगी भी कर देगी। मीडिया वाले भी थोड़े दिन शोर मचाएंगे फिर वही राखी सावंत और गड्ड़े मे राजकुमार पर लौट आएंगे और हाथ पर हाथ धरकर अगली आतंकी घटना का बेसब्री से इंतजार करते रहेंगे। सचमुच कितने बेबस है हम!
Bomb found on Amarnath yatra route. http://www.rediff.com/news/2008/jul/31jk.htm
So now Modi is also powefull in kashmir.
what say.........
इतने बम मिलना और एक का भी नहीं फूटना, कहीं न कहीं शक तो पैदा करता है। इसके पीछे लोगों में आतंक फैलाने की मंशा हो सकती है, कि कोई भी जगह हमारी पहुंच से दूर नहीं। हम जब चाहें तुम्हें पल भर में चीथड़ों में तब्दील कर सकते हैं।
ओह, बहुत हुआ बम, अब दम की बात की जाये. या कम से कम ठहरकर उनकी जो क़ायदे से फूटें, नहीं? वैसे भाइयों से अनुरोध है हवाई चप्पल संभालकर पहनें, नहीं पता चला, ससुर, उसमें भी बम खुंसा हुआ है, और हो सकता है, सिर्फ़ खुंसा ही न हो, फूट भी जाये?
ये सारे विचार मेरे मन में भी आ रहे थे .
यह भी हो सकता है की जिस सर्किट्स की बात हो रही है उसका पोरा लाट सचमुच ख़राब निकल गया हो ?संभावनाएं तो बहुत हैं -सुषमा स्वराज का बयान भी देखा जाना चाहिए.मेरे मन में यह भी बात है की नाभकीय डील को इस्लाम आतंकी पचा नही पा रहे हैं .यह कहीं उसके प्रति आक्रोश तो नही है ?पर इसके भी प्रतिवाद हो सकते हैं .लेकिन यह भी सही है कि सभी को हर कोण से बहुत सतर्क रहना होगा.
abhay ji, kaafi achha hai. is waqt sabke dimaag me yahi chhaya hai ki aakhir... aapne kai mazboot bindu uthaye hain
बोहत उम्दा लिखा है आपने। मैं तो अपने ब्लॉग पर कई दिनों से गाली खा रहा हूँ...ऐसे ऐसे कमेन्ट आ रहे थे कि बस क्या कहूँ...कमेन्ट मोडरेशन का सहारा था ..लगता था क्या लोगों के दिल में इतनी नफरत है मुसलमानों से। आख़िर जब बम ब्लास्ट नहीं होते थे तब किस बात कि चिढ थी...जो बाबर और औरंगजेब के ज़माने के कथित जुल्मो की याद दिलाई जाती थी...खैर....आप की पोस्ट पढी जान में जान आयी...ये ghettoisation, ये बढ़ते फासले कैसे कम होंगे!
अभय भाई,
एक साल पहले मैंने अपने इबीबो ब्लॉग पर लगभग यही लिखा था जो आपने यहाँ कहा है. कुछ लोगों के पाप के लिए किसी भी समुदाय मात्र को दोषी ठहराना जायज़ नहीं है.
बम इसलिए नहीं फट रहे हैं क्योंकि वह किसी उच्च कोटि की सैनिक आयुध फैक्ट्री में नहीं बने हैं. वह घटिया मनोवृत्ति के हत्यारों ने तस्करी के रौ-मटीरियल से चोरी-छुपे बनाए हैं. जितने फट गए उतने ही बहुत हैं. जिस दिन सारे फट जायेंगे उस दिन जनता के गुस्से के आगे काफी निरपराध भी भस्म हो जायेंगे.
रही बात हत्यारों के धर्म की, तो हत्यारा किसी भी धर्म का हो उसका पाप कम नहीं हो जाता. इसके अलावा अगर एक आम धारणा बनी है तो हमें गहराई तक जाकर यह ज़रूर देखना पडेगा की ऐसा क्यों हुआ. पंजाब के आतंकवाद के आगे जब रिबेरो जैसे मशहूर अधिकारी भाग खड़े हुए तो उस आतंकवाद को एक सिख (के पी एस गिल) और उसकी सिख टीम ने ही कब्जे में लिया. जितने सिख आतंकवाद के साथ थे उससे कहीं अधिक उसके ख़िलाफ़ न सिर्फ़ लादे बल्कि जान दे गए. मिजोरम आदि के इसाई आतंकवादियों की बात करें तो भी कभी कोई चर्च खुलेआम हत्याओं के समर्थन में नहीं आया. हिन्दुओं की तो बात ही क्या है. बजरंग दल के गुंडे तो दरअसल धर्म के सबसे बड़े दुश्मन हैं और कभी भी प्रमुख धार्मिक नेताओं का समर्थन नहीं पा सकते.
मगर लोगों की ग़लत धारणाएं बनती हैं जुम्मे की नमाज़ के बाद के बाद आने वाले भड़काऊ बयानों से जिन्हें इस्लाम के नाम पर परोसा जाता है. यह बनती हैं ओसामा, "सद्दाम मामू", गद्दाफी और मुशर्रफ़ जैसे निर्दयी तानाशाहों को हीरो बनाने से. मुसलमानों के असहिष्णु होने का संदेश जाता है जब तसलीमा नसरीन और सलमान रश्दी की जान भारत में खतरे में पड़ती है और उनको इस "अतिथि देवो भवः" देश से बाहर जिंदगी गुजारनी पड़ती है, ग़लत इमेज बनती है जब गांधी की अहिंसा की धारणा को इस्लाम-विरोधी करार दिया जाता है.
मुझे ग़लत न समझें लेकिन जब होली के दिन कुछ लोग बुर्राक सफ़ेद कपड़े पहन कर तमंचे लेकर रंग डालने वाले बच्चों को "ये हिंदू पागल हो गए हैं" कहते हुए धमकाते हैं तब पूरा समुदाय बदनाम होता है और तब भी जब कश्मीर में AK-४७ चला रहे आतंकवादियों को बचाने को बुर्काधारी महिलायें ढाल बनकर चल रही होती हैं. जब लाखों पंडितों के पुश्तैनी घरों के दरवाज़े पर एक तारीख चस्पा कर दी जाती है की धर -इसके बाद यहाँ रहे तो ज़िंदा नहीं रहोगे - तब इस्लाम बदनाम होता है. अफ़सोस की ऐसे गंदे काम करने वाले हैवानों के ख़िलाफ़ दबी ढकी जुबां में कुछ सुगबुगाहट, कवितायें आदि तो मिलती हैं मगर करारा जवाब (गिल जैसा) कभी नहीं दिखता है.
धन्यवाद.
अभय जी । आपकी ये विचार शक्ति वाक़इ क़ाबिले तारिफ़ है। कंइ लोगों के मन में यही सवाल है। आपकी इस बात को रख़ने के लिये मैं आपको धन्यवाद देना चाहुंगी। मैं अशोकजी,अनिलजी,राकेशजी, संजयजी, निलीमाजी,इन्डीअन और आपको कमेन्ट देनेवालों सभी का धन्यवाद करना चाहुंगी।
Abhayji jo sawal aapne kiya ki bombs kyu nahi fatte wahi sawal janta ke manas me hai magar aapne ees sawal ko jees andaz me prastut kiya usse yahi lagata hai ki shayad aap chahate the ki kam se kam ek ya kuchh bombs fatt jatte jisse masoon aur nirdosh logon ki janein jaati. Pata nahi kyu ees blog me ektarafi batein likhi jati hai bhale hi oon baton ka koi prayaksh ya paroksha praman nahi hota.... mera sawal ye hai ki RSS/Bajrang Dal hunduwo ke pratinidhi kaise ho gaye jab ki unse sambandhit party BJP satta ke kahin bhi kareeb nahi hai agar hinduwo ka samarthan hota to do tihai bahumat se jeet ke aati BJP. magar jees tarah dharamnirpekshta ki aad me khulamkhula sampradayikta ka khel khela ja raha hai chand geene chune pragatishil logo dwara wo lagta hai nishchit roop se een sangathano ko fayda jarur pahunchayenge
Chand sawal hai pragatisheel logon se ye kahate huwe ki RSS/Bajrang Dal aur BJP sampradayik sangathan hai-
1. Kisi videshi desh me koi cartonist galat harkat karta hai to humare desh me pradarshan kyu aayojit kiya jata hai aur fatwa jari kiya jata hai tab ye dubake huwe log bahar kyu nahi aate jo apne aapko gair sampradayik kahate hai
2. Jab koi Mualavi ya majhabi neta fatwa jari karta hai ya anargal bakwas karta hai tab inka virodh kyu nahi hota jabki koi bahusankhayak varag ka neta ya aur koi galat baat karta hai tab halla gulla macahaya jata hai
3. kya police sirf alapsankhayak varag ko hi pareshan karati hai? agar police jaanch padtal ke liya kisi ko hirasat me leti hai to police ke paas pahale saboot hona chahiye? bina saboot agar hirasat me nahi le sakati alapsankhayk varag e log ko to ye sabpe lagoo hona chahiye...jabki police ke hatho julm sab pe hota hai
Kisi bhi bomb blast ya aatankwadi ghatna ke baat ki karwai na kewal rajya sarkar balki kendra sarkar ki agencies karati hai isliye aaj ke ees media tantra ke jamane me sarkari sasak aisi bhul nahi kar sakta ki khud bomb lagaye ..janch padtal kendra ki khufia agency bhi karati hai ye rajya sarkar ko pata hota hai isliye ye kahana ki ye sab kuchh rajya sarkar ne karaya hai na kewal bewkufi ya murakhtapurvak bat hai balki pakchhpat purvak bina kisi logic ya tarak ke yukat hai
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