ऐसा सुना है कि आदमी को पाँच प्रकार के भोजन की ज़रूरत होती है।
१. पृथ्वी तत्व; वह भोजन जो ठोस आकार में हो.. आम तौर पर भोजन के नाम पर हम जो खाते हैं वो सभी इस क़िस्म में गिना जा सकता है।
२. जल तत्व; पीने योग्य जितने भी द्रव्य हमारे भीतर प्रवेश करते हैं वे सभी.. पर मूल तौर पर पानी.. जो जीवन के लिए अनिवार्य है।
३. वायु तत्व; हमारी साँस.. जो निरन्तर चल रही है.. कभी तेज़, कभी धीरे। इस भोजन में ज़रा भी बाधा पड़ते ही हम दम तोड़ देते हैं। दम यानी हवा यानी साँस।
४. अग्नि तत्व; सूर्य का प्रकाश। यह भी हमारे जीवन और स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य तत्व है। सूर्य के प्रकाश से दूर पलने वाले बच्चे ज़िन्दा तो रह जाते हैं पर नितान्त तेजहीन। तेज यानी प्रकाश।
ये खुराक हमारे शरीर के लिए कितनी ज़रूरी है इसको इस बात से ही समझा जा सकता है कि उत्तरी अक्षांशो पर रहने वाले मनुष्य ने अपने त्वचा, केश और आँखों तक में ऐसी व्यवस्था की ताकि कम समय में अधिक से अधिक प्रकाश ग्रहण किया जा सके। जैसे कम रौशनी में हम कैमरे का अपर्चर पूरा खोल देते हैं। वैसे इस की अधिकता घातक भी हो सकती है इसीलिए भूमध्य के पास रहने वाले मनुष्य मेलेनिन बढ़ा कर त्वचा, केश आदि के पोरों से प्रकाश का प्रवेश बंद रखते हैं।
अक्सर उपवास आदि में लोग पृथ्वी तत्व से परहेज़ करके अपने भीतर की पार्थिवता को क्षीण कर के तेज को प्रबल करने की कोशिश करते हैं। रोज़े और निर्जल व्रत में लोग जल तत्व से दूर रह कर तेज के और क़रीब जाना चाहते हैं।
इन चार तत्वों के अलावा पाँचवे प्रकार का भोजन, तत्व की शकल में तो नहीं है पर यदि मान लीजिये कि वो आकाश तत्व है.. तो आप की "क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा" की सूची पूरी हो जाएगी।
५. वैसे पाँचवा तत्व साधुगण बताते हैं – सत्संग। महंतो-महात्माओं की भाषा में इसका अर्थ दरी पर बैठकर उनका प्रवचन सुनना होता है। पर यदि इसे व्यापक अर्थ में समझा जाय तो सत्संग का अर्थ अपने जीवन के सामाजिक आयामों को विकसित करना, एक जानवर से इतर अपनी सार्थकता को खोजना और इस विराट ब्रह्माण्ड में अपनी जगह को ठीक-ठीक पहचानना। इस तत्व की खुराक को समझते तो सभी हैं पर सत्संग के नाम पर अलग-अलग और अक्सर विपरीत प्रकृति की सामग्रियों का सेवन करते हैं।
अब देखिये न ये ब्लॉग लिखना भी एक प्रकार का सत्संग है पर सभी की अपनी-अपनी व्याख्या है।
8 टिप्पणियां:
इस सत्संग में तो मैं भी शामिल हूं।
अभय बाबू,
पहले के चार तत्वों से जीम तो लूँ,
फिर सत्संग में आता हूँ..भूखे भजन न होंहिं गोपाला
ये तत्व आपने बताये थे जब हम लोग ठहल रहे थे राजीव टंडनजी के साथ कानपुर में। हमें याद हैं।
बहुत दिनों बाद सत्संग में लौटे अभया नन्द महराज की जय।
chaliye satsang ka anand ham bhi le rahe hain... ye aaj maloom hua !
अपनी व्याख्या कहती है कि ब्लाग लिखना तो प्रवचन कहलायेगा।
ब्लाग पढना सत्संग हो सकता है।
तब तो एक पंथ दो काज। ब्लॉगिंग भी सत्संग भी। हम ब्लॉगर भी हुए, सत्संगी भी।
बढ़िया है अभय जी ...अच्छा लगा ..धन्यवाद
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