बीटी कपास की खेती करने वाले ३०००० किसान घाटे में डूब कर कर्ज़ के जाल में फंसे। उन्हें आत्महत्या तक करना पड़ी। इसी फसल के पेड़ और कपास के फल खाकर १६०० भेड़ें मर गई। जैव परिवर्धित बीजों (बीटी बीज) के कितने खतरनाक प्रभाव पड़ते हैं इसके ये दो स्थूल उदाहरण हैं।
पटना से प्रमोद रंजन द्वारा संचालित जन विकल्प नाम के एक पत्रिका आधारित ब्लॉग में सचिन कुमार जैन बता रहे हैं..कि अंतत: भारत दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया जिसने जैव परिवर्धित खाद्यान्न उत्पादन के ज़मीनी परीक्षण की अनुमति दे दी। इसके अन्तर्गत अप्रैल २००८ तक ११ स्थानों पर चार किस्म के बीटी बैंगन के उत्पादन के परीक्षण किये जाएंगे। मानव सभ्यता के लिये यह एक खतरनाक कदम हो सकता है।
इस बेहद ज़रूरी लेख में पढ़िये कि कैसे एक तरफ तो भारतीय सरकार हेपेटाईटस-बी जैसी बीमारी से निपटने के लिये कार्यक्रम बना रही है तो वहीं दूसरी ओर इसी तरह की बीमारी फैलाने वाले कालीफ्लोवर मोसियेक वायरस को बीटी बैंगन के जरिये मानव शरीर में प्रवेश कराने की अनुमति बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को दे रही है।
हिंदी में इस तरह की सूचनाएं आ रही हैं अच्छी बात है.. धन्यवाद है प्रमोद रंजन और सचिन कुमार जैन को.. यह रहा लिंक
4 टिप्पणियां:
गाय मार कर जूता दान ही भारत की सभी सरकारों की असली फितरत है. इस पर हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
चिंताजनक, दुर्भाग्यपूर्ण.
बिना पूर्ण शोध के इन बीजों को किसानों को नहीं बेचना चाहिये था ।
घुघूती बासूती
जानकारी के लिये बहुत धन्यवाद अभय।
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