शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

गेम




देखो तो ये क्या हुआ है.. !
क्या.. ?
देखो तो..!
..एक मिनट..
इतना कहकर भी अजय अपने लैपटॉप में नज़रें गड़ाकर कुछ टाइप करता रहा। शांति ने उसकी नज़रें अपनी तरफ़ उठने का कुछ पल इन्तज़ार किया। पर अजय का एक मिनट शांति के एक मिनट से कहीं ज़्यादा लम्बा होता गया...
क्या कर रहे हो.. ?
शांति के सवाल के बदले अजय की तरफ़ से उसके गले से एक ऐसी आवाज़ निकली जिसका शांति के सवाल, उसकी उपस्थिति, समय, माहौल, मौसम, साल- किसी भी चीज़ से कोई सम्बंध नहीं था-
.. ह्म्म.. ?
हम्म की वह ध्वनि पूरी तरह स्वतंत्र थी। उसका कुछ भी अर्थ किया जा सकता था जबकि उसका कुछ भी अर्थ नहीं था। कई बार हम्म की यह ध्वनि रेलगाड़ी के इंजन की तरह होती है, इंजन निकल जाने के थोड़ी देर बाद पीछे के किसी डब्बे से एक जवाब उतरता है। शांति ने फिर से उस सम्भावी पुछल्ले जवाब के उतरने का इंतज़ार किया पर व्यर्थ.. उसे नहीं आना था.. नहीं आया। काम करते हुए अजय का ऐसा ही हाल रहता है।

दोपहर से शांति की गरदन में एक अजीब सी जलन सी हो रही थी। घर लौटने के बाद उसने आईने में देखने की कोशिश की, पर जलन की जगह गरदन में थोड़ी पीछे की तरफ़ थी, जिसे बहुत गरदन घुमाने पर भी शांति देख नहीं सकी। गरदन की वो ही जगह अजय को दिखाने के लिये उसकी तवज्जो चाह रही थी, जो मिली नहीं। एक बार फिर से आईने के आगे खड़े होकर एक कोशिश की। फिर नाकामी के बाद दराज़ में से एक छोटा हाथ का आरसी निकाल कर उसे गरदन के पीछे रख कर और अपने आप को दो आईनों के बीच में रखकर, एक मुश्किल कसरत के बाद उसे नज़र आया कि छोटे हलके लाल दानों का एक चकत्ता सा है जहाँ से बार-बार जलन और खुजलाने की अकुलाहट उठ रही है। शांति ने अकुलाहट को ज़ब्त किया और रात के खाने का इंतज़ाम करने रसोई में चली गई।

कुछ देर बाद जब शांति कमरे में लौटी तो अजय वहाँ नहीं था। लैपटॉप के मुखड़े पर स्क्रीनसेवर झलक रहा था। और बाहर के कमरे से टीवी की आवाज़ आ रही थी। अचरज, पाखी और अजय तीनों मैच देख रहे थे। अजय के सामने जाकर शांति ने अपने बालों को एक हाथ से गरदन से हटाकर गरदन दूसरी तरफ़ घुमा का अपना प्रस्ताव रखना ही चाहती थी कि उसके कुछ बोलने के पहले ही अजय और बच्चे चिल्लाने लगे- आउट- आउट!! पीटरसन आउट हो गया था। शांति भी एक पल के लिये अपनी उलझन भूलकर, भारत की सम्भावित विजय की कल्पना में सुख पाने लगी। मायूस पीटरसन ने पैविलयन की तरफ़ चलना शुरु किया और ब्रेक हो गया। साथ ही अचरज को मम्मी को देखकर अपनी भूख की याद आ गई। किसी भी माँ की तरह शांति के लिए भी बच्चे की भूख के आगे अपनी तकलीफ़ कोई मायने नहीं रखती थी। माता जी फ़ौरन रसोई में लौटकर अपने लाल के लिए पौष्टिक भोजन का इन्तज़ाम करने लगीं। गरदन की जलन का मसला एक बार फिर से टल गया।

देर रात खाने का सारा पसारा समेटने के बाद शांति जब कमरे में लौटी तो इण्डिया मैच जीत चुका था। बच्चे अपने कमरे में बचे हुए होमवर्क को निबटा रहे थे और अजय बिस्तर पर बैठकर अपने फोन के साथ मसरूफ़ था। अजय को अकेला पाकर शांति को फिर से अपनी गरदन की जलन की याद हो आई। उस का ध्यान बँटाने से पहले शांति ने एक बार पूछ ही लिया..
क्या कर रहे हो..?
अजय की तरफ़ से फिर वही अव्यक्त की अभिव्यक्ति हुई - हम्म..
बिज़ी हो.. ?
इसका जवाब फिर एक दूसरे ऐसे शब्द से हुआ जो देश-काल की परिधियों से पार अव्यक्त के संसार का वासी है - एक मिनट।
शांति को लगा कि अजय फिर से किसी दफ़्तरी मुश्किल में उलझा हुआ है और किसी मेसेज का जवाब देने में मसरूफ़ है। शांति ने झांक कर देखा- अजय अपने फ़ोन पर एक मोबाईल गेम खेल रहा था।
तुम गेम खेल रहे हो..? शांति के बदन का सारा ख़ून उसकी सर की तरफ़ दौड़ने लगा।
हाँ..
और इसीलिये तुम्हें मेरी तरफ़ देखने की फ़ुरसत नहीं है..?
शांति के गरम सुर ने अजय को अचानक सावधान कर दिया। वो अधलेटा से सीधा हो गया।
नहीं.. गेम तो मैं अभी..
कभी काम कर रहे हो.. कभी मैच देख रहे हो.. कभी गेम खेल रहे हो.. सब कर रहे हो .. बस एक मेरी तरफ़ ही नहीं देख रहे हो..?
देख तो रहा हूँ.. तुम्हारी तरफ़.. क्या बात है.. ?
नहीं! तुम नहीं देख रहे हो मेरी तरफ़.. !!
शांति.. बताओ तो बात क्या है..
कुछ बात नहीं है..!
जिस से सबसे अधिक अपेक्षा रहती है उसी से उपेक्षा मिलने से उसका जी एकदम खिन्न हो गया। एकाएक उसे अपना पति जिसे वो अपनी सबसे क़रीबी और प्रियतम दोस्त मानती रही है, किसी अजनबी सा लगने लगा। अजय ने मौक़े की नज़ाकत को भाँपते हुए फिर से पूछा- क्या हुआ बताओ न.. !?
शांति ने कोई जवाब नहीं दिया। बाथरूम में गई और भाड़ से दरवाज़ा बंद कर लिया। आईने में अपनी शकल देखी और न चाहते हुए और बहुत रोकते-रोकते भी गला रुंध गया और आँसू बह निकले।

अजय कुछ देर तक शांति का इंतज़ार करता रहा। जब बहुत देर के बाद भी शांति बाहर नहीं आई तो अजय का हाथ वापस अपने मोबाईल पर चला गया। शांति जब बाथरूम से बाहर निकली तो अजय सर झुकाए कीपैड पर उंगलियों की कसरत कर रहा था। आँसुओं के साथ जितना कोप बाहर निकला था, कुछ उतना ही सा कोप वापस उस के मन में जा बसा। उसे देखते ही अजय का चेहरा उस चोर जैसा हो गया जो चोरी करते पकड़ा गया हो।

तमककर शांति ने लैम्प बुझा दिया और दूसरी ओर मुँहकर के लेट गई। कुछ देर की चुप्पी के बाद अजय की आवाज़ आई- आई एम सॉरी शांति। पर इतना काफ़ी नहीं था। शांति के बदन में कोई हरकत नहीं हुई। बहुत देर तक शांति न जाने क्या-क्या सोचती रही और दूसरी ओर मुँह फेरकर बहुत देर तक अपनी उदासी में उतराती रही। फिर किसी एक पल में अजय का बायां हाथ शांति के बायें हाथ के ऊपर आ कर रख गया। शांति ने हाथ को झटक दिया। कुछ देर बाद बहुत हौले से उसकी आवाज़ आई- सॉरी। और कुछ क्षण बाद एक बार फिर आया उसका हाथ। इस बार शांति ने झटका नहीं। अजय का हाथ धीरे-धीरे अनायास ही उसकी गरदन तक पहुँचा। और फिर अजय ने पूछा.. ये तुम्हारी गरदन पर क्या हुआ है?


***

(इस इतवार दैनिक भास्कर में छपी) 

3 टिप्‍पणियां:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

अपनी सी लगी कहानी। दिल को छूती, सचेत करती।
..आभार।

बेनामी ने कहा…

oh

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अवलोकन के बाद शब्द निकलने में समय लगता है।

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