बोधिसत्त्व की एक ताज़ी कविता:
घरे-घरे दौपदी, दुस्सासन घरे-घरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
गली-गली कुरुक्षेत्र, मरघट दरे-दरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
देस भा अंधेर नगर, राजा चौपट का करे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
सीता भई लंकेस्वरी, राम रोवें अरे-अरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
राजा दसरथ भुईं लोटैं, राज करे मंथरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
आम गा महुवा गा, अब त बस बैर फरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
कोयल मोर मूक भए, दादुर टर-टर टरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
ऊपर से कुछ बात, और कुछ बा तरे-तरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
- बोधिसत्त्व
18 टिप्पणियां:
भगवान हम सबको क्षमा करे।
बहुत सही. एक नंबर :)
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे
छेदश्चन्दनचूतचम्पक वने, सेवा करीर द्रुमे,
हिंसाहंसमयूरकोकिलकुले, काकेषु लीलारति:।
मातङ्गेनखरक्रयसमतुला कर्पूरकार्पासयोः
एषा यत्र विचक्षणा गुणिगणे, देशाय तस्मै नमः।।
एक पंक्ति और जोड़ रही हूं।
राम भए रावण सब सीता रोवें अरे-अरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
बहुत बढ़िया!
या फिर,
राम रहे राम ही, सीता रोए अरे-अरे ।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
घुघूती बासूती
दिलचस्प......
रावण इहाँ रावण उहाँ, परजा का करे
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे
जय हो........
प्रिय बंधुवर
बहुत रोचक कविता है , पढ़ने का अवसर देने के लिए आभार !
~*~नव वर्ष 2011 के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ब्लॉग दुनिया में बांह फैलाकर
हम सब आपका अभिनन्दन
करतें हैं
हरे हरे। खूब फ़रे।
पढ़ि के हंसि देत हैं,बोधिसत्त्व का करे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे।।
वाह...वाह...वाह...
क्या बात कही है...
करारा प्रहार...सुन्दर व्यंग्य और कविता ...क्या कहने...
लाजवाब कविता ...मन आनंदित हो गया पढ़कर...
बहुत सुंदर ..अच्छी कविता...धन्यवाद
रीतेश
aaj is kavitaa ko khoob gaya. laga ki kisi film ke parde par utaar dun...music me maahir hota to dhun bhee lage haath taiyaar kar deta.
वाह जी वाह
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे
जबर्दस्त यति-गति वाला पद्य।
आनंदम् आनंदम्
बोधिभाई जिंदाबाद ...
रचना नीक लाग , लुभाऊ लाग ! अवधी बिलाग पै यहिका रखा चाहित है . यहिते अनुमति मांगे आवा अहन , साभार अभय-बोधि यहिका रखब . बड़ी मेहरबानी भाय !
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