गुरुवार, 1 जुलाई 2010

इब्राहिम से तीन धर्म

यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म एक ही परम्परा के धर्म हैं। प्राचीन काल में पश्चिमी एशिया में तमाम क़िस्म की प्रजातियां और उनकी सभ्यताएं पनप रही थीं। उन्ही में से एक में से निकल आए थे इब्राहिम। पहले उनका ठिकाना आज के इराक़ और तब के चाल्डिया के एक नगर में था। ईश्वर ने प्रेरणा देकर उन्हे पश्चिम में कनान यानी आज के इज़राईल/फ़िलीस्तीन की ओर भेज दिया। ये इब्राहिम ही तीनों धर्मों के मूलपुरुष हैं और इन में पूज्य हैं। इन्ही की परम्परा में आगे चल कर मूसा हुए जिन्होने दस आदेश/कमान्डमेन्ट्स पाए।

इन के बीच और दूसरे पैग़म्बर आते रहे, जिनकी इन यहूदियों ने वैसे ही स्मृति बनाए रखी जैसी कि भारतभूमि में ब्राह्मणों ने अवतारों व ऋषियों की। उनकी परम्परा में ये बातें थीं कि आगे और रसूल आएंगे जो ईश्वर का संदेस लाएंगे। उनके चिह्न व स्थितियों आदि की भी भविष्यवाणी की गई थी। ईसा भी यहूदी थे, एक दिन उन्होने घोषणा कि वे ईश्वर के पुत्र हैं और ईश्वर का राज्य बस आने ही वाला है। जिसे लोगों ने नये मसीहा का उद्घोष समझा लेकिन ज़्यादातर यहूदियों ने उन्हे अपना रसूल नहीं माना। उनके अनुयायी उन्हे यहूदियों में नहीं दूसरी प्रजातियों में मिले। हालांकि वे इब्राहिम और यहूदियों के धर्मग्रंथ को प्राचीन विधान के नाम से उतनी ही श्रद्धा देते हैं जितने कि नए विधान यानी बाईबिल को। मगर ईसा को ईश्वरपुत्र मानते हैं।

तक़रीबन छै सौ साल बाद अरब में, क़बीलाई अरबों के बीच से एक आदमी उठ खड़ा होता है जो आदम, नूह, इब्राहिम, मूसा और ईसा की परम्परा में ही अपने को अगला रसूल बताता है। वह वही सब कहानियां सुनाता है जो यहूदियों के प्राचीन विधान में दी हुई है, जिसे ईसाई भी मानते हैं। वो कहता है कि यहूदी और ईसाई दोनों इब्राहिम के असली धर्म से भटक गए हैं, उन के ज़रिये ईश्वर उन्हे सच्चे मार्ग पर लौट चलने की ताक़ीद कर रहा है। यहूदी और ईसाई उन की बात नहीं मानते। मगर इस व्यक्ति-मुहम्मद के द्वारा बताया गया 'असली प्राचीन धर्म' इस्लाम के नए नाम से विख्यात होता है और दूर-दूर तक फैल जाता है। मुहम्मद ये भी बताते हैं कि अरब जन असल में इब्राहिम की उस दासी से उत्पन्न पुत्र इश्माईल की संताने है, जिसे निर्जन रेगिस्तान में छोड़ दिया गया था।

इब्राहिम के द्वारा बताई गई बहुत सारी बातें तीनों धर्म मानते हैं लेकिन यहूदी और इस्लाम धर्म में अधिक साम्य है। ईसाईयों में बहुत सारे ऐसे नए तत्व हैं जो यहूदियों में नहीं थे, और न ईसा ने उनकी चर्चा की है। जबकि इस्लाम में एकेश्वरवाद, खाने-पीने की पाबन्दी, एक आत्मश्रेष्ठता का भाव, परसेक्यूशन कौम्पलेक्स, ख़तना आदि बहुत सी चीज़े हैं जो यहूदियों सी हैं; और ये टोपी भी।



दुनिया के तीन प्रमुख धर्मों से सम्बन्धित यह पोस्ट, असल में बज़ पर मुनीश शर्मा के इसरार पर टिप्पणी के रूप में लिखी गई थी जो अब सतीश पंचम के इसरार पर यहाँ डाल दी गई है।

26 टिप्‍पणियां:

Saleem Khan ने कहा…

जनाब निर्मल साहब! पहले तो आप यह दुरुस्त कर लें मुस्लिम धर्म नाम का कोई धर्म नहीं है और अगर आपका मुराद मुसलमान के धर्म से है तो वह है "इस्लाम" जिसका अर्थ होता है शांति !

बाकी पता करने के लिए आप मेरे ब्लॉग पर पधारें !

swachchhsandesh.blogspot.com
स्वच्छ्संदेश.ब्लागस्पाट.कॉम

अभय तिवारी ने कहा…

बस इतनी सी बात, चलिये ठीक करे देता हूँ। वैसे
इस्लाम का दूसरा अर्थ समर्पण भी होता है।

S.M.Masoom ने कहा…

निर्मल साहबयहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म एक ही परम्परा के धर्म हैं। बात सही है क्योंकि तीनो अल्लाह की अलग अलग किताबों पे विश्वास रखते हैं. अल्लाह ने हिदायतें धीरे धीरे दी थीं, मोसेस को १० हिदायतें, इसा को उस से अधिक और कुरान मैं हिदायतें पूरी कर दीं. कुरान मैं वोह सब है जो पहले की अल्लाह की किताबों मैं मिलता है और उसमें , बहुत सी नयी हिदायतें भी हैं..

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

यहूदी और इस्लाम धर्म में अधिक साम्य होने के बावजूद इतनी कटुता क्यों कर ?.....बस यही यक्ष प्रश्न तत्काल मष्तिष्क में आ रहा है |
जानकारी के लिए शुक्रिया |

योगेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा…

एक ब्लोगर साहब काशिफ अली जी के ब्लॉग मैंने कभी कमेन्ट किया था, उन्होंने जवाब में मेल किया, मेल काफी विस्तृत था और उसमें कई बातें उन्होंने मुझसे शेयर की परन्तु पहली लाईन क्या थी :

योगेन्द्र जी आपको पहली बात तो ये बता दूँ की आपने "कुरान" को गलत लिखा है ये "कुरान" नहीं "कोरान" होता है | ;-)

सलीम खान जी भी कासिफ भाई को अच्छी तरह जानते हैं |

Amitraghat ने कहा…

"बढ़िया पोस्ट....हर मनुष्य का अपना -अपना धर्म होता बाकि सब तो रीतियाँ हैं..."

अभय तिवारी ने कहा…

क़ाफ़ और रे के बीच कोई वाव नहीं है। फिर भी लोग कोरान बोलना चाहते हैं तो उस में हर्ज कोई नहीं। लेकिन मेरी समझ में वह सही नहीं है।

S.M.Masoom ने कहा…

प्रवीण त्रिवेदी जी मोसेस नबी ने जप पैग़ाम दिया, उसको आगे बढाया इसा ने, लेकिन मोसेस कौम ने इसा को नहीं माना. इसी तरह इसा ने जो पैग़ाम दिया , उसको आगे बढाया मुहम्मद(स) ने , लेकिन उसको इसा की उम्मत ने नहीं माना. यह तीनो मज़हब अल्लाह की किताबों पे यकीन रखते हैं, इस लिए इन मैं समानता है.

सत्य गौतम ने कहा…

जय भीम आप लोग अम्बेडकर साहित्य भी पढ़े

Shah Nawaz ने कहा…

सनातन धर्म इन तीनो धर्मों से भी पुराना है, जिसमें मनु के बारे में लिखा गया है. अगर ध्यान से देखा जाए तो मनु और नोहा तथा नुह एक ही व्यक्ति के नाम हैं. अगर इस थ्योरी पर भरोसा किया जाए तो पता चलता है कि सनातन धर्म सबसे पुराना है और वही बात में चल कर अलग-अलग धर्मों में तब्दील हुआ.

बेनामी ने कहा…

{महमूद एंड कम्पनी ,मरोल पाइप लाइन ,मुंबई द्वारा हिंदी में प्रकाशित कुरान मजीद से ऊदत } इस्लाम के अनुसार इस्लाम के प्रति इमान न रखने वाले ,व बुतपरस्त( देवी -देवताओ व गुरुओ को मानने वाले काफिर है ) 1................मुसलमानों को अल्लाह का आदेश है की काफिरों के सर काट कर उड़ा दो ,और उनके पोर -पोर मारकर तोड़ दो (कुरान मजीद ,पेज २८१ ,पारा ९ ,सूरा ८ की १२ वी आयत )! 2.....................जब इज्जत यानि , युद्द विराम के महीने निकल जाये ,जो की चार होते है [जिकागा ,जिल्हिज्या ,मोहरम ,और रजक] शेष रामजान समेत आठ महीने काफिरों से लड़ने के उन्हें समाप्त करने के है !(पेज २९५ ,पारा १० ,सूरा ९ की ५ वी आयत ) 3...................जब तुम काफिरों से भिड जाओ तो उनकी गर्दन काट दो ,और जब तुम उन्हें खूब कतल कर चुको तो जो उनमे से बच जाये उन्हें मजबूती से केद कर लो (पेज ८१७ ,पारा २६ ,सूरा ४७ की चोथी आयत ) 4............निश्चित रूप से काफिर मुसलमानों के खुले दुश्मन है (इस्लाम में भाई चारा केवल इस्लाम को माननेवालों के लिए है ) (पेज १४७ पारा ५ सूरा ४ की १०१वि आयत ) .........................क्या यही है अमन का सन्देश देने वाले देने वाले इस्लाम की तस्वीर इसी से प्रेरित होकर ७१२ में मोह्हम्मद बिन कासिम ,१३९८ में तेमूर लंग ने १७३९ में नादिर शाह ने १-१ दिन मै लाखो हिन्दुओ का कत्ल किया ,महमूद गजनवी ने १०००-१०२७ में हिन्दुस्तान मै किये अपने १७ आक्रमणों मै लाखो हिन्दुओ को मोट के घाट उतारा मंदिरों को तोड़ा,व साढ़े ४ लाख सुंदर हिन्दू लड़कियों ओरतो को अफगानिस्तान में गजनी के बाजार मै बेच दिया !गोरी ,गुलाम ,खिलजी ,तुगलक ,लोधी व मुग़ल वंश इसी प्रकार हिन्दुओ को काटते रहे और हिन्दू नारियो की छीना- झपटी करते रहे {द हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया एस टोल्ड बाय इट्स ओवन हिस्तोरिअन्स,लेखक अच् ,अच् एलियार्ड ,जान डावसन }यही स्थिति वर्तमान मै भी है सोमालिया ,सूडान,सर्बिया ,कजाकिस्तान ,अफगानिस्तान ,अल्जीरिया ,सर्बिया ,चेचनिया ,फिलिपींस ,लीबिया ,व अन्य अरब देश आतंकवाद के वर्तमान अड्डे है जिनका सरदार पाकिस्तान है क्या यह विचारणीय प्रश्न नहीं की किस प्रेरणा से इतिहास से वर्तमान तक इक मजहब आतंक का पर्याय बना है ???????????????

बेनामी ने कहा…

@Shahnawaz
मुसल्मानों को सनातन धर्म स्वीकार कर लेना चाहिए
बोलो जय श्रीराम

बेनामी ने कहा…

-सउदी अरब रुपी चकले मे सैक्सियत (शरियत) के नाम पर मिस्यार ( व्यभिचार) को सरकार की मान्यता प्राप्त है.
उमरा की आड़ में मिस्यार का धंधा फलफूल रहा है.

बेनामी ने कहा…

-सउदी अरब रुपी चकले मे सैक्सियत (शरियत) के नाम पर मिस्यार ( व्यभिचार) को सरकार की मान्यता प्राप्त है.
उमरा की आड़ में मिस्यार का धंधा फलफूल रहा है.

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

अब तो ब्लोग जेहाद शुरु हो चूका है. हमारी अंजुमन, लखनऊ ब्लोगर एसोसियेशन व इनके मुसलमान सदस्य ब्लोग बना- बनाकर हिन्दू धर्म को गालियाँ दे रहे हैं तथा इस्लाम की सैक्सियत (शरीयत) का खुला प्रचार कर रहे हैं. सैक्सियत के नाम पर चार विवाह करने का लालच देकर पुरुषों को इस्लाम अपनाने के लिए उकसाया जा रहा है. इस्लाम का जन्मदाता देश अरब सैक्सियत की खुली छूट दे चुका है. वहाँ मिस्यार की आड़ में व्यभिचार को सरकार की मान्यता प्राप्त है. अरब एक बड़ा चकला बनकर सामने आया है. मुस्लमान उम्र के नाम पर अपनी बहन बेटियों का मिस्यार करा रहे हैं. हैदराबाद में बूढ़े शेखो को अपनी बेटियां परोसने वाले मुसलमानों से क्या आशा की जा सकती है? जो अपनी बहन - बेटियों को इज्ज़त नीलम करते हों वो भारत माता का क्या सम्मान करेंगे.

बेनामी ने कहा…

अब तो ब्लोग जेहाद शुरु हो चूका है. हमारी अंजुमन, लखनऊ ब्लोगर एसोसियेशन व इनके मुसलमान सदस्य ब्लोग बना- बनाकर हिन्दू धर्म को गालियाँ दे रहे हैं तथा इस्लाम की सैक्सियत (शरीयत) का खुला प्रचार कर रहे हैं. सैक्सियत के नाम पर चार विवाह करने का लालच देकर पुरुषों को इस्लाम अपनाने के लिए उकसाया जा रहा है. इस्लाम का जन्मदाता देश अरब सैक्सियत की खुली छूट दे चुका है. वहाँ मिस्यार की आड़ में व्यभिचार को सरकार की मान्यता प्राप्त है. अरब एक बड़ा चकला बनकर सामने आया है. मुस्लमान उम्र के नाम पर अपनी बहन बेटियों का मिस्यार करा रहे हैं. हैदराबाद में बूढ़े शेखो को अपनी बेटियां परोसने वाले मुसलमानों से क्या आशा की जा सकती है? जो अपनी बहन - बेटियों को इज्ज़त नीलम करते हों वो भारत माता का क्या सम्मान करेंगे.

अभय तिवारी ने कहा…

बेनाम साहब

आप से बिनती है कि मेरे ब्लौग को आप 'अपनी जेहाद' के लिए प्रयोग न करें।

मैं इस्लाम का समर्थक नहीं हूँ और न ही ब्लौग या दूसरी जगह पर चले रहे एक धार्मिक सरफुटव्वल का समर्थक हूँ। लेकिन मैं समाज में शांति का समर्थक हूँ। और आप झगड़े-झंझट की भाषा लिख रहे हैं। आप की कूछ बातें सही ज़रूर हैं लेकिन बाक़ी कुछ बातें नितान्त हवाई और ग़लत है। ये कुछ तथ्यों के साथ अपनी नफ़रतें ठेलने की कोशिश है।

इसलिए आप से करबद्ध प्रार्थना है कि आप इस पन्ने पर अपना वैचारिक योगदान बन्द करें। आप अपने पन्ने पर जो मन चाहें करें, इस पन्ने को माफ़ कर दें।

अन्यथा मैं आप की कुछ भी लिखने की आज़ादी के बरक्स अपने पन्ने पर कण्टेण्ट को नियमित करने के अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए बाध्य हो जाऊँगा।

धन्यवाद!

अभय तिवारी ने कहा…

प्रवीण भाई,

फ़िलीस्तीन-इज़राईल विवाद पर मेरे लिखे लेख पढ़ने के लिए इस पते पर जायें: http://nirmal-anand.blogspot.com/search/label/%E0%A4%AF%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%A6%E0%A5%80

अजित वडनेरकर ने कहा…

अल्लानूर अंसारी और रामप्रकाश पंसारी मूलतः एक हैं।

योगेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
योगेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा…

@ प्रवीण त्रिवेदी
समानता-असमानता मनुष्य का नजरिया ही तो तय करता है आम तौर पिछली कई सदियों से मानव भेद ही निर्मित करता रहा है | और संघर्ष तो द्वैत के पैदा होते ही शुरू हो जाता है, यहूदियों तक जाने की क्या जरूरत है, शिया-सुन्नियों तक में संघर्ष है | ईसाइयों में भी कई पंथ हैं | बौद्धों
में भी है | कई संत रामस्नेही है तो कोई वैष्णव, शैव, शाक्त | कोई महामंडलेश्वर लेवल का है कोई १०८ जी | ब्लॉगरों के भी कई समुदाय बन गए हैं बस अभी नाम अधिकारिक रूप से रजिस्टर्ड होना बाकी है | एक से भारतीय संस्कृति के लगने वाले उत्तर और दक्षिण भारतीय भी किन्ही परिस्थितियों में संघर्षरत हैं | फिर उनमे भी निश्चित परस्थितियों में बेशर्मी दिखाते हुए धर्म लेवल से थोडा नीचे आते हुए अलग जाति होने पर संघर्ष है | धर्म और जाति व पंथों के आलावा भी आमिर-गरीब के संघर्ष है और भी कई तरह के वर्गों में संघर्ष हैं | कहा तक जाऊं इस लेवल, वर्ग का न कोई आदि है न अंत, यह अनादि-अनंत है |

क्रिकेट का विश्व कप होता है तो पहले देश की खातिर दुआएं और दुसरे देश को हराने की कामना, फिर फ़ाइनल तक पहुँचते-पहुँचते मानलो एशिया को कोई एक टीम भी बरकरार रही तो अब उसके जितने की उम्मीद शुरू कि चलो कप एशिया में तो आया | आदमी बड़ा घिनौने चरित्र का है समय बदला नहीं कि उसका लेवल या वर्ग बदलते एक मिनट की देर नहीं, बस उसके मन या अहंकार को संतुष्टि चाहिए कि तू कभी हार का मुहं नहीं देखेगा |
खुद आदमी > परिवार > समाज > गाँव > नगर > राज्य > देश > महाद्वीप > कल को कोई अंतर ग्रह वाद भी जुड़ जाये तो आश्चर्य नहीं | हजारों तरह के और अलग आकारों के कैदखाने हैं रंग-रूप का क्या करना, हैं तो कैदखाने ही | बस आप ये देखिये आप इनमे से किस लेवल पर जी रहे हैं, किस मकान में रह रहे हैं | फर्क लेवल और नामों का ही है, संघर्ष करना ही ध्येय है, वर्गवाद उत्पन्न करना हमारे स्वाभाव में समाया हुआ है, कुत्तों कि तरह |

http://yssbrainrelease.blogspot.com/2009/06/this-is-first-page.html

योगेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा…

किसी तकनीकी खामी की वजह से कमेन्ट ठीक से प्रकाशित नहीं हो पा रही है और confusion के कारण एक से अधिक बार प्रकाशित हो जा रही है | मैंने अपनी एक अतिरिक्त टिपण्णी मिटा दी है | मेरा सुझाव है कि पाठकगण टिपण्णी के प्रकाशित बटन पर क्लिक करने के बाद किसी भी तरह कि error आने पर एक बार ब्लॉग पर refresh करके जाकर देख लें शायद उनकी टिपण्णी प्रकाशित हो चुकी हो |

आशुतोष कुमार ने कहा…

अजित जी के लाजवाब जुमले के बाद कुछ कहना बेकारहै!

उन्मुक्त ने कहा…

इस चिट्ठी की अन्तिम पंक्ति में शायद 'यहां' की लिंक डालना रह गया है।

कुछ समय पहले मैंने डार्विन पर चर्चा करते समय, तीनो धर्मों के संबन्ध में थोड़ा बहुत यहां चर्चा की है।

मुनीश ( munish ) ने कहा…

subhan-allah ! kya khooooob !! aj dekhi !! shukria sarkar par main Arundhati se bhot khaar khaata hoon !

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