गुरुवार, 14 जनवरी 2010

घर बैठे किताबें

कवि कवितायें पढ़ते हैं। पत्रकार अख़बार पढ़ते हैं। ब्लॉग वाले ब्लॉग पढ़ते हैं। कुछ लोग कथा-कहानी भी पढ़ते हैं। कहानी- कविता–अख़बार से बा़की दुनिया में इल्म की जो किताबें हैं वो कौन पढ़ता है?

अगर कोई है तो उन से गुज़ारिश है कि किताब की दुकान में जाने की ज़हमत न उठायें। घर बैठे फ़्लिपकार्ट से किताब मँगायें और डिस्काउन्ट भी पायें। किताबों से यहाँ मेरा मतलब अंग्रेज़ी की किताबों से ही है। हिन्दी की किताबों की दुकाने हैं ही कहाँ? ऐसा माना जाता है कि हिन्दी किताबों के पाठक ही नहीं हैं और अगर हैं भी तो प्रकाशकों को उनकी फ़िक्र नहीं उनके लिए तो सरकारी अधिकारियों की सिफ़ारिश ही काफ़ी है किताब के धंधे में बने रहने के लिए और मोटा मुनाफ़ा बनाते रहने के लिए। सुना तो ये भी जाता है कि हिन्दी के प्रकाशक लेखकों को पैसे देते नहीं बल्कि लेते हैं: किताब छापने का एहसान करने के लिए। ख़ैर।

मैंने पिछले दिनों कुछ किताबों की ज़रूरत पड़ने पर उनको बुकशॉप्स में खोजा; कहीं न पाया तो फिर नेट पर खोजा। अमेज़न में थी लेकिन डॉलर्स में और किताब की क़ीमत से ज़्यादा उनके शिपिंग चारजेज़। उसी खोज में फ़्लिपकार्ट भी नज़र आया। जो किताब चाहिये थी वो थी, उसके अलावा दूसरी कई किताबें और भी दिखीं जो दिलचस्प थीं और मेरी जानकारी में नहीं थीं। किताब का मूल्य रुपये में, कोई शिपिंग शुल्क नहीं क्योंकि इसका संचालन बेंगालूरु से ही होता है, और उलटे डिसकाउंट!! चार-पाँच किताबे मँगवाई। तीन तो तीसरे दिन आ गई। और शेष भी जल्दी। पेमेन्ट बस आप को नेटबैंकिंग से या क्रेडिटकार्ड से या डेबिट कार्ड से करना होगा। सुरक्षित है।

फ़्लिपकार्ट चलाने वाले हैं सचिन बंसल और बिन्नी बंसल जो २००५ बैच के आई आई टी दिल्ली के कम्प्यूटर साइंस के स्नातक हैं। अमेज़न इंडिया में आठ मास नौकरी करने के बाद उन्होने अक्तूबर २००७ में यह काम वेबसाइट शुरु की। होनहार बच्चे आगे बढ़ेंगे ऐसी उम्मीद है!

देसी-विदेसी सभी तरह की किताबें उनके पास उपलब्ध हैं। कुछ हिन्दी के भी टाइटिल्स हैं मगर उस प्रकार के नहीं जो आम तौर पर हिन्दी साहित्य के नाम से जाने जाते हैं। देखिये दूसरे प्रकार की हिन्दी किताबों तक वो पहुँच गए लेकिन हिन्दी साहित्य (कविता-कहानी जी, और क्या?) को न जाने कौन सा संक्रामक रोग है, कोई छूना ही नहीं चाहता। आह.. रोगी चंगा हो जाय ऐसी कामना है।

पश्चलेख: बेंगालूरु से पूजा उपाध्याय ने बताया है कि फ़्लिपकार्ट पर हिन्दी की किताबें भी उपलब्ध हैं। मैं ने फिर से खोज के देखा; पहले देवनागरी में, तो कोई परिणाम नहीं आए, लेकिन रोमन में खोज करने से सुखद नतीजे दिख रहे हैं। हिन्दी किताबें भी उपलब्ध है। शायद मैंने पहले भी रोमन में कोशिश नहीं की होगी। ख़ैर, इस मसले में लिपि महत्वपूर्ण नहीं है, महत्व इस बात का है कि हिन्दी किताबें भी घर बैठे मँगाई जा सकती हैं। पूजा जी को धन्यवाद!

और रोगी का हाल इतना भी बुरा नहीं है। शायद बुरा लगता इसलिए है कि लेखक को किताब लिखने के लिए पैसे मिलते नहीं देने पड़ते हैं।

17 टिप्‍पणियां:

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

बड़ा ज्ञान दै दिहेव , ज्ञान के ठिकाने कै पता दै के ...
का पता कभौ जरूरत परै ..
.
.
अंग्रेजी में हाँथ तंग है . पर इसी जिन्दगी में यह
ख्वाहिश भी पूरी करूँगा ..
आप लोग हैं न जो बताने वाले , लालच पैदा होती है
कि उन किताबों में बिखरे ज्ञान को भी पाऊं ..
.
.
'' रोगी चंगा हो जाय ऐसी कामना है '' , आपके साथ
मैं भी यही कामना करता हूँ ..

Udan Tashtari ने कहा…

रोगी के चंगे होने की कामना ही कर सकते हैं बाकी विलायती भाषा वाला तो दौड़ ही रहा है हर वेब साईट पर.

अजित वडनेरकर ने कहा…

रोगी चंगा होय मौला होय....
तब तक आपका फेरा लगता रहे।
दिल्ली बुक फेयर में जा रहे हैं क्या?

सुशील छौक्कर ने कहा…

काश कि हिंदी की किताबें इतनी ही आसानी से मिल पाती। वैसे ये बात आजतक समझ में नही आई कि हिंदी सबसे ज्यादा बोली और पढी जाती है और फिर भी हिंदी का ये हाल है क्यों?

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

आपकी बात सही है, लेकिन किताबों को हाथ में लेकर देखने पलटने का आनंद इसमें कहां?
--------
थोड़ी अक्ल लगाएं, खूब करें एन्ज्वाय...
विष का प्याला पी कर शिवजी नीलकंठ कहलाए।

Puja Upadhyay ने कहा…

इस जानकारी के लिए बहुत धन्यवाद...बंगलोर में रहती हूँ और हिंदी किताबें यहाँ नहीं मिलती इसलिए बड़ी दिक्कत होती थी. अभी छुट्टियों में घर गयी थी तो बहुत सी किताबें खरीद कर लायीं...आपकी इस पोस्ट से फ्लिप्कार्ट के बारे में पता चला. बस एक सुधार करना चाहूंगी...आपने लिखा है आपको वहां हिंदी साहित्य कहानी वगैरह नहीं मिली...मैंने दुष्यंत कुमार, फणीश्वर नाथ रेनू, दिनकर, अज्ञेय, जयशंकर प्रसाद, बशीर बद्र, अमृता प्रीतम, गुलजार सर्च किये...और मुझे ढेरों किताबें मिली...हिंदी में. रसीदी टिकट तो मैंने आर्डर भी कर दी है और आ भी जायेगी जैसा की आपका अनुभव रहा है. यही नहीं किताबों के हार्ड बौंड और पपेर्बैक दोनों संस्करण मिले मुझे. आपसे अनुरोध करुँगी की एक बार फिर अपनी तरफ से भी ढूंढ कर देखें और अगर उचित लगे तो पोस्ट में अपडेट करें की हिंदी की भी काफी किताबें मिलती हैं वहां. जितनी संख्या में हिंदी किताबें मैंने देखी हिंदी साहित्य के अंतर्गत ही आती हैं. ऐसा सिर्फ अनुरोध है, अपनी तरफ से देख लें, अगर आपको सही लगे तो. आपकी इस पोस्ट के लिए हार्दिक आभारी रहूंगी.

उन्मुक्त ने कहा…

ऐसे मैं अक्सर फस्ट एण्ड सेकेंड डाट कॉंम से पुस्तक मंगाता हूं। यह भी अच्छी सेवा देती है।

हम तो हिन्दी भाषी क्षेत्र में रहते हैं इसलिये हिन्दी की किताबों की दिक्कत नहीं होती है।

रंजना ने कहा…

Waah...yah to badi achchi baat hai....aajmakar dekhungi...

Yun hindi ki dasha ki sahi kahi aapne..par ishwar se kaamna hai ki sthiti behtar ho...

Himanshu Pandey ने कहा…

हिन्दी पुस्तकों की आसान उपलब्धता की खबर ने आश्वस्ति दी । आभार इस प्रविष्टि के लिये ।

मनीषा पांडे ने कहा…

क्‍या अभय, कौन जमाने में रहते हैं। इस पर दू साल से किताब खरीद रहे हैं। आपको अभी पता चला। कोई बात नहीं। फि़लपकार्ट मस्‍त है। ऐसी और भी कई वेबसाइट हैं, जहां से जाने दुनिया की कौन कौन सी किताबें मिल जाती हैं। यहां लिखकर सबको बताया, पुण्‍य का काम किया।

सतीश पंचम ने कहा…

मुझे तो मुंबई के विलेपार्ले वाली जीवन प्रभात लाईब्रेरी से ही ढेरों किताबें महीने के पचास रपये monthly मेंम्बरशिप में ही मिल जाती हैं।

ढेरों यानि कि - मैला आंचल, गुनाहों का देवता, सारा आकाश (पटकथा सहित), खराशें (गुलजार), आँवा (चित्रा मुदगल), इन्ही हथियारों से (अमरकांत), कच्चे रास्तों का सफर, गुडिया भीतर गुडिया, एक कहानी यह भी, टोपी शुक्ला, अलमा कबूतरी,ममता कालिया, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, रांगेय राघव .....अब क्या क्या नाम गिनाउं। सभी तो मिल जाते हैं यहां। बस पढ नहीं पाता, (समय हो तब न, ....लेकिन समय को गिनाना भी बहाना ही है, नहीं तो जैसे ब्लॉगिंग के लिये कैसे थोडा थोडा समय निकाल लेता हूँ...पढने के लिये भी निकाल ही सकता हूँ :)

इनमें से कुछ किताबें जैसे आँवा, इन्ही हथियारों से की कीमत ज्यादा है (लगभग 450 रू) लेकिन वह भी पढने को मिल गई एकदम झकास अंदाज में।

हो सके तो एक बार विलेपार्ले के इर्ला ब्रिज के पास हो आईये....ढूँढते रह जाएंगे ऐसा कलेक्शन और इतने सस्तें में (50 रू महीने पर :)

अभय तिवारी ने कहा…

जीवन प्रभात वाले मिश्रा जी के पास तो दस साल से आना-जाना है और उनका बेटा शरद तो घर पर भी किताबें ले के आ जाता है.. फिर भी बहुत सारी किताबें होती हैं जो उनके पास उपलब्ध नहीं होती..

आप ने ये ५० रुपये वाली नई बताई .. शायद दुकान न चलने के कारण ये कोई नई स्कीम चलाई होगी मिश्रा जी ने..

Puja Upadhyay ने कहा…

मेरी बात को शामिल करने का शुक्रिया अभय जी :)

सागर ने कहा…

आपका यह ब्लॉग एक दुसरे प्रकार से स्पर्श करता है... परोक्ष रूप से ... मुझे बहुत अच्छा लगा...

बेनामी ने कहा…

बंगलोर में एवेन्यू रोड पर हिंदी किताबों की दुकान है. थोड़ी से मेहनत करना पड़ेगी पर मिल जाएगी.

कडुवासच ने कहा…

... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!

Neeraj Singh ने कहा…

निःसंदेह आप बहुत ही सशक्त लिखते हैं. बहुत कम लोग हैं जिनके ब्लॉग में इस तरह की महत्वपूर्ण जानकारी होती है. मैं इस वेबसाइट पे गया. बहुत ही उम्दा वेबसाइट है. वैसे भी amazon.com मेरी सबसे मनपसंदीदा वेबसाइट है.. इसलिए नहीं कि मैंने वहाँ से शौपिंग की है, बल्कि इसलिए कि मेरे को उनकी वेबसाइट की डिजाईन बहुत ही पसंद है.. जब मैंने FLICKART खोली तो मुझे वही experinece मिला. जबरदस्त ...

आपका बहुत बहुत शुक्रिया.. अब मैं इसी वेबसाइट के जरिये ही किताबें मगाऊंगा

वैसे मैं आपके ब्लॉग पे कैसे आया.. इसका आभार है बना रहे बनारस को - वहन मैंने बनारस के ऊपर आपकी एक पोस्ट पढी.. http://vipakshkasvar.blogspot.com/2009/09/blog-post_22.html बस और चला आया..

लिखते रहें

नीरज

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