पिछले दिनो टी वी पर अभिनव भारत के द्वारा चलाए गए कार्यक्रमों का एक वीडियो चलाया जा रहा है। जिसमें अभियुक्त समीर कुलकर्णी अपने कार्यकर्ताओं के साथ दिखाई पड़ रहे हैं। मालेगाँव बम काण्ड में अभिनव भारत से जुड़े अभियुक्त दोषी हैं या नहीं, ये तो अदालत ही तय करेगी मगर वीडियो देखकर कोई भी ये समझ सकता है कि अभिनव भारत एक अतिवादी संगठन है जो देश के अल्पसंख्यक समुदायों को अपने घोर शत्रु के रूप में चिन्हित करता है। और इस तरह की हिंसक साम्प्रदायिकता अमानवीय है, अधार्मिक है और अक्षम्य है.. मेरे अपने नैतिक मापदण्ड से।
मगर ऐसी साम्प्रदायिक मानसिकता वाले अभियुक्तों के प्रति भी देश की पुलिस का पाशविक व्यवहार किस क़ानून और नीति की दृष्टि से जाइज़ है, मैं नहीं समझ सकता। अभियुक्तों ने पुलिस पर यातना की कई आरोप लगाये हैं ।
#साध्वी प्रज्ञा सिंह ने उन्हे हिरासत में जबरन अश्लील सीडी दिखा कर पूछताछ करने, एटीएस पर गाली गलौज की भाषा में बात करने और रात में दो बजे नींद से उठाकर धमकियां देने (उनके कपड़े उतारने की भी) समेत कई सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। इसके पहले वे अपने हलफ़नामें में पुलिस पर पहले ही आरोप लगा चुकी हैं कि पुलिस ने उन्हे उनके ही शिष्य के हाथों से पिटवाया।
#लेफ्टीनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित ने आरोप लगाया कि एटीएस अधिकारी उनके घर में आरडीएक्स रखकर उनके परिजनों को फंसाने और उनकी पत्नी को नंगा कर के घुमाने और फिर उसका बलात्कार करवाने की की धमकी देते हैं। अन्य आरोपियों ने भी शारीरिक एवं मानसिक यातनाएं देने के आरोप लगाए।
#रिटायर्ड मेजर उपाध्याय ने आरोप लगाया कि डी आई जी सुखविन्दर सिंह ने उनसे कहा कि मेजर उपाध्याय की माँ गाँव के सारे मर्दों के साथ सोती थी और उन्हे धमकाया कि उनकी बेटी का बलात्कार कर दिया जाएगा और बेटे को नशीली दवाईयों के केस में फँसा दिया जाएगा।
भाजपा, विहिप समेत देश का तमाम हिन्दू जनमानस पुलिस के इस व्यवहार से अपार कष्ट में है। मैं भी इस से अछूता नहीं। पुलिस के ऐसे व्यवहार के क्या कारण है ठीक-ठीक कहना तो मुश्किल है पर मेरा अनुमान है कि अपनी असली धर्म—निरपेक्षता साबित करने का ये कांग्रेसी तरीक़ा है। बाटला हाउस इनकाउन्टर से पुलिस की विश्वसनीयता पर उठ खड़े सवालों को बराबर करने के लिए ‘हिन्दू आतंक’ को घेरा जा रहा है। ये काम बिना इस तरह की यातनाओं के भी सम्भव था लेकिन मुश्किल दूसरी है.. सिर्फ़ आतंक का ही संतुलन नहीं .. यातना का भी संतुलन होना चाहिये।
१९९३ के मुम्बई सीरियल बम धमाको के अभियुक्तों के पुलिस के साथ अनुभव कैसे रहे .. ज़रा मुलाहिज़ा फ़रमाइये.. .
#टौंक के नवाबी खानदान से ताल्लुक़ रखने वाले सलीम दुर्रानी के सर को टॉयलेट सीट में घुसा के उन्हे विष्ठा खाने के लिए मजबूर किया गया।
#अभियुक्त माजिद खान की बीवी नफ़ीसा को दो महीने तक कपड़े बदलने की इजाज़त नहीं दी गई और उसे मासिक धर्म से सने हुए खून के कपड़ों को पहने रखने के लिए मजबूर किया गया।
#अभियुक्तों के लिए पानी दुर्लभ था और कई स्त्रियों को प्यास से आक्रांत हो कर अपनी पेशाब पीनी पड़ी।
#अभियुक्तों के मुँह में चप्पल घुसेड़ना एक आम बात थी।
#अभियुक्त और उनके रिश्तेदारों के गुप्तांगों में लाल मिर्च लगाना पुलिस की यातना का एक सामान्य हिस्सा होता था। इस के चलते कई अभियुक्तों को जीवन भर के लिए बवासीर हो गई।
#यातना के तमाम तरीक़ो में अभियुक्तों के गुप्तांगो पर बिजली के झटके देना भी शामिल रहता।
#पुलिस, अभियुक्त के परिवार के सदस्यों को एक दूसरे को चप्पल और बेल्ट से पीटने के लिए मजबूर करती।
#गर्भवती शबाना को नंगा कर के अपने पिता को चप्पल से पीटने के लिए मजबूर किया गया।
# Young naked Manzoor Ahmad was told to insert his penis into the mouth of Zaibunnisa Kazi, a woman of his mother's age.
#Najma (the sister of Shahnawaz Querishi, an accused) was forced to fondle her father's penis and eat his shit too.
(इस व्यवहार को हिन्दी में लिखने में भी मुझे शर्म महसूस हो रही है)
#बान्द्रा के स्टमक रेस्तरां के मालिक राजकुमार खुराना को पुलिस ने सीरियल बम धमाकों के बारे में पूछताछ करने के लिए बुलाया और उसे ऐसी यातनाओं को दिखाया और धमकाया कि ये उसके साथ भी हो सकता है। खुराना इतना डर गए कि घर जा कर उसने अपने बीबी-बच्चों को मार कर, खुद को भी गोली मार ली।
ये वो चन्द घटनाएं है जो इस तरह की यन्त्रणाओं की एक लम्बी सूची से ली गई हैं जिसे इतिहासकार अमरेश मिश्र ने अपने एक शोधपत्र में तैयार किया है। खेद की बात ये है कि इस शोध पर आधारित लेखों को उन्होने कई पत्र-पत्रिकाओं में भेजा मगर कोई छापने के लिए तैयार नहीं हुआ।
15 टिप्पणियां:
अभय भाई,
अभिनव भारत के कौन से वीडियो की बात कर रहे हैं? किस व्हीडियो को देखकर हर कोई समझ सकता है कि अभिनव भारत एक घोर अतिवादी संगठन है जो देश के अल्पसंख्यक समुदायों को अपने घोर शत्रु के रूप में चिन्हित करता है। और इस तरह की हिंसक साम्प्रदायिकता अमानवीय है, अधार्मिक है और अक्षम्य है....."
एक ओर तो आप अदालत की बात कर रहे हैं दूसरी ओर इन्हें "आपराधिक मानसिकता वाले अभियुक्त" के रूप में कह रहे हैं? कैसे आप खुद जज बन करके फैसला कर रहे हैं? हमें आपके इस तरह फैसला देने पर आपत्ति है. क्या आपका यह फैसला एकतरफा नहीं है?
देश को दुख तब भी होता है जब किसी मुसलमान के साथ एसा किया जाता है और तब भी जब किसी हिन्दू के साथ एसा किया जाता है.
मुसलमानों के साथ इस तरह नाजायज व्यवहार पर जिन हिन्दुओं ने इस पर विरोध प्रगट किया उनकी अनगिनत संख्या आप गिन नहीं पायेंगे. आप जिन इतिहासकार अमरेश मिश्र की बात कर रहे हैं वह भी हिन्दू होंगे और निश्व्चित रूप से आप भी हैं.
लेकिन क्या आप मुझे कुछ मुसलमानों के नाम बतायेंगे जिन्होंने इस पाशविक व्यवहार पर नाराजी जतायी? ज्यादा नहीं सिर्फ दस बीस ही चल जायेंगे. कोई बुद्धिजीवी न मिले तो भी कोई बात नहीं, गली मुहल्ले के नानबाई, घसियारे या किसी हम्माल तक ने विरोध नहीं किया, क्यों?
हिन्दू मानस तब भी अपारकष्ट में था जब मुसलमानों के साथ एसा अमानवीय घटनायें होती थीं और आज भी है, जब हिन्दुओं के साथ एसा होता है. उस समय विरोध करने वाले मुसलमानों से अधिक हिन्दू थे
कांग्रेसी सरकार सिर्फ मुसलमानों के वोट के लिये हिन्दू आतंकवाद का आतंक फैला रही है एसा करके यह देश का कितना नुकसान कर रही है आप समझ सकते है, बल्कि इस ब्लागजगत में तो सबसे अधिक आप ही समझ सकते हैं, मेरा एसा विश्वास है.
पुलिस के तौर-तरीके कितने दिन तक ऐसे ही रहेंगे. जिन्हें गिरफ्तार किया जाता है वे इंसान हैं. और इंसानों के साथ इस तरह का व्यवहार तो राक्षस करते हैं. (या शायद वे भी ऐसा नहीं करते).
तथाकथित आर्थिक सुधारों में 'व्यस्त' सरकारों को और किसी क्षेत्र में सुधार की ज़रूरत नहीं महसूस हो रही है. और ये सोच लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है. टीवी पर इस बात का ढिढोरा कितने दिन पीटा जायेगा कि हम दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश हैं?
बहुत शर्मनाक घटनाओं का जिक्र किया है आपने. हम इस बात से शर्मिंदा हैं कि हम उसी समय में जी रहे हैं, जिस समय में ये सबकुछ हो रहा है.
I appreciate your step toward this anti-human activity of police. Actually all these police person are out of control just coz of working for there present "akkaaz" (god father), what they wants to take out same they do these activities. I think this is the habit of POILICE, they took all the advantage of Degree third foutrh etc, but in very worst way. This they think is short-cut method of reaching upto truth.
U may vist my blog www.voiceofkanpur.blogspot.com, for some evoluation of society.
अनाम जी,
आप के ऐतराज़ का मान रखते हुए 'आपराधिक' शब्द को बदल कर 'साम्प्रदायिक' कर दिया है.. आशा है यह आप को निर्णयात्मक नहीं मालूम देगा।
पुलिस की धर्मनिरपेक्षता, राजनितिक दल और सरकार की धर्मनिरपेक्षता एक ही हैं.
पुलिस का बुरा व्यवहार नया नही है
जिन्हें आज प्रज्ञा आदि के आरोपों से क्षोभ हो रहा है उन्हें कल औरों पर हुए अत्याचारों से भी क्षोभ होगा
न्याय तो यही कहता है
इन बातों को सामने लाने के लिए शुक्रिया
भयावह !
हम आजादी के साठ सालों के बाद भी पुलिस का चरित्र नहीं बदल पाए हैं। यह हमारे जनतंत्र के नकाब का असली चित्र है। हम केवल नाम के जनतंत्र में जी रहे हैं।
मेरा मत है आतंकियों के साथ बिना धर्म देखे एक सा व्यवहार होना चाहिए, और पुलिस द्वारा भी एक सा व्यवहार होना चाहिए. मगर अमानविय व्यवहार किसी के साथ नहीं होना चाहिए.
"लेकिन क्या आप मुझे कुछ मुसलमानों के नाम बतायेंगे जिन्होंने इस पाशविक व्यवहार पर नाराजी जतायी?"
यह सवाल बहुत चोट पहुँचाता है. करवट बदलता रहता हूँ.
साध्वी प्रज्ञा केस पर अब शक होने लगा है. पुलिस की नियत साफ नहीं लगती.
हिंदू भाइयों को इस तरह का अनुभव शायद पहली बार हो रहा है जब उन्हें लग रहा है कि हिंदू होने की वजह से यातनाएँ दी जा रही हैं, ऐसा भारत में मुसलमानों के साथ अक्सर होता रहता है, हैदराबाद मामले में तो कोर्ट ने माना है कि निर्दोष मुसलमानों को बहुत बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया, हर्जाना भी दिया जाएगा. जब यातना अपने समुदाय के ख़िलाफ़ हो तभी मुँह खोलना और दूसरे समुदाय के लोगों को यातना झेलने का सुपात्र समझना, यही रवैया रहा है दक्षिणपंथी हिंदू भाइयों का. पुलिस की बर्बरता तब भी दुखद थी, अब भी दुखद है. अच्छा लिखा है आपने.
कहीं आप उस वीडियो की तो बात नहीं कर रहे जिसका जिक्र अनिल पुसदकरजी ने अपनी पोस्ट में किया है, अगर उसी की बात कर रहे हैं तो यह आपकी उच्च वैचारिक क्षमता और गहन अनुभव का द्योतक है.
मत भूलें हम कर रहे, दो कौमों की बात.
एक की माँ है यह धरती,दूजा दूजी बात.
दूजा दूजी बात, देश को डायन कहता.
पाकिस्तान का सपना, हरदम मन में रखता.
कह साधक दोनों के अलग-अलग हों फ़ैसले.
भिन्न कौमों की बात चल रही, यह मत भूलें.
स्वाधीनता के ६१वर्षों बाद भी पुलिस का चाल चेहरा और चरित्र नहीं बदला है।ब्रिटिश हुकूमत की अच्छाइयाँ तो हमनें सीखी नहीं किन्तु बुराइयोँ से भी हम दामन नहीं छुडा पाये।सिविल पुलिस का चेहरा इतना अनसिविलाइज्ड़ है कि सोंच कर भी रोंगटे खड़े हो जातॆ हैं।दर अस्ल ये वर्दी वाले गुण्डे हैं।नार्को,ब्रेन मैपिंग,फोरेसिक आदि के साथ साथ थर्ड डिग्री के अमानवीय प्रताड़ना से ही सब सच उगलवाना ही ए०टी०एस०/सी०बी०आई० जैसी तथाकथित प्रोफेशनल जाँच एजेन्सीज को यदि आता है तो इतनी ट्रेनिंग आदि की जरूरत क्यों?सच तो यह है कि भारत की सभी जाँच एजन्सियाँ लुच्चे नेताओं की टेरर फौज बन कर रह गयीं हैं।
८० के दशक की बात है मार्ग्रेट थैचर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थीं,१०डाउनिंग स्ट्रीट के अपनें आवास पर(जहाँ प्रत्यक्ष रूप से कोई सिक्योरिटी दिखाई नहीं पड़्ती)जैसे ही पहुँचती हैं,दरवाजा खुलता है वह अन्दर जाती हैं तभी गोली चलती है लेकिन तब तक वह अन्दर जा चुकी होती हैं,सुरक्षित,लेकिन आश्चर्यजनक ढ़ंग से पाँच मिनट के अन्दर हमलावर पकड़ लिये जाते हैं।वहाँ सुरक्षाकर्मी सिक्योरिटी के लिए होते हैं जबकि हमारे देश में सुरक्षाकर्मी जनता को टेरराइज करनें के लिए होते हैं इसीलिए नेता ५०-५० पुलिसवाले बावर्दी साथ लेकर घूमता है।
मुझे तो लगता है कि हम धर्मनिरपेक्षता, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद आदि जैसे मुद्दों पर अंतहीन बहस कर अनजाने में भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का प्रयोजन ही सिद्ध कर रहे हैं। हम इन मुद्दों पर बहस में इतने मशगूल हो जाते हैं कि भ्रष्टाचार जैसे अत्यंत जरूरी मुद्दे से हमारा ध्यान हट जाता है। जबकि भ्रष्टाचार ही सारी समस्याओं की जड़ है। कुछ दिन पहले कुछ ब्लॉगों में स्विस बैंकों में जमा पैसे की चर्चा हुई थी। मुद्दा तो वह होना चाहिए। कोई कहता है कि पुलिस हिन्दुओं के साथ बुरा बर्ताव कर रही है। कोई कहता कि पुलिस मुसलमानों के साथ बुरा बर्ताव करती है। मैं पूछता हूं पुलिस अच्छा व्यवहार किसके साथ करती है। थाने में जाने पर दिखता है कि वहां गाली के साथ बात शुरू ही होती है।
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