राष्ट्रपति ओबामा और उनकी जीत ने अमरीका और दुनिया में एक परिवर्तनकारी उत्साह पैदा किया है। मैं जल्दी किसी की छवि, छटा, और अदा के झांसे में नहीं आता.. ऐसा मुझे लगता है। मगर अमरीकी चुनावों में जीत के बाद राष्ट्रपति की गद्दी सुनिश्चित हो जाने के बाद भी ओबामा जिस तरह की क्रांतिकारी बातें कर रहे हैं, उसे सुनकर मेरी भीतर भी झुरझुरी हो रही है।
क्या ओबामा सचमुच दुनिया बदल देंगे? क्या वे सचमुच विश्व राजनीति में अमरीका की भूमिका को उलट देंगे? पर्यावरण और पूंजी के सम्बन्ध को पलट देंगे? मेरी इच्छा है कि यह सच होता हुआ देखें हम लोग.. फ़िलहाल तो देखें ओबामा की लच्छेदार वाणी में उनकी प्रतिज्ञाएं..
11 टिप्पणियां:
आशा मत रखिये अभय जी;
सत्ता में आने के बाद किसको क्या याद रहता है? जननायक खलनायक साबित होते हैं. जो जितनी बड़ी तालियों के साथ आता है वह उससे भी अधिक गालियों के साथ जाता है.
मैँ स्वभाव से सदा आशावान रही हूँ और आज अमरीकी हालात देखते हुए
ओबामा अगर आम जनता का विश्वास खो देँगेँ उससे बडी शर्मनाक घटना
और कोई ना होगी --
देखेँ क्या करते हैँ नये राष्ट्रपति !
हमें तो कुछ नहीं दिख रहा..हमारी तरह उन करोडों भारतवासियों को कुछ नहीं दिखेगा जिनके लिए इंटरनेट का मतलब 'कुछ नहीं' अथवा अधिक से अधिक एक 'धुंधला चश्मा' है।..अब दिख ही नहीं रहा तो झुरझुरी कहां से होगी :)
Magar Obama ke paas ek saaf soch to hai. Hamare netaon ke paas aisa kuch nahin dikhai deta.
दुनिया न एक आदमी से बदली है और न बदलेगी। दुनिया बदलने के लिए बदलने की जरूरत वाली जनता चाहिए।
बस वक्त ही बता सकता है !
उसको अभी ज्यादा परेशान मती करो जी। थोड़े दिन आराम कर लेने दो!
At this time America is facing multitude of problems and Its very difficult to fix each of those. But atleast we can hope that there will be sincere efforts to solve those from Obama administration. Its not magic though, it requires sustained efforts from many quarters.
अभय जी,
ओबामा की बातों पर विश्वास करने का मन करता है । अमेरिका में वर्क प्लेस में जो ईमानदारी है वो सुनिश्चित करती है कि अगर अच्छी योजनायें बनी तो उनके क्रियान्वयन में अधिक समस्या नहीं आयेगी । अगर कुछ हजार/लाख लोगों के विरूद्ध कुछ निर्णय जाते हैं तो सडकें नहीं रोकी जायेंगी और सरकारी सामान की होली नहीं जलायी जायेगी ।
अपने देश पर गर्व होने के साथ साथ इस बात की बेहद शर्म भी है कि अगर आज कोई भारत में ओबामा के तर्ज पर बदलाव की लहर लेकर आता है तो भी उसके क्रियान्वयन पर किसी को भरोसा नहीं है ।
नीरज रोहिल्ला से सहमत!
मार्टिन लूथर किंग के बाद
यह पहली आवाज़ है अमरीका में
जिसमें मुल्क का दर्द अलहदा अंदाज़ में
मुखर हो रहा है...लेकिन अभी कुछ कहना
ज़ल्दबाजी होगी. आपने विषय अच्छा चुना.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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