इधर कुछ रोज़ से पतनशीलता को लेकर बहुत लड़िया रहे हैं सभी.. सालों तक लात भी बहुत लगाई गई है उसे। हमारे वही शायर जिन्हे हम सर-आँखों पर बिठाते हैं उनको काँट-छाँट कर मनमाफ़िक शरीफ़ (पढ़िये प्रगतिशील) बनाने का काम किया गया है।
मीर साहब की सादगी और सोज़ मशहूर है पर वे घोषित तौर पर अम्रदपरस्त (लौंडेबाज़) भी थे, ये बात बाद के विक्टोरियन नैतिकता से प्रगतिशील हो गए लोग खा गए, पचा गए और पादा तक नहीं।
सरदार जाफ़री खुद बताते हैं कि कैसे उन्होने मीर के दीवान (राजकमल से प्रकाशित) का संपादन करते हुए वासनामय और यौन सम्बन्धी अश्लीलता भरे सभी शेर खारिज़ कर दिए। अब किसे फ़ुर्सत कि बैठ कर मीर के कुल्लियात में से सारे पतनशील शेर छाँटे..? मुझ जैसे कुछ लोगों को है वैसे!
कुल्लियात तो हाथ नहीं लगा अभी मगर कहीं और से मीर के ये दो शेर बरामद हुए हैं.. मुलाहिज़ा फ़रमाएं..
कैफ़ियत अत्तार के लौंडे में बहुत हैं
इस नुस्खे की कोई न रही हमको दवा याद
मीर क्या सादे हैं बीमार हुए जिसके सबब
उसी अत्तार के लड़के से दवा लेते हैं
(अत्तार: हकीम)
7 टिप्पणियां:
यानि मीर सस्ते शेर के भी उस्ताद थे...
बहुत पहले इस तरह के शेर पढ़े थे...मीर के ..अब तो याद भी नहीं.. वैसे फ़िराक के बारे में इस तरह के किस्से मशहूर हैं. एक शेर जो कभी सुना था...जो उन्होने किसी हसीना से कहा था जिसके पीछे कोई और लड़का पड़ा हुआ था...
फ़िराक तू ये ना समझ कि फ़िराक तेरी फ़िराक में है
फ़िराक तो उसकी फ़िराक में है जो तेरी फ़िराक में है
नुक्ता गलत हो तो ठीक कर दें.
प्यारे भाई, मीर का तो जो माल मेरे पास रखा है, उसे पल्लाबंद टांड़ में बक्से के नीचे छुपाकर रखना पड़ता है। ब्लॉगरों की बात ही छोड़ो, डर है कि बीवी की नजर भी उसपर पड़ गई तो घर से बाहर निकाल दिया जाऊंगा। भारत में शायद यह अब कहीं उपलब्ध नहीं है। पाकिस्तान से अपने एक मित्र के मित्र उठाकर लाए और उसकी हिंदी में लिप्यांतरित प्रति फोटोस्टैट होकर जिधर-तिधर घूम रही है।
ओ होहो,
मीर के दीनो-मज़हब की चर्चा हो रही है !
यह तो शौक हुआ भाई...शौक की दवा कहाँ होती है...यह भारतीय परम्परा में बहुत पहले से मौजूद एक तत्व है...बौद्ध काल में भी इसके पक्षधर थे...
चंदू भाई कभी कभी कुछ पोस्ट कर दें तो मजा आ जाये.
बहुत खूब! चंदू जी से फ़र्माइश कि और शेर पढ़वायें।
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