बाबा आम्टे नहीं रहे। और उनके साथ गाँधीवादी विचारधारा की शायद वह आखिरी शख्सियत नहीं रही, जिन्होने जीवन की गुणवत्ता को कभी भौतिक पैमानों से नहीं तौला।
बाबा आम्टे गाँधी जी के अनुगामी थे और आज़ादी के आन्दोलन में गिरफ़्तार होने वाले नेताओं की तरफ़ से वकील की भूमिका भी उन्होने अदा की थी। पर जिस काम के लिए उन्हे हमेशा याद किया जाता रहेगा वह उनका आनन्दवन है।
वो कुष्ठ रोगी जो इस आश्रम के बाहर एक आम घृणा का शिकार होते हैं, बाबा आम्टे के इस आश्रम में बिना किसी दुत्कार और धिक्कार की नज़र की एक सम्मान का जीवन बिता सकते हैं। इस आश्रम का सारा कामकाज ये रोगी स्वयं सम्हालते हैं। आनन्दवन एक ऐसा आत्मनिर्भर गाँव है जिसकी कल्पना गाँधी जी ने अपने भारत के हर गाँव के लिए की थी पर उनके राजनैतिक उत्तराधिकारी पण्डित नेहरू ने उसे औद्यौगिक मन्दिरों की राह पर धकेल दिया।
बाबा आम्टे की तस्वीर को जब भी मैं देखता तो उनके कानों को देखता रह जाता; हाथी के जैसे बड़े-बड़े भारी और लम्बे थे उनके कान। पारम्परिक ज्ञान कहता है कि लम्बे और बड़े कान लम्बी उमर और ज्ञान का प्रतीक होते हैं। बाबा आम्टे इस बात को पूरी तरह से सत्यापित करते हैं।
बस यही कामना करता हूँ अपने छुद्र स्वार्थों के स्तर से ऊपर उठकर कभी उनकी तरह विराट पुरुष की संवेदना से प्रेरित होकर जीवन का संचालन कर सकूँ। बाबा को मेरा शत-शत प्रणाम।
8 टिप्पणियां:
आज आपके लेख ने सोचने पर मज़बूर कर दिया , हुमने क्या खो दिया है. बाबा आम्ते महान सन्त थे.गान्धीवाद को पूरी तरह से आत्मसात किया उन्होने.ऊन्के निधन से भारत को ही नही समूचे विश्व की हानि हुई है.ईश्वर ऐसी शख्सीयत रोज़ रोज़ नही भेजते.
बाबा आमटे को प्रणाम ।
नमन उन्हें!!
बाबा आमटे विसंगतियों से भरे इस समय में एक क्रांति थे । नमन ।
बाबा को नमन..
बाबा आमटे इतनी बड़ी बीमारी के बावज़ूद सेवा में लगे रहे । उनके दोनों बेटे और बहुयें भी इसी काम में तन मन से जुटे हैं । ऐसे लोग विरले ही होते हैं ।
दूख के क्षण है. आमटे नमन.
बाबा आमटे जैसे लोग धरती पर साक्षात भगवांन ही होते है, एक ...हमसे दूर चला गया, बाबा को नमन .....
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