रविवार, 17 जून 2007

मैं इन्कार करता हूँ..

नारद के आभासी समाज में इन दिनों जो आभासी लकीर खिंची हुई है.. लकीर की मेरी सामने वाली तरफ़ के काफ़ी सारे लोग यही बात कर रहे हैं.. कि मोहल्ला के इस ज़हर फैलाने के पहले नारद स्वर्ग था.. और इस स्वर्ग को कुछ म्लेच्छों ने आकर दूषित कर दिया.. भ्रष्ट कर दिया.. उसी साँस में कहा जाता है कि उसके पहले कोई जानता तक ना था कि कौन हिन्दू कौन मुसलमान... भई पंकज बेंगाणी ने जो अपने निजी अनुभव मुसलमानों के विषय में लिखा था.. वो तो उनके अनुसार उनके बचपन की सच्ची घटनाऒं पर आधारित था.. तो बात यह कि मोहल्ला के पहले सब कुछ ढका छिपा था मोहल्ला ने आकर सब बेपरदा कर दिया.. खैर..

नारद एक आभासी हिन्दुस्तानी शहर से ज़्यादा एक भारतीय गाँव की छवि में ज़्यादा ढाला जा रहा है.. जिसमें सवर्ण तो गाँव के भीतर रहें और अवर्णो-अछूतों को गाँव की परिधि से बाहर रखा जाय नहीं तो वो गाँव के सामान्य जन जीवन की शुद्धता पवित्रता को भ्रष्ट कर देंगे.. जैसे कि श्रीश ने बोडो और अल्फ़ा आतंकवादियों के आगामी प्रवेश के प्रति सचेत करते हुये कहा.. वो रहें.. उसे हम रोक नहीं सकते.. पर गाँव की परिधि से बाहर रहें.. ज़रा सोचें.. क्या नारद के मूर्धन्य विद्वान लोग इस प्रकार का व्यवहार रख कर अस्पर्श्यता की अमानवीय ब्राह्मणवादी परिपाटी का ही अनुसरण नहीं कर रहे हैं..

राहुल के चिट्ठे पर प्रतिबन्ध लगाना बड़ा मसला नहीं है.. वो नारद का अधिकार है.. उसने अपने अधिकार का उपयोग किया.. हम बोल रहे हैं आलोचना कर रहे हैं क्योंकि हमें ऐसा जतलाया गया कि इस का स्वागत है.. अब हमें कहा जा रहा है कि आप को इस का हक नहीं.. हमें मंज़ूर है.. लेकिन मैं यह पचास से ज़्यादा लाइन का चिट्ठा बजार पर अवैध अतिक्रमण पर प्रतिबंध के विरोध में नहीं चढ़ा रहा हूँ बल्कि एक अपने एक हक़ का इस्तेमाल करने के लिये जिस के लिये वैसे तो सिर्फ़ दो लाइन की चिट्ठी काफ़ी है.. और मुझे मालूम है कि नारद के संचालक जीतेन्द्र चौधरी का इस पर क्या मत है.. जो उन्होने ढाई आखर की एक पोस्ट पर टिप्प्णी के रूप में ज़ाहिर किया..

Narad Muni said...
यदि आप अपना ब्लॉग नारद से हटवाना चाहते है, तो इत्ती बड़ी पोस्ट लिखने की आवश्यकता नही थी,बस एक इमेल लिख देते, कि आपके ब्लॉग को नारद से हटा दिया जाए।

आप इमेल भेज रहे है क्या?

June 13, 2007 3:56 PM

जी जीतू जी.. मैं अपना चिट्ठा नारद से हटवाना चाहता हूँ.. और इसके लिये आपको दो लाइन का ईमेल भी भेज रहा हूँ.. अधीर न हों.. पहले समझ लें मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ..

ऊपर की पक्तिंयां लिख कर नारद के संचालक श्री जीतेन्द्र चौधरी ने जिस अदा से एक मुसलमान साथी को बाहर का रास्ता दिखाया.. पहले मुझे लगा कि वह एक तात्कालिक आवेश है.. सभी को आता है.. जीतू जी को पहले भी आया है.. जब उन्होने यह पद छोड़ने की बात की .. सभी लोगों ने.. मैंने भी उनसे ऐसा न करने की अपील की.. इसलिये नहीं कि मेरा विश्वास था कि वे ही इस पद के लिये सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं.. बल्कि इसलिये कि हर किसी के साथ कभी कभी न ऐसी मनोदशा आती है, हम भारतीयों के साथ कुछ ज़्यादा ही, जब वह रूठ जाता है.. तब बाकी समाज से यह अपेक्षित होता है कि वे उसकी रूठी मनोदशा को समझें और और उसे मनायें.. जो आपको नहीं मनाते उन्हे आप अपने दुश्मन को रूप में चिह्नित कर लेते हैं.. बड़े प्रशासनिक अधिकारी, सम्पूर्ण वयस्क और तर्क और सम्वेदना में तर्क का पक्ष लेने वाले ज्ञानदत्त जी भी इस प्रकार रूठ चुके हैं.. पर लोग मनाते हैं.. जगदीश भाटिया जी ने जब मोहल्ले को निकाले जाने पर खुद को भी निकाले जाने की बात की थी.. तो भी सब उन्हे मनाने पहुँचे थे..

लेकिन जीतू जी की इस टिप्पणी और सुनो नारद की उनकी पोस्ट के बाद एक एक दिन कर के चार दिन निकल गये.. इस बीच मैंने उन्हे एक ईमेल करके ऐसा निवेदन भी किया.. लेकिन उन्होने न तो खुद इस के प्रति खेद जताया है.. न ही सलाहकार समिति के सदस्य अनूप जी ने.. और न ही नारद के किसी सदस्य ने रूठे साथी को मनाने की कोशिश की.. संजय जी का तो कहना ही क्या.. मेरे पूछे गये सवालों का जवाब उन्होने अभी तक नहीं दिया.. मगर हर विरोध के विरोध में लिखी पोस्ट पर वो वाह वाह कर रहे हैं..और अनूप जी के विनम्र अफ़सोस के बाद तस्वीर एकदम साफ़ हो गई.. कि राहुल के चिट्ठे को बहाल कर देने के वादे को पूरा न कर सकने के अफ़सोस के अलावा कोई अफ़सोस तो अनूप जी को भी नहीं..

तो मैं सोच में पड़ गया.. कि साथी नासिरुद्दीन को ऐसा दो टके सा जवाब क्यों मिला.. क्यों जगदीश भाटिया तो आपके अपने हैं.. और नासिरुद्दीन नहीं.. क्या इसलिये कि वे मेरठ के हाशिमपुरा काण्ड के बारे में लिख कर समाज में ज़हर फैलाते हैं.. ? और फिर सोचा कि.. क्यों इस देश में लगातार एक खास नाम के लोगों को बार बार अपनी प्रतिबद्धता सिद्ध करने के लिये कहा जाता है.. उन पर देश और समाज के खिलाफ़ चलने का आरोप लगाया जाता है.. और जब वे मुख्यधारा के साथ आते हैं तो उन्हे दो टके सा जवाब देकर पाँत से उठा दिया जाता है..

.. और इतना सब सोचने के बाद जीतू भाई की ये चुनौती जो अभी भी हवा में तैर रही है.. बार बार मुझसे सवाल कर रही है और मुझे बार बार असहज कर रही है.. कि मैं किस प्रकार के समूह का हिस्सा हूँ.. जो मुझे अपने साथ नहीं रखना चाहता क्योंकि मैं नक्सली हूँ(?).. नासिर को नहीं रखना चाहता क्योंकि वे मुसलमान हैं.. शुएब और युनुस से तक्लीफ़ नहीं जब तक कि वे गुजरात या हाशिमपुरा की बात न करें.. नारद को एक ऐसे समाज की छवि में गढ़ा जा रहा है जहाँ असहमतियों के लिये कोई जगह नहीं.. नक्सली न रहें.. बोडो, अल्फ़ा और कश्मीरी आतंकवादियों परिधि के बाहर रहें.. जहाँ मुसलमान रहे तो दब के रहे.. बात करे तो झुक कर बात करे.. दंगा हो जाय तो मार खाय और मारा जाय.. और फिर दंगा हो जाने के बाद दंगे की बात कर के माहौल में ज़हर ना फैलाये..

जन्मना एक बहुसंख्यक हिन्दू और तिस पर भी ब्राह्मण होने के नाते मेरी स्वाभाविक जगह आपके साथ है.. पर वर्तमान परिस्थितियों में मैं आपके साथ खड़े होने से आपके खिलाफ़ खड़ा होना बेहतर समझूँगा.. और इसीलिये भाई मैं आपके ऐसे आभासी समाज का आपके इस मंच का हिस्सा होने से इंकार करता हूँ.. आपके बराबर खड़ा होने से इंकार करता हूँ.. मेरा आकलन है कि नारद एक ऐसा मंच है.. जिस के संचालक जीतेन्द्र चौधरी, श्रीश शर्मा, संजय बेंगाणी साम्प्रदायिक सोच रखते हैं.. और माफ़ करें.. पर उनके साथ होने से और भीष्म की तरह असहाय(?) होने से अनूप जी ये आरोप मैं आप पर भी लगाता हूँ.. और ऐसे किसी समूह का हिस्सा होने से इंकार करता हूँ.. जहाँ गुजरात और मोदी की चर्चा करना ज़हर फैलाना हो.. और विरोध का स्वर रखने वाले एक मुसलमान साथी को दो टके का जवाब दे कर उसे बाहर निकालने की आतुरता महज एक प्रशासनिक रूखापन..

इसे किसी युद्ध या दुश्मनी का ऎलान न समझा जाय.. ये सिर्फ़ मेरा प्रतीकात्मक विरोध है.. इस आभासी दुनिया में हम और आप दोनों ही रहने वाले हैं.. और मिलने भी वाले हैं.. सिर्फ़ मेरा चिट्ठा नारद पर नज़र नहीं आयेगा..

और मेरा यह आकलन इस मौके पर मुझे नज़र आ रही सच्चाई है.. कल आप क्या होंगे.. मैं क्या होऊँगा.. कौन जानता है..

विचार बदलते हैं.. आदमी बदलता है.. समाज बदलता है..

17 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

आपका इंकार देखा। आपके विचार जाने। जिस तरह जीतेंन्द्र ने भावावेश में लिखा था कुछ इसी आवेश में आपने हमको साम्प्रदायिक कहा। असहाय वाली बात मैं मानता हूं क्योंकि आपसे वायदे(जो मैंने आपकी पोस्ट पर किया था) के मुताबिक मुझसे आपको यह आशा अवश्य रही होगी कि इस विषय में राहुल के ब्लाग की बहाली करने की बात करूंगा।
सच तो यह है अभय जी कि यह मुद्धा तो मात्र स्पार्क रहा। पेट्रोल दोनों तरफ़ पर्याप्त मात्रा में पहले ही था। हां इतना ईंधन है दोनों तरफ़ इसका अंदाजा मुझे नहीं था। आज ही प्रत्यक्षाजी केब्लाग पर मैंने टिप्पणी की है इस तरह के प्रतिबंध किसी तरह से दुखद हैं। एक ब्लाग के लिये भी और संकलक की हैसियत से नारद के लिये भी। नारद से एक चिट्ठा गया साथ में धुरविरोधी ने अपना ब्लाग बंद कर दिया। यह नुकसान है। लेकिन इस तरह की घटनायें इंटरनेट जैसे ब्लाग जैसे अभिव्यक्ति के माध्यम के लिये शायद अपरिहार्य हैं।
राहुल का जो ब्लाग बैन हुआ उसमें वे वैसे भी कुछ लिखते नहीं थे। और आज भी उन्होंने उस पर एक फोटॊ ही लगाया है।
बहरहाल इस घटना के माध्यम से आप देखिये हिंदी ब्लाग से जुड़े लोगों की मन:स्थिति पता चल रही है।
लोग अभिव्यक्ति के आजादी के लिये कितने चिंतित हैं दिख रहा है। अफ़लातूनजी नयी पुरानी कवितायें खोज रहे हैं। अविनाश नये-नये ब्लाग बनाकर जिंदाबाद मुर्दाबाद कर रहे हैं। बैन के समर्थक विजय घोष कर रहे हैं। धुरविरोधी के ब्लाग के बंद होने पर मसिजीवी चिट्ठाचर्चा पर शोकसभा कर रहे हैं। इसके बाद पाठ्कों के एतराज अब शायद धुरविरोधी की अनुपस्थिति में उनका परिचयात्मक शेर झटक कर दोहरे हो जायें। चारो ओर अभिव्यक्ति के झरने बह रहे हैं। आपकी यह पोस्ट पढकर सुकून हुआ और पता चला कि आप किसको अच्छा समझती हैं और किसको खराब!
कुछ सवाल भी हैं जो मैंने अभय तिवारी जी की पोस्ट पर टिप्पणी करके पूछे थे। आप उसे देखियेगा तब बताइयेगा कि क्या यह गलत किया गया?
मैं मानता हूं कि बैन दुखद रहा। लेकिन उस समय के हिसाब से सही था। फिलहाल बहाली के लिये मौका देने के पहले ही इस मुद्दे को पक्ष-विपक्ष वाले जिंदाबाद-मुर्दाबाद करने के लिये छीनकर ले गये।

नसीरुद्दीन जी के प्रतिरोध पर जीतेंन्द्र के जवाब के बारे में आपने स्वयं लिखा कि यह तात्कालिक प्रतिक्रिया है।
इस आभासी दुनिया में किसी को कोई क्या बैन करेगा? जो अच्छा लिखेगा उसे लोग खोज कर पढ़ेंगे।
मोहल्ले के पहले सब कुछ ढंका नहीं था न सब कुछ अच्छा था। लेकिन अविनाश ने अपने लिखने के अंदाज से काफ़ी सनसनाहट फ़ैलाने का प्रयास किया।
अब तक मैं उनको पढ़ा-लिखा और तर्क बुद्धि संपन्न समझता था लेकिन जिस तरह से उन्होंने टिप्पणियां की अपने नाम से और नाम बदल-बदल कर दूसरों के नाम से उससे उनके मानसिक स्तर का अंदाजा भी लगा।
जिस तरह आपको नारद की आलोचना करने का हक है उसी तरह दूसरे को यह कहने का भी हक है कि नारद की आलोचना करने का हक नहीं है। आपको अपनी आजादी के साथ-साथ दूसरों को भी आजादी देना होगा न! आपको जो गलत लगता है उसकी आलोचना अवश्य करिये। जैसे आप नारद से जुड़े एक ब्लागर हैं वैसे ही दूसरे भी।
आपका या किसी दूसरे साथी का चिट्ठा नारद से नहीं हटाया जायेगा। क्योंकि मेरी समझ में यह आपकी तात्कालिक मांग है जो कि उसी तरह कोई मायने नहीं रखती जिस तरह जीतेंन्द्र की आवेशित टिप्पणी।
अभयजी, मैं फिर कहता हूं कि मैं आपकी सोच का सम्मान करता हूं। राहुल के ब्लाग के हटने के पहले की कटुता इस रूप में शामिल आयी है कि एक तरफ़ लोग जय घोष कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ अफ़लातून जैसे समझदार साथी इस ब्लाग को नारद पर प्रतिबंधित करने जैसी बात को आपातकाल से जोड़ रहे हैं।
आप विश्वास करें जिस दिन आप और आप जैसी समझवाले और लिखने वाले नारद और मेरी आलोचना के कारण नारद से हटाये जायेंगे वह दिन मेरे नारद से जुड़ाव का आखिरी दिन होगा।
आपसे अनुरोध है कि आप अपने मन से यह ख्याल निकाल दें कि नारद में लोग हर समय किसी के पर कतरने के लिये कैंची लिये खड़े रहते हैं।
नारद ने ब्लाग तो अभी बैन किया लेकिन तमाम बार तमाम लोग ( अधिकांशत: तकनीकी जानकारी के अभाव में उपजी गलतफ़हमी के कारण)इसे कई बार तानाशाह, साम्प्रदायिक, पक्षपाती आदि बता चुके हैं। उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुयी।
जीतेंन्द्र अभी भारत आने के लिये निकले हैं। कुछ दिन में शायद उनसे मुलाकात हो। दिल्ली में भी अविनाश, रवीश, नीरज दीवान, सृजन शिल्पी, संजय बेंगाणी,प्रत्यक्षाजी, मसिजीवी, नीलिमा, सुजाता आदि तमाम लोग मिलेंगे। वहां ये लोग नारद से जुड़ी आगे की रूप रेखा तय करने पर विचार कर सकते हैं। दूरियां तमाम गलतफ़हमियों को जन्म देती है। वही इस मामलें में भी हो रहा है।
आशा है आप मेरा बात समझेंगे। अपनी ऊर्जा को इस तरह की बहस में हम लोग बेकार में बर्बाद कर रहे हैं। इस बहस से हम केवल यह बता रहे हैं कि एक दूसरे पर कितना अविश्वास हैं हमें। आपसे अनुरोध है कि आप नारद को अपनी प्रतिद्वंदी पार्टी न समझें। आप भी इसके उतने ही सम्मानित सदस्य हैं जितने कि दूसरा कोई साथी। यह जुड़ाव महसूस करते हुये बतायें कि एक ऐसे ब्लाग की बहाली के लिये ,जिसमें कि लेखक शुरुआत में ही कहता है कि ब्लाग लिखना बेकार की बात है और दूसरी पोस्ट में ऊटपटांग बात लिखता है, अड़ना क्या जायज बात है? इस बात को समझना होगा हमें ,आपको और सबको कि एक ब्लाग के मुकाबले ब्लागों के समूह को खड़ा करके समूह की नियमत:
की गयी कार्यवाही को तानाशाही बताकर ब्लाग बहाली की बात असल में अभिव्यक्ति की लड़ाई नहीं वस्तुत: वर्चस्व की लड़ाई है। जैसा रवीश कुमारजी ने कहा हम बहुत असहनसील समय से गुजर रहे हैं। मुझे याद है कि आपने अपने ब्लाग पर एक पोस्ट पर हुयी टिप्पणी की मेरे द्वारा शिकायत किये जाने पर उस पोस्ट को हटा दिया और खेद प्रकट किया था। आपके आने के पहले मेरी एक पोस्ट पर एक ब्लागर ने मुझे और अतुल अरोरा को जुतियाने की बात कही थी। अगले दिन वह टिप्पणी चिट्ठाचर्चा में मैंने खुद प्रकाशित की थी। आज उस ब्लागर का पता नहीं है कहां है वह लेकिन हम लिख रहे हैं।
हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप इस चीज को समझें कि सूचना के माध्यम चाहे जितने तेज हो गये हों मानवीय भावनायें अपनी उसी गति से व्यवहार करती हैं जिस गति से पहले कभी करतीं थीं। हम उतने असहाय भी नहीं हैं जितने आप महसूस कर रहे हैं। लेकिन अपना निर्णय किसी पर थोपना एक और तानाशाही होगी। एक के लिये हम गाली खा ही रहे हैं।:) आशा है आप मेरी इन बातों को निर्मल मन से ग्रहण करेंगे।

azdak ने कहा…

देखिए, घंटे भर में कैसे आपका स्‍वामित्‍व निकालने जन-गण का जाप करनेवाले आपके डेरे पहुंचते हैं!.. आपका सारा ब्राह्मणत्‍व दो मिनट में बाहर कर देंगे!.. ग़लतफ़हमी में मत रहिए.. अब आप ब्राह्मण नहीं रहे.. मलेच्‍छ की पांत में खड़े होकर अब आप भी मलेच्‍छ ही हुए!.. फिर अपने को नक्‍सल भी बता रहे हैं.. तो ये जो पूरी हनुमान सेना है जिसने जीपी शास्‍त्री की लिखी और गंगा पुस्‍तक माला का छापा इतिहास पढ़ा है- वह आपके नक्‍सली होने का हिसाब लेने भी पहुंचेगी.. फिर फरियाते रहिएगा अपने टंटे!.. नक्‍सली माने कौन?- देशद्रोही, दुश्‍मन! हनुमान सेना कौन? प्रभु के प्‍यारे, पंडीजी के दुलारे आदि-इत्‍यादि! आप इस तरह अकेला छोड़ के जाइएगा, स्‍वामीजी तो हम किसके आशीर्वाद में अपना की-बोर्ड टिपटिपायेंगे?.. बड़े असमंजस में छोड़के जा रहे हैं!..

RC Mishra ने कहा…

नारद और उसके संचालकों से इतनी उम्मीद भरी अपेक्षायें क्यों :)
आपकी फ़ीड को अपने पृष्ठ पर दिखा दिया गया बस इसीलिये... या कुछ और है, जो शब्दों मे नही कहा जा सकता, किसी ने अभी तक उस टिप्पणी को मुसलमान के परिप्रेक्ष्य मे नहीं सन्दर्भित किया था, आप ने वो भी कर दिया, इसे क्या समझा जाय। हिन्दू-मुसलमान के बारे मे बहस चर्चा करनी है तो बहुत से स्थान हैं, कोई भी फ़ोरम बना के चर्चा की जा सकती है।
बी बी सी उर्दू सर्विस पर जाकर देखिये वहाँ भारत और मुसलमान के बारे मे चर्चा कीजिये दुनिया भर के पाठक हैं,आप की बात सुनने को।

बाकी आप स्वयं समझदार हैं।

अभय तिवारी ने कहा…

अनूप जी,
आप की प्रतिक्रिया पढ़ कर लगा रहा है कि आप ने अभी भी मेरी बात को जैसे समझा ही नहीं.. आप अभी भी राहुल और बजार की बात कर रहे हैं.. आप को अभी भी जीतू जी की टिप्पणी पर मेरी प्रतिक्रिया शायद अर्थहीन तत्व हीन लग रही है.. और ये और भी ज़्यादा दुखद है.. तथा मेरे आकलन को और मजबूती देने वाला है.. कि आप को अभी भी अपने भीतर के साम्प्रदायिक रेशे नहीं दीख रहे..

रामचन्द्र बच्चा,
अपने पूर्वानुमानों को अलग रख कर समझो.. सिर्फ़ रसायन का ही शोध मत करो.. जीवन को शोध करना सीखो.. सत्य शोधक बनो.. और जो मैं तुम्हारी तरफ़ फेंक रहा हूँ.. वो शुद्ध उपदेश है..
क्या है ये आभासी दुनिया? तुम्हारा गाँव का बाभन टोला ? यहाँ पर मुझे इस तरह की बात करने की अनुमति नहीं दोगे तुम? या मुझे कोई रास्ता दिखा रहे हो..?.. तुम्हे नहीं लगता कि वैसे २९ वर्ष की ही वय में सब समझ लेने का अहंकार पाल लेना ठीक नहीं..? थोड़ा और कुछ समझने के लिये जगह खुली रखो दिमाग में.. इसे एक बुजुर्ग की सलाह समझ कर अंटी में रखो..

बेनामी ने कहा…

मैं पहली बार अनूप शुक्ला के लिए अपशब्द लिख रहा हूं, मुझे क्षमा करें. वे बहुत भोले बन रहे हैं. कौन अपने ब्लाग पर किस मात्रा में लिखता है और किसी के ब्लाग की उपयोगिता है- प्रतिबंध की दलील इस के आसपास दी जा रही है- दुख होता है ये देखकर. तीसमार खां की तरह अनूप ने समझ लिया कि मैं बेनाम ब्लाग बना कर टिप्पणी कीर्तन कर रहा हूं. मैं जहां भी टिप्प्णी करता हूं, अपने नाम से करता हूं. कविराज गिरिराज के ब्लाग पर तो मैं उक्त पोस्ट को फार्स बनाना चाह रहा था. जो भाषा और जो आग्रह उस पोस्ट में था- उसकी गंभीरता को खत्म करने के लिए वो मेरा अपना तरीका था. अनूप नहीं समझ पा रहे, तो मैं उनकी समझ पर फिलहाल सिर्फ अफसोस कर सकता हूं.

बेनामी ने कहा…

प्रिय भाई अभय ,
आपकी पोस्ट पढ़ी . नासिर के चिट्ठे पर नारद की टिप्पणी की अहमन्यता और बेतुकेपन पर अपने ब्लॉग पर टिप्पणी पहले ही कर चुका हूं . पुनः आपके साथ सहमति जता रहा हूं . आपकी बात के समर्थन में हाथ उठा है . चूंकि मैं ब्लॉगस्पॉट के किसी भी ब्लॉग पर इस माह की सात तारीख से ही टिप्पणी नहीं कर पा रहा हूं,आपसे अनुरोध करता हूं कि इसे अपने ब्लॉग पर टिप्पणी के रूप में डाल दें .

RC Mishra ने कहा…

तिवारी जी किसी को रास्ता दिखाना मेरा काम नही है, मेरी टिप्पणी से आप आवेशित हो गये..ऐसा क्या कह दिया मैने, आप उम्र मे बड़े हैं तो उपदेश दीजिये (अगर कोई छोटी उम्र का भी दे तो स्वीकार है), मुझे कोई अहंकार नही है और मेरा दिमाग खुला हुआ है।
वैसे भी ये कोई उपदेश लेने देने की जगह नही है,इस संवाद के मूल मे नारद है, ये न होता तो न हमें, कुछ कहना पड़ता न आपको इतना उग्र होना पड़ता।
धन्यवाद

VIMAL VERMA ने कहा…

आदरणीय अभय जी,
तो आप भी जाते रहे सुबह से देखा रहा था आप नरद पर दिखे नहीं तो आपके चिट्ठे पर आया और बड़ी गम्भीरता से पूरा लेख पढ़ा..नारद के लिये ज़रुर ये दुर्भाग्यपूर्ण होगा.मुझे इसी बात का डर था और जिस तरह की भावना नारद ने दिखलाई है उससे श्चुब्ध होकर औरों ने भी अपना मन न बना लिया हो. अगर ऐसा हुआ तो ये अवश्य माना जाएगा कि शायद नारद के कर्ता-धर्ता यही चाहते थे कि धीरे-धीरे ख़ास नस्ल के लोगों को थोड़ा अलग थलग किया जाय और अपनी नारदीय नस्ल परम्परा पर अपना बर्चस्व बना कर रखा जाय.बेहतर है इन ब्राह्मणवादी और दम्भियो से अलग आपको आनन्दित देखना चाहता हूं. आपकी लेखन शैली का मै हमेशा कायल रहा हूं..मुझे भी आप अपने साथ समझें

अभय तिवारी ने कहा…

भई रामचन्द्र,
मुद्दा यहाँ नारद नहीं व्यक्ति की अस्मिता है.. संजय बेंगाणी की अस्मिता तो स्वीकार्य है.. पर नासिरुद्दीन की क्यों नहीं.. ये मेरा सवाल है.. इस को उठा देने भर के लिये आप मुझे दूसरे मंचो का रास्ता दिखा रहे हैं.. क्यों भाई यहाँ के मसले पर चर्चा बी बी सी पर क्यों होनी चाहिये.. इस विसंगति को समझने के लिये मैंने आपको दिमाग खुला रखने की सलाह दी..थोड़ी आवेश में, थोड़ी भलमनसाहत में दी.. बुरी लगी हो तो वापस कर दें..
पर हमें गलत न समझो.. हम रिसियाये नहीं हैं तुम पर.. अपना समझ कर सच्चा उपदेस दिये हैं..कि खुद पे सवाल खड़े करता रहना चहिये.. अभी भले समझ न आये बाद में काम आयेगा.. दाबे रहो अंटी में..

अभय तिवारी ने कहा…

भाई प्रियंकर और विमल भाई.. आप के समर्थन से मेरे मनोबल में वृद्धि हुई है.. धन्यवाद..

अफ़लातून ने कहा…

प्रिय अभय ,
१. मोहल्ले के पहले नारद और परिचर्चा पर संघ के समर्थन और विरोध में बहस होती थी,बहुत तीखी भी होती थी । इस शहीदाना अन्दाज में मोहल्ले को पेश न करें । प्रतिबन्ध की माँग नहीं होती थी । प्रत्यक्षा और प्रियंकर जैसे चिट्ठेकार मोहल्ले के पहले के हैं ।मोहल्ले के साम्प्रदायिकता के विरुद्ध विचार को कई जगह मैं साम्प्रदायिकता विरोधी लड़ाई को कमजोर करने वाला पाता हूँ लेकिन यह मतभेद है , मनभेद नहीं ।

२. जीतेन्द्र द्वारा ई-मेल भेजने के लिए जिस तरह से कहा गया उसका विरोध मैंने उसके अहंकार , दर्प , हेकड़ी और किसी भी दूसरे को कीड़ा-मकौड़ा समझने वाले तेवर के कारण किया था । मैं यह दावे से कह सकता हूँ कि नासिरुद्दीन की जगह किसी ने भी वह चिट्ठा लिखा होता तब भी जीतेन्द्र इसी शैली में बोल सकते थे । यह तेवर हर तरह की तानाशाही में पाया जाता है । स्टालिन में भी था जब उसने रूस से लाटिन अमेरिका निर्वसन को मजबूर ट्रॉट्स्की को आदमी भेज कर मरवाया ।
३. नारद के संचालन के जनवादीकरण के लिए आपको राहुल के गीत की याद कराऊँगा ," भागो मत , दुनिया को बदलो "।
४.धुरविरोधी द्वारा अपना चिट्ठा हटा लेना यदि निजी मामला है तब तो उन सनातनियों या स्व. विद्यानिवास मिश्र जैसे पतिहा बाभनों द्वारा अपना गिलास ले कर चलना भी व्यक्तिगत मामला कह कर अस्पृश्यता को बनाये रखने के पैरोकार मिल जाँएगे । इसके साथ-साथ जो व्यक्ति समूह का प्रतिनिधित्व करते हुए बोलते नजर आ रहे हैं ,वे थोड़ा सहिष्णु हों यह ज्यादा जरूरी है क्योंकि सत्ता-केन्द्र की बुराई किसे भी व्यक्ति की एक पहाड़ उसी बुराई से ज्यादा खतरनाक होती है ।
५. मेरी पत्नी और दल की साथी डॉ. स्वाति आपके इस चिट्ठे की भाषा और तेवर की प्रशंसा कर रही हैं । उनका साधुवाद ।

ढाईआखर ने कहा…

अरे नारद संचालकों को क्या हुआ है। एक भैया ने कल पूरा इतिहास लिख मारा और आज अनूप भैया ने इत्ता बड़ा लिख दिया। भैया नारदमुनि जी को पता चलेगा तो आपसे पूछेंगे, इत्ता बड़ा क्यों लिखे अनूप जी। और आपके शब्दों में अनूप भैया जब कोई बात ही नहीं है, तो काहे को इत्ता बड़ा लिख मारे...बकने दो इन्हें।
पर चलिये लिख ही दिया है तो हमारी भी कुछ सुन ही लीजिये...विनम्र निवेदन।
पहली बात, आपकी नारद संचालन में कितनी मानी जाती है,ज़रा गौर से सोचें... आपने कहा कि बाजार1 पोस्ट हटाये, माफी मांगे तो वापसी हो जायेगी... नहीं हुई... आपकी ही ज़बान खाली गयी... राहुल ने तो अपना कद बडा कर लिया माफी मांग कर और पोस्ट हटाकर।
"आप विश्वास करें जिस दिन आप और आप जैसी समझवाले और लिखने वाले नारद और मेरी आलोचना के कारण नारद से हटाये जायेंगे वह दिन मेरे नारद से जुड़ाव का आखिरी दिन होगा।" यह आपने कहा है, नासिरूद्दीन ने आवेश, भावावेश, उत्तेजना या गुस्से में नहीं कहा... क्या आप जानते हैं कि आज किन-किन ब्लॉग की फीड नारद ने सुबह से बिना किसी सूचना के रोक दी है। उसमें शायद निर्मल-आनन्द नाम का ब्लॉग भी है। अब‍ आप क्या करेंगे...जैसा आरसी भाई सुबह से बताने का कष्ट कर रहे हैं कि नारद आप ही लोगों का है। ठीक है भाई पर आप लोग तो बडे सहिष्णु... परिवारवाद वाले लोग हैं... हिन्दी की सेवा की ठानी है... भैया एक लाइन में बता देते कि हम अब फीड नहीं दे पायेंगे। बस बात खत्म। हां, हो सकता है... कोई तकनीकी गडबडी आ गयी है। क्या कीजियेगा, ये तकनीक भी माहौल देखकर रूख बदल देता है, है न।
दूसरी बात, अनूप जी, अभय जी और अविनाश ने मुझसे आपकी काफी सराहना की और कहा कि ई मेल मत भेजो, अनूप जी ने भरोसा दिलाया है कि विवाद सुलझ जायेगा। ... आपने एक साथ इतने लोगों का भरोसा तोड़ा। एक और बात, आप अपनी लाइन भी तय कर लीजिये। आप अभय जी के ब्लाग पर आते हैं, तब कुछ बोलते हैं, अविनाश के मोहल्ले में जाते हैं तो वहां कुछ, संचालकों के पास जाते हैं, तो पीठ थपथपाते हैं। ... एक शख्स जो आपकी टिप्पणियों को पढ़ रहा होगा, वह आपके बारे में क्या धारणा बनायेगा। बताइयेगा।
तीसरी बात, किसने कहा कि बाजार 1 कि भाषा का बचाव किया। कहा दुरुस्त है। अभय तिवारी, प्रमोद सिंह, अविनाश, नासिरूददीन ने... किसने ...? मैंने लिखा था, उस पोस्ट के बहाने, सभी ब्लॉगों की भाषा पर बात की जा सकती थी, संवाद शुरू किया जा सकता था। टिप्पणियों के ज़रिये लोग अपनी राय दे रहे थे और दे सकते थे... फिर ऐसा क्यों।
अनूप भाई, बात भाषा की थी ही नहीं... भाषा की रहती तो आप देख लेने की धमकी देने वाले को अब देख चुके होते... आतंकी कहने वाले को रोक देते ... पर आप ऐसा क्यूं करते... वे सारी टिप्पणियां संचालक समूह की भावना को ही तुष्ट कर रही थीं...है कि नहीं... देखिये झूठ नहीं बोलियेगा... अभय जी ने कहा था कि आप बड़े भले आदमी है...
चौथी बात, ये है कि जिस फैसले के हिस्सेदार आप हैं, उस फैसले के बारे में नारद पर दी गयी दो पोस्ट कि भाषा कैसी है? क्या उस भाषा का आप समर्थन करते हैं। नारद के फैसले से असहमत लोगों को जिस तरह और जिस भाषा में सम्बोधित किया जा रहा है, आपने दो दिनों में उसका कितनी बार विरोध किया है? भैया, वहां तो आप भी गंगा स्नान करके आ रहे हैं। अनूप भैया, हम तो चाहते हैं कि जिसे जो लिखना है, लिखे। लिखे अपने ब्लाग पर। वर्ना आपसे तो पूछा ही जाएगा कि कब किसी धमकी देने वाले को, आतंकी कहने वाले को, देख लेने कहने वाले को बतौर संचालक आपने रोका है।
पांचवी बात, हमें कोई खुशफहमी नहीं है, हम बहुत अच्छी तरह जानते है कि यह वर्चुअल यानी आभासी दुनिया है। कोई यहां क्या तीर मारेगा, वह भी उस हालत में जब खुद नारद के ही पोस्ट को चार दिनों में 200 हिटस मिल पाती है? देखिए, हमें मालूम है कि यहाँ क्रान्ति नहीं हो रही ... नारद संचालकों ही को लगता है कि पोस्ट लिख कर अभय, रवीश या अविनाश हिन्दुत्वादियों को उखाड़ डालेंगे... हां जड में मट्ठा ये जरूर डाल रहे हैं... हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त...पर आप लोग भ्रम की दुनिया में हैं।
अंत में, ये आपने क्या कह डाला अविनाश के बारे में, जिस तरह से उन्होंने टिप्पणियां की ... नाम बदल-बदल कर दूसरों के नाम से उससे उनके मानसिक स्तर का अंदाजा भी लगा। हालांकि अविनाश ने अपनी बात कह दी है लेकिन मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कि जिस शख्स ने अपनी राय जाहिर करने में कभी संकोच नहीं किया... वो क्यों कर ऐसा करेगा... आपके डर से।
असहमति दर्ज कराने वालों के बारे में कई जगह बेनाम टिप्पणी हो रही है, कहीं ये टिप्पणियां आप ही ने तो नहीं की है अनूप जी...
अंत में एक बार फिर, अपनी भूमिका के बारे में ग़ौर कीजियेगा... कहीं ऐसा न हो आपके चाहने वाले, रवि रतलामी जी के शब्दों में ... नारद के आगे जहां और भी है... गुनगुनाते हुए आगे चले जायें क्योंकि नारद के आगे वाकई में जहां है। और आज फीड बंद करके आपने उस रास्ते पर बढ़ने का इरादा और पक्का करा दिया है...अगर आपसे लम्बी टिप्पणी हो गयी हो तो माफ करेंगे, ऐसा इरादा था नहीं।

अभय तिवारी ने कहा…

अफ़लातून भाई.. आप निश्चिन्त रहें..मैं कहीं भाग नहीं रहा.. मेरे प्रतीकात्मक विरोध को आप मेरी अदा समझिये..
मेरा खयाल यह है.. कि नारद की सत्ता जितनी है उस से अधिक बड़ा कर के देखने की गलती की जा रही है.. नारद की शक्ति कुछ नहीं है.. जिस तरह से हर भारतीय मंच सत्ता के भ्रष्टाचार का केन्द्र बनता है वही हाल यहाँ भी है.. बस नारद की त्रासदी यह है कि उनकी सत्ता और शक्ति दोनों आभासी है.. वास्तविक नहीं.. मेरे या किसी और के नारद पर होने या न होने से कोई फ़रक नहीं पड़ता.. ये बात रवि रतलामी जैसे लोग समझते हैं और दूसरों को समझा भी रहे हैं.. पर अभी सबको समझ नहीं आ रही.. इसलिये मैं बार बार आभासी और प्रतीक शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ..

Sanjeet Tripathi ने कहा…

अभय भाई!
काहे इ मामले को हिन्दू-मुसलमानके रुप मा संदर्भित कर रहे हो भैय्या!
इ सब पढ़ के तो लग ही रहा है कि आपौ बहुत दुखी हो। पर हमका इक बात बतावा, का पलायन ( जिन्हें पलायन शब्द पर आपत्ति हो , तो वें इसकी जगह बहिर्गमन पढ़ें) कौनो बात का रास्ता है। जो हुआ उसके विरोध में कुछ लोगों ने यहां से पलायन कर लिया आप नही करोगे पर कह रहे हो। क्या इतने लोगों के यहां से पलायन करने से नारद पर आगे से वह नही होगा जो अब हुआ है? क्या पलायन किसी विवाद को सुलझाने का सही रास्ता है?

अउर दाढ़ी वाले बाबा! काहे ऐसन अदा दिखाए रहे हो भैय्या! अब का हम लोगन दाढ़ी वाले बाबा की अदा देखेंगे कौनो छमियान की अदा देखने की बजाय!

आप उ निर्मले-निर्मले ही लिखा करो, आप की यह बैचेनी वाली लिखावट हमसे सहन नही न होती है!

सबसे अंत में यह कहना चाहूंगा कि पिछले दिनों दो बार मेरे साथ ऐसा हुआ कि मेरी दो पोस्ट नारद पर 3-4 घंटों बाद अवतरित हुई जबकि मैं इस बीच ई-मेल पर नारद मुनि से संपर्क कर चुका होता था। मुझे लगा था कि यह दिक्कत सिर्फ़ मेरे छोर से होगी।

बेनामी ने कहा…

नसीरजी, हमारा ब्लाग भी नारद पर नहीं दिख रहा है। इसे बन्द नहीं किया गया है। कई और हैं जो नहीं दिखे। संबंधित कम्पनियों को लिखा गया है। बकिया बाद में।

अभय तिवारी ने कहा…

तिरपाठी जी.. हम तो पहल्वां कह दिये कि इ हमार परतीकात्मक विरोध है.. अदा तलक बोल दिए..तब्बो आप पूछ रहे हैं कि पलायन कौनो बात का रास्ता है ?
और छमिया का नाच तो रोजै देखत हो(देखत हो का?) कभौं कदार हमरियो अदा देख लेओ.. संकर बाबा जब सती की लास लेकर नाचे रहें तो वो उनकी अदा रही.. इ हमार अदा है..

नारद पर ना रहें.. आप से तो मिलेंगे..

बोधिसत्व ने कहा…

अभय भाई
मैं तो चकरा गया हूँ कई दिनों बाद ब्लॉग का चक्कर लगा तो देखता हूँ कि तलवारें खिची हुई हैं। मारो-काटो की चीख पुकार के बीच नारद की तानाशाही का नजारा दिखा।
निर्मल-आनंद और मोहल्ला के बिना नारद अधूरा रहेगा। मैं संजाल की आंतरिक बुनावट को बहुत नहीं जानता भाई सिर्फ यह बता दो तुम्हें जैसे अभी पढ़-देख पाते हैं नारद उसमें तो रोड़ा नहीं डाल पाएगा। बाकी नारद की तालाशाही( तानाशाही नहीं) की परवाह वे चाहें तो विनय पत्रिका को भी नारद से हटा दें। यह विनय भी है और निवेदन भी। क्योंकि हम लिखने और अपनी राय जाहिर करने के पहले किसी नारद से कभी अनुमति लेने तो नहीं जाएंगे ।
निर्मल आनंद और मुहल्ले की जय हो।

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