
"अवधिया जी की दी कड़ी से एक और लेख मिला. "जन गण मन" के बारे में लोगों को जो भ्रम हैं वो ये लेख दूर कर सकता है, जो अड़ियल है उन्हें खैर कोई समझा नहीं सकता। इस लेख में ये भी बताया गया है कि टैगोर के गीत को "वंदे मातरम्" की जगह तरजीह क्यों मिली। मुझे लगता है ये निर्णय एकदम सही था और इससे हमारे देश की सही छवि बनी रही है।"
देबाशीष और अवधिया जी के मिले जुले प्रयासों से खोजा गया यह लेख आर वी स्टिल सिंगिंग फ़ॉर द एम्पायर?' दिल्ली विश्वविद्यालय के एक अध्यापक प्रदीप कुमार दत्ता ने लिखा है.. इस में कुछ दिलचस्प तथ्य संजोये गए हैं.. जिनमें से निम्न मुख्य हैं..
१९११ के कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में जार्ज पंचम को 'विशेष धन्यवाद' इसलिए दिया गया कि उन्होने १९०५ के बंग-भंग के फ़ैसले को वापस लेने में अपनी भूमिका निभाई.. जिस पर कांग्रेस लगातार आंदोलन कर रही थी.. और जिस के विरोध में गुरुदेव भी मुखर रहे थे.. (इसे कांग्रेस का बचाव न समझा जाय..और कांग्रेस के संदर्भ में की गई इष्टदेव जी की टिप्पणी वज़न रखती है)
जन गण मन के बारे में मिथ्या प्रचार के बीज अंग्रेज़ी प्रेस की गलत रिपोर्टिंग के कारण पड़े जिस के अन्दर जनगणमन के अर्थ को समझने के लिए न साहित्यिक रुचि थी और न भाषाई जानकारी..
इस कांग्रेस अधिवेशन के बाद सरकार द्वारा एक सर्कुलर जारी किया गया जिसमें शांतिनिकेतन को सरकारी अफ़सरों की शिक्षा के लिए बिलकुल अनुपयुक्त घोषित किया गया और उन अफ़सरों के विरुद्ध दण्ड देने की भी बात की गई जो अपने बच्चों को शांतिनिकेतन भेजने की भूल करेंगे..
वन्दे मातरम की किसी एक धुन को स्वयं रवीन्द्रनाथ ने संगीतबद्ध किया था..
देश आज़ाद होने और जनगणमन को राष्ट्रगान बनाने के काफ़ी पहले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आज़ाद हिन्द फ़ौज ने इसे राष्ट्रगान की तरह से स्वीकृत किया..
वन्दे मातरम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अधिक लोकप्रिय गीत था.. मगर एक देवी को सम्बोधित होने के कारण मुस्लिम देशवासियों को इस से गुरेज़ था.. और हिन्दू दंगाइयों ने दंगो के दौरान इस गीत का इस्तेमाल भड़काने वाले नारे की तरह किया था.. और ऐसा कर के विभिन्न समुदायों को जोड़ने वाले सूत्र के रूप में उसे अनुपयोगी बना दिया था..
वन्दे मातरम पूरे देश को एक समरस हिन्दू इकाई के रूप में चित्रित करता है.. जबकि जनगणमन देश को भिन्न-भिन्न भाषाई और सांस्कृतिक समुदायों की महाधारा के रूप में पेश करता है..
इस लेख को खोजने के लिए देबाशीष जी का आभार..