मैंने हाल में जो स्कित्ज़ोफ़्रेनिया पर जो पोस्ट चढ़ाई थी उस पर मेरे उन मित्र की प्रतिक्रिया आई है जो इस रोग का शिकार हुए हैं.. प्रतिक्रिया दो हिस्सो में है.. एक उस प्रारूप पर जो मैंने उन्हे छापने से पहले एक नज़र मारने को भेजा था ताकि कोई गलत बात न चली जाय.. जो यह रही..
अभय भाई
सबसे परेशानी की वो ऐंठी समय की सुईयाँ होती हैं जो आपको अपने समय से दूसरे के समय में निषेधात्मक चाल से प्रेक्षित करती हैं और मरीज़ मात्र श्रोता हो जाते हैं. ये निगेशन की स्थिति है और वो ही पॉज़िटिव सेन्स में समाज का बैरोमीटर भी हो सकती है; सुईयाँ ही तो हैं, चाहे पारे की या किसी धातु की. समयहीन समाज. मुझे ये रोग नहीं लगता ये तो हर एक पल बढ़ता है आज कल में घुस नहीं जाता है. जैसे डी जे हॉस्टल. (इलाहाबाद में जहाँ मैं रहता था; इस उदाहरण से मित्र का मतलब है कि समय का कोई दौर जो आया और गया..)
पागलपन नहीं है पावती सिर्फ़ आप एडिट प्वायंट्स देख लें पर पिटी टाइप नहीं ना योद्धा. पहली बात स्कित्ज़ोफ़्रेनिया होता ही नहीं है, ब्रेन की अवस्था है. और सबकी मौलिकता है अपने-अपने प्राणवायु की.
उनकी इस प्रतिक्रिया के आधार पर मैंने अपने आलेख के प्रारूप में कुछ परिवर्तन किए.. किन्ही वजहों से मित्र मेरे सुधारे हुए लेख और आप लोगों की टिप्पणियों को कल ही पढ़ सके.. और पढ़ने के बाद उन्होने यह प्रतिक्रिया भेजी है..
डियर
आर्टिकल बहुत बैलेन्स बन पड़ा है, वैसे आप की जानकारी के लिए इस बीमारी के रेफ़्लेक्शन्स सबमें अलग-अलग तरीक से हाई और लो नोट्स पर होते हैं.< इट्स लाइक ए ब्लैक बोर्ड एंड व्हाट कलर चाक यू आर यूज़िंग टु एक्सप्रेस, इफ़ आई टेल यू दैट आई डिड गॉट इन्टू द प्रैक्टिसेज़ व्हिच वर आकल्ट इन नेचर एंड इनस्टिन्क्ट, जैसे पहले कहा कि रुझान महत्वपूर्ण है और कन्डीशनिंग,,, एंड आई स्टिल बिलीव दे वर ट्रू एंड ओरिजिनल इन पर्फ़ारमेन्स.>
मैं खुद के खिलाफ़ न खड़ा हो जाऊँ डर लगता रहता है. खतरनाक हैं शायद इन्टरप्रेटेशन,, गोरख पांडे किस फेसिंग से गुज़रते होंगे कह नहीं सकता लेकिन सोसायटी अवश्य एक डेटेरेंट का काम करती है और आस-पास के लोग, संवेदनशीलता का ग्राफ़ हद से ऊपर रहता है... संजय भाई ने ठीक कहा कि गायत्री मंत्र से शायद लाभ होता है, आई एग्री. सन्मार्ग... लेकिन कौन वाला? यहाँ तो उलटबासी हो जाती है.
भाई क्या ये ठीक होगा कि मैं अपने को रिलोकेट करूँ और कुछ समय पहाड़ या किसी जगह चला जाऊँ, नेचर आई थिंक शुड डू सम गुड... या आपकी नज़र में कोई एनजीओ हो या कोई प्रोजेक्ट जो मुझे एन्गेज कर सके.
क्या कहते हैं..............