ईश्वर एक खुजली है। जैसे हर आदमी की खुजली उसका वैयक्तिक और एकान्तिक मामला है, वैसे ही ईश्वर भी।
कोई चाह कर भी अपना ईश्वर दूसरे को नहीं दिखा सकता। ख़ुद प्रत्यक्ष जाना जा सकता है पर दूसरे के प्रत्यक्ष ज्ञान के लिए प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
खुजली में एक आनन्द है। ईश्वर स्वयं आनन्द स्वरूप है।
खुजली मिटाने से नहीं मिटती। खुजाने से और बढ़ती है। ईश्वर के साथ भी ऐसा है। जितना उसे खोजो, वो और पास बुलाता जाता है।
ईश्वर सारी खुजलियों का उत्स है।
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1 टिप्पणी:
अनुभव, आस्था और आनन्द है, अब इसे चाहें जो नाम दे दे, जो समानता दे दे।
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