बुधवार, 7 दिसंबर 2011

मैं नशे में हूँ..



मनीष कुमार जी बोतल साथ लेके शांति के घर आए थे। और आने के पहले से पी के आए थे। दरवाज़ा पाखी ने खोला था। पाखी ने अन्दर आकर अजय को उनके आने की सूचना दी और शांति को उनके मुँह से गंदी बदबू के आने की सूचना दी। मनीष जी बड़े दिनों बाद आए थे। अजय के बचपन के दोस्त थे। शांति दो-तीन बार उनसे बाहर भी मिली थी। बाहर की दुनिया में अजय जी निहायत शरीफ़ आदमी थे। साधारण बातचीत में वो इतना धीरे बोलते थे कि अक्सर उनके कहे हुए शब्द सुनने वाले तक पहुँचने के पहले ही हवा में विलीन हो जाते। भीड़ में इस क़दर मिलकर चलते कि साथ चलते-चलते दृश्य में ही कहीं खो जाते- और अलग से दिखना ही बंद हो जाते। फिर आवाज़ देकर उन्हे बुलाना पड़ता। तो कहीं पास से ही दुर्बल स्वर से वे अपने अस्तित्व का समर्थन करते।

मगर शांति के घर जो मनीष कुमार आते वो कोई दूसरे ही मनीष कुमार होते। उस दिन भी जो मनीष कुमार आए थे वो किसी से दब-दब कर चलने वाले निरीह मनीष कुमार नहीं थे। उनके शरीर की ऊर्जा, गति, संवेग सब अलग था। उनका स्वर भी शेष प्रकृति और संस्कृति से ऊपर, सबसे ऊपर गरज रहा था। कोई चाहकर भी उसे अनसुना नहीं कर सकता। वो अजय के साथ बैठक में थे लेकिन शांति, पाखी और अचरज, सासूमाँ, घर के अलग-अलग कोनों में कुछ भी कर पाने में असमर्थ हो चुके थे। वे अपने ही घर में मनीष कुमार की विविध अभिव्यक्तियों के श्रोता भर बनकर रह गए थे।

शांति ने सोचा कि विदा करके उनसे मुक्ति पाने का यही एक तरीक़ा होगा कि उन्हे खाना खिला दिया जाय। जब शांति बैठक में पहुँची तो वो भयानक रोष में थे। अजय के सामने इस तरह से खड़े होकर अपने हाथ-पैर हवा में फेंक रहे थे जैसे अजय पर कोई हिंसक हमला करने वाले हों। हालांकि अजय चुपचाप हाथ बाँधे बैठा उन्हे सुन रहा था। फिर शांति को समझ आया कि वो किसी और को ही गाली दे रहे थे- बार-बार.. 'मुझे मारेगा साला!? ..मैं उसकी गरदन तोड़ दूँगा.. कपड़े फाड़ दूँगा.. बड़ा गांधीवादी बन फिरता है.. अपने को संत समझता है.. मारूंगा साले को..संटी से मार-मार कर चूतड़ लाल कर दूंगा!!' न जाने वो कोई प्रेत था या अदृश्य आत्मा। इतना निश्चित था कि वो जो भी था उसने मनीष कुमार जी पर या उनके किसी सम्बल पर बड़ी गहरी चोट करने का दुस्साहस किया था।

फिर मनीष कुमार ने जब शांति को देखा तो चेहरे के भाव बदल गए। लड़खड़ाते हुए हाथ जोड़ लिए और माफ़ी माँगते हुए बखानने लगे कि वो शांति की कितनी इज़्ज़त करते हैं। उस तथाकथित इज़्ज़त की मात्रा को परिभाषित करने के लिए उन्होने अलग-अलग सुरों में कई बार 'बहुत' उच्चारित किया। हालांकि उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद वो शांति को कनविन्स कर पाने में असफल रहे। और शांति निश्चल भाव से उन्हे खाने के लिए बुलाती रही। मगर उनकी 'बहुत' इज़्ज़त का कोई अल्पांश भी शांति के आग्रह पर ग़ौर करने के काम न आया। शांति लौट कर भीतर चली आई। वो पीते रहे, बहकते रहे, भड़कते रहे। और तभी उठे जब बोतल में बहकने के लिए सारा ईन्धन शेष हो गया।

शांति ने ईश्वर का धन्यवाद किया और अजय से कहा कि वो उन्हे घर तक छोड़ आए। अजय अपनी गाड़ी की चाभी लेकर नीचे उतरा तो उम्मीद थी कि उनकी यातना समाप्त हो जाएगी मगर और लगभग आधे-पौने घंटे तक कभी ज़ोर-ज़ोर से बेहूदे सुर में गाने की और कभी चिल्ला-चिल्लाकर बहस करने की आवाज़े आती रहीं। कुछ अड़ोस-पड़ोस के लोग भी अपनी बालकनी में खड़े होकर तमाशा देखने व सुनने लगे। फिर जब अजय की कार के बदले एक बाईक की घरघराहट आई और सारी आवाज़े शांत हो गईं तो शांति समझ गई कि अजय उन्हे समझाने में विफल रहा।

जब लौटा तो शांति ने पूछा- 'और तुमने अकेले जाने दिया उन्हे..? एक्सीडेंट हो गया तो?'
'इतनी देर से यही तो समझा रहा था.. पर वो माना नहीं.. कहता रहा कि वो दुनिया का सबसे अच्छा ड्राईवर है..'
'हे भगवान!.. कैसा आदमी है..?'
'बेचारा बहुत दुखी है..'
'बेचारा?.. दुखी?.. वो एक नम्बर का स्वार्थी है..अपने अलावा किसी की नहीं सोचता..'
'क्या कह रही हो तुम.. बहुत भावुक और संवेदनशील आदमी है.. '
'होगा.. पर सिर्फ़ अपनी भावनाओं के लिए संवेदनशील है.. अगर सचमुच संवेदनशील होता तो समझ नहीं जाता कि उसके यहाँ आकर ड्रामा करने से हम सब को कितनी तकलीफ़ होती है?'
'अरे.. बेचारा.. पीने के बाद..'
'किसने कहा है पीने को.. क्यों पीता है? क्या पीकर अधिक बुद्धिमान हो जाता है? अधिक बलवान हो जाता है? पीकर के बस अपनी ओछी भावनाओं में लिथड़ता रहता है.. सोचता है कि दुनिया बड़ी पत्थरदिल हैं और वो सोने के दिलवाला है?'
'हम्म.. ये तो है.. इसकी बीवी ने भी शायद इन्ही सब बातों से तंग आकर आग लगा ली थी.. '
'और देखो..फिर भी नहीं सुधरा!?.. मेरी तो समझ में नहीं आता कि सरकार शराब पर बैन क्यों नहीं लगा देती.. '
'अरे.. ये कैसी बात कर रही हो..? डेमोक्रेसी है.. लोग पीना चाहते हैं तो कैसे बैन लगा देंगे? और अगर सही मात्रा में पी जाय तो सेहत के लिए अच्छी है..'
'अच्छा?? .. ज़रा पता कर लो कितने पीनेवाले मरते हैं लिवर के सिरोसिस से.. और एक बार पीना शुरु कर दिया तो मात्रा का होश रहता है क्या किसी को? .. और लोग तो चरस-गांजा-स्मैक भी पीना चाहते हैं.. उस पर क्यों बैन लगाते हैं?.. स्मोकिंग को बुरा क्यों मानते हैं..? वो भी तो लोग पीना चाहते हैं?'
'अरे उन नशे से तो ज़िन्दगी बरबाद हो जाती है.. '
'और शराब से.. ज़िन्दगी संवर जाती है? कभी उन औरतों से पूछो जो रोज़ अपने शराबी पतियों से पिटती हैं.. अगर कभी सर्वे कराओ तो हर औरत शराब बैन करने के पक्ष में वोट देगी.. '
'हर औरत?'
'सौ में से पन्चानबे तो देंगी..पक्का देगी!' शांति बहुत आन्दोलित थी। और उसकी इस अवस्था को भाँपकर अजय ने हथियार डाल दिये- 'अच्छा जाने दो.. वो गया अपने घर..उसके चक्कर में हम क्यों लड़ें? मैं तो नहीं पीता उसकी तरह शराब.. और न ही तुम्हें पीटता हूँ..? पीटता हूँ क्या..?.. चलो सो जाते हैं.. बहुत रात हो गई..'

अजय के मनुहार से शांति सो तो गई। पर जब सुबह उठी तो भी यही बात उसके सर में चकरा रही थी। और जब सरला काम करने आई तो शांति ने उससे पूछा- 'क्यों सरला, तुम्हारा पति भी तो शराब पीता है न..?
'बहुत! ..रो़ज़ पीता है.. मेरे पैसे छीन के पीता है.. '
'तो फिर क्या करती हो तुम? '
'क्या करुँ.. मेरा बस चले तो मैं उसे खम्बे से बांधकर संटियों से पीटूँ!! पर वो तो मुझे ही पीटता है!!'

***


(इसी इतवार दैनिक भास्कर में छपी) 


चित्र: मार्क शगाल


1 टिप्पणी:

ऋचा ने कहा…

sundar or prerna spad kahani,..

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