हज़रते ईसा भाग रहे थे एक पहाड़ को यूँ
बहाना चाहता हो शेर गोया२ उनका खूँ
आया तभी दौड़ता कोई और पूछा क्या है वजह?
नहीं कोई पीछे, भागते फिर भी परिन्दे की तरह?
लेकिन हड़बड़ी में कुलांचे मारते ही रहे आप
जल्दी इतनी कि दिया नहीं उसे कोई जवाब
बड़ी दूर तक वो शख़्स पीछे रहा ईसा से
बड़ी कोशिशों के बाद फिर बोला ईसा से
खुदा के वास्ते रुक जाइये अय इब्ने मरियम३
ज़रा मेरी इस उलझन के कीजिये पेंच कम
क्यों भागते हैं अय करीम४ इस तरफ़ इस तरह
न कोई शेर है न दुश्मन, न खौफ़ न खतरा
बोले ईसा कि मैं अहमक़ो से भाग रहा हूँ
जाने दो रोको मत मुझे खुद को बचा रहा हूँ
बोला वो कि क्या नहीं आप वो मसीह
जिसने अंधे व बहरे कर दिये सहीह५
बोले हाँ, फिर पूछा तो क्या वो नहीं मगर
जिसमें ग़ैब६ के जादू बनाते हैं अपने घर?
वो जिनके फूंक मारने से मुर्दा जी उठता ऐसे
एक शेर को शिकार अपना मिल गया हो जैसे
बोले हाँ मैं वही हूँ तो पूछा फिर से उस ने
नहीं वो आप मिट्टी से बना दिए पंछी जिसने?
बोले हाँ, तो फिर कहा कि अय पाक चेहरे वाले
आप कर सकते हैं जो चाहें तो डर काहे का पाले?
इन दलील के बाद होगा कौन जहान में
जो करेगा ना बन्दगी आप की शान में
बोले ईसा कि क़सम उस सच्चे मालिक की
बनाने वाले तन के और रूह के खालिक़७ की
उस की हुरमत८ की क़सम जो है नूरे पाक
जिस की ख़ातिर आसमां करते ग़रेबां चाक
वो जादू और वो अज़ीम९ नाम मैंने जो लिया
अंधो-बहरों जिस पर पढ़ा, वो अच्छा हो गया
भारी पहाड़ों से कहा, पड़ गई उनमें दरार
गहरे तक खुद का लबादा बस लिया फाड़
मुर्दा तन पर पढ़ा तो वो ज़िन्दा हो उठा
जब पढ़ा नाचीज़ पर तो वो चीज़ हो उठा
प्यार से फिर पढ़ा मैं ने अहमक़ के दिल पर
पढ़ा सौ हज़ार बार मगर हुआ कुछ न असर
और पत्थर बन गया बदला कुछ भी नहीं
रेत है वो जिस पर उगता कुछ भी नहीं
पूछने लगा क्या है राज़ कि नामे खुदा
इधर कुछ नहीं और उधर देता है फ़ाएदा
वो हैं मरीज़ और ये भी एक मर्ज़ ही हुआ
इधर क्यूं कुछ नहीं उधर बन गया जो दवा
बोले ईसा कि अहमक़ी खुदा का अज़ाब१० है
तन के मर्ज़ हैं आज़माईश, ये लाइलाज है
आज़माईश के मर्ज़ पर मिल जाता है रहम
अहमक़ी है मर्ज़ वो कि मिलता सिर्फ़ ज़ख्म
ये दाग़ है वो जिस पर मुहर उस ने लगाई है
उसके लिए मरहम कोई, न कोई दवा बनाई है
भागों अहमकों से जैसे ईसा ने दिखाया है
अहमकों की सुहबत ने सिर्फ़ खूं बहाया है
१. मसनवी मानवी, तीसरी ज़िल्द, २५७०-९९.
२. मानो
३. मेहरबान
४. मरियम का बेटा यानी ईसा
५. सही, उचित
६. अदृश्य (शक्ति)
७. बनाने वाला, रचयिता
८. सम्मान
९. महान
१०. दोज़ख़ में मिलने वाला पापों का दण्ड
११. मूर्ख, बेवक़ूफ़
4 टिप्पणियां:
अहमकों से भागने की प्रैक्टिस कर रहा हूँ इन दिनों, :)
बहुत बहुत आभार पढवाने के लिए...
वाह। वाह। मरहबा। मरहबा।
कौन कहता है कि यह तर्जुमा है ?
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