१९४८ में पुणे के डेक्कन कालेज के पोस्ट ग्रैजुएट रिसर्च सेन्टर ने एक महत्वाकांक्षी योजना अपने हाथ ली - एक वृहत संस्कृत से अंग्रेज़ी शब्दकोष तैयार करने की। मगर साठ साल बीत जाने के बाद भी वो पहले क़दम से आगे नहीं बढ़ सकी है और अभी तक 'अ' पर अटकी है; 'अ' में भी 'अप' पर हाँफ रही है। पहले अक्षर की इस यात्रा के आठ खण्ड प्रकाशित किए जा चुके हैं, इस बात से अन्दाज़ा लगाइये कि सम्पूर्ण किताब का क्या विस्तार होगा! इस कोष में संस्कृत के १५४० ग्रंथों के हवाले लिए जा रहे हैं। वांछित स्तर के विद्वानों की कमी के चलते या अन्य कारणों से फ़िलहाल कुल दस जन इस योजना से संलग्न हैं मगर अभी न जाने कितना समय और लगेगा?
इसके मुक़ाबले में मोनियर-विलियम्स का ध्यान कीजिये जिन्होने औक्सफ़ोर्ड के संस्कृत प्रोफ़ेसर के पद पर बैठने के लिए मैक्समुलर के ऊपर तरजीह सिर्फ़ इसलिए दी गई कि कि भारत में ईसाईयत के प्रसार के लिए उनकी प्रतिबद्धता पर विभाग के अनुदाताओं को कोई शुबहा नहीं था। मोनियर-विलियम्स ने घोषणा भी कि पूर्वी सभ्यताओं के अध्ययन का उद्देश्य उनका (भारत का) धर्म परिवर्तन होना चाहिये।
उनके इस कलुषित लक्ष्य के बावजूद उनके द्वारा संपादित संस्कृत से अंग्रेज़ी शब्दकोष, संस्कृत भाषा का सबसे प्रामाणिक शब्दकोष है। यहाँ तक कि वामन राव आप्टे का बहुप्रचलित संस्कृत से हिन्दी शब्दकोष भी पूरी तरह से उसी की बुनियाद पर खड़ा हुआ है। उनके पहले संस्कृत के अपने शब्दकोषों में अमरकोष और हलायुध कोष का शब्द-विस्तार सीमित रहा है। और सबसे प्राचीन 'निघण्टु' की सिर्फ़ चर्चा आती है -भौतिक रूप से वह लुप्त हो चुका है- हमें बस यास्क द्वारा की गई उसकी टीका 'निरुक्त' मिलती है।
इस आलोक में मोनियर-विलियम्स द्वारा किया गया काम बड़ा श्रद्धा का विषय है और विलियम जोन्स, मैक्समुलर के साथ-साथ वे भी, मेरी दृष्टि में, किसी ऋषि से कम नहीं हैं।
एडवर्ड सईद भले ही उनके तथा उनके जैसे तमाम दूसरे स्कालर्स के काम को सिरे से ख़ारिज करते रहें मैं उपनिवेशवाद के साथ हर चीज़ का राजनीतिक अर्थ ही लेकर उसे साम्राज्यवाद की एक बड़ी साज़िश का हिस्सा मानने के बजाय उसकी व्यापक उपयोगिता के नज़रिये से उसके महत्व का आकलन करना बेहतर समझता हूँ।
1872 में सर्वप्रथम प्रकाशित इस शब्दकोश को भारत में 'मोतीलाल बनारसीदास' ने बड़े आकार के १३३३ पृष्ठों में छापा है। आभासी जगत में इसे आप यहाँ से इस्तेमाल कर सकते हैं।
8 टिप्पणियां:
@ व्यापक उपयोगिता के नज़रिये से उसके महत्व का आकलन
सहमत। जेम्स प्रिंसेप ने यदि 'ब्राह्मी' लिपि का अर्थ उद्घाटन नहीं किया होता तो ...!
हाँ, सतर्क रहना और पृष्ठभूमि जानना बहुत आवश्यक है ताकि अनजाने ही हम साम्राज्यवादी मंतव्यों से सहमत न होने लगें।
शब्दकोष का लिंक देन के लिए आभार। मैं तो अब तक आप्टे का ही सन्दर्भ के लिए प्रयोग करता था, अब इस लिंक का भी उपयोग करूँगा।
आभार!
आभार!!
एकदम सहमत। वाशि आप्टे का काम मोनियर विलियम्स पर आधारित रहा है। हालांकि कई प्रविष्टियों पर उनकी शब्दावली व्यापक है। मोनियर विलियम्स के कोश की प्रविष्टियों में पाश्चात्य भाषावैज्ञानिक विवरण अधिक हैं मिलता है। इस रूप में आप्टे का कोश सरल है। हां, मेरा काम दोनों कोश देखे बिना सम्पन्न नहीं होता। अलबत्ता दोनों ही कोशों में विवेचनात्मक संकेतों का अभाव है।
इस जानकारी के लिए आभार
जब उद्देश्य ठीक न हो फिर भी निष्कर्ष अच्छा हो, यह समझ नहीं आता है ।
shukriya, shukriya is jankari ke liye
काफी अच्छी जानकारी दी आपने। इसे कहते हैं कि हर किसी से अच्छाई लो। हर किसी में कुछ न कुछ अच्छा होता है। धर्म बदलने की बात भले ही की हो पर उनके इस काम के लिए उनकी इज्जत को करनी ही होगी।
एक टिप्पणी भेजें