फ़ूको : बजाय सामाजिक संघर्षों को ‘न्याय’ की दृष्टि से समझने के, हमें न्याय को सामाजिक संघर्ष के नज़रिये से देखना चाहिये ..
.. सर्वहारा शासक वर्ग के खिलाफ़ इसलिए युद्ध नहीं छेड़ता क्योंकि ये एक इंसाफ़ की लड़ाई है। सवर्हारा शासक वर्ग के विरुद्ध युद्ध करता है क्योंकि, इतिहास में पहली बार, वह सत्ता हथियाना चाहता है। और क्योंकि वो शासक वर्ग की सत्ता को उखाड़ फेंकेगा इसलिए वह इस लड़ाई को न्यायपूर्ण समझता है।
चॉम्स्की : मैं सहमत नहीं हूँ।
फ़ूको : आदमी लड़ाई जीतने के लिए लड़ता है, न्याय के विचार से नहीं।
चॉम्स्की : निजी तौर पर मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ।
मिसाल के तौर पर, अगर मुझे लगता है कि सर्वहारा के द्वारा सत्ता पर क़ब्ज़े से एक आतंकवादी पुलिस राज्य का जनम होगा जिसमें आज़ादी और सम्मान और मानवीय सम्बन्धों की गरिमा नष्ट हो जाएगी, तो मैं नहीं चाहूँगा कि सर्वहारा सत्ता में आए। असल में, ऐसा चाहने के पीछे का एकमात्र कारण, मेरे मत से, यह है कि आदमी सोचता है, सही या ग़लत, कि ऐसे सत्ता परिवर्तन से कुछ मूलभूत मानवीय मूल्य हासिल किए जा सकेंगे।
फ़ूको : जब सर्वहारा सत्ता हासिल करता है, तो बहुत मुमकिन है कि सवर्हारा जिन वर्गो पर विजयी हुआ है, उनके प्रति एक हिंस्र, तानाशाही भरी और खूनी ताक़त का इस्तेमाल करे। मैं नहीं समझ पाता कि इस में किसी को क्या आपत्ति हो सकती है।
लेकिन अगर आप मुझ से पूछें कि वे कौन से हालात होंगे कि सर्वहारा एक हिंस्र, तानाशाही भरी और खूनी ताक़त का इस्तेमाल करे, तो मैं कहूँगा कि यह तभी सम्भव है जब कि सत्ता सर्वहारा के हाथ में आई ही नहीं, बल्कि सर्वहारा से बाहर का कोई वर्ग, सर्वहारा के भीतर का कोई दल, किसी तरह की नौकरशाही या मध्यवर्ग (पेटी बुर्ज़ुआ) के तत्वों ने सत्ता हथिया ली है।
चॉम्स्की : मैं आप की क्रांति की अवधारणा से कई ऐतिहासिक और दूसरे भी कारणों से ज़रा भी मुतमईन नहीं हूँ। मगर फिर भी यह मान लिया जाय, तर्क के लिए, कि अवधारणा के अनुसार यह सही है कि सर्वहारा सत्ता हथिया ले और उसका अन्यायपूर्ण तरीक़े से खूनी और हिंस्र प्रयोग करे, क्योंकि यह दावा किया गया है, जो कि मेरी समझ से ग़लत दावा है, कि ऐसा करने से एक अधिक न्यायपूर्ण समाज बनेगा, जिस समाज में राज्य का विलोप हो जाएगा, सर्वहारा एक सार्वभौमिक वर्ग होगा, और न जाने क्या-क्या। गर यह न्यायसंगत उद्देश्य न हो, तो सर्वहारा की इस तरह की हिंस्र और रक्तरंजित तानाशाही निश्चित ही अन्याय होगी। अब यह अन्य मामला है कि मुझे इस हिस्र और रक्तरंजित तानाशाही के विचार के प्रति बहुत शंकाएं हैं, खासकर तब जब कि वो किसी हिरावल पार्टी के स्वनियुक्त प्रतिनिधि की तरफ़ से आएं, जो, हम एक लम्बे ऐतिहासिक अनुभव से पहले से ही जानते हैं, कि इस ‘नए’ समाज पर नए शासक होंगे।
(१९७१ में फ़ूको और चॉम्स्की के बीच एक बहस का अंश)
पू्री बहस यहाँ पर पढ़ें या यहाँ देखें।
8 टिप्पणियां:
केवल यहाँ दी गई बहस पढ़ कर टिपिया रहा हूँ (आलसी जो ठहरा!)
बस ऐसे ही प्रश्न उभरा - ऐसी बहसें हिन्दी ब्लॉगिंग में अधिकाधिक कब होने लगेगीं?
भैया, दिमागी खुराक या तो यहाँ मिलता है या फिर 'समय' छद्मनामी के यहाँ। ये विषय हमारे लिए किंचित नया है इसलिए और कुछ न कह कर बाकी बहस पढ़ता हूँ।
कोई सर्वहारा सत्ता हासिल नहीं करता, सभी सर्वहारा के नाम पर सत्ता में आते है॥ क्या चीन और रूस में सर्वहारा की सत्ता है????
आपका बदला हुआ अंदाज भा रहा है ... शेष इस पर कभी अलग ढंग से टिप्पणी की जाएगी.
सर्वहारा से क्या मतलब?
फ़ूको और चॉम्स्की के सर्वहारा औऱ cmpershad जी के सर्वहारा में बहुत अंतर नजर आ रहा है। बहुवचन और एकवचन का भी फर्क दिख रहा है।
इसके बारे में पढ़ा था।
यह हिंदी में उपलब्ध नहीं है क्या?
क्या आप इसे यहां पूरा (हिंदी) में देने का विचार और योजना रखते हैं?
आखिर यह देखने की जिज्ञासा तो है ही कि अंततः कहां छोड़ कर जाती है यह बहस।
और इसके वास्तविक मंतव्य क्या हैं?
समय जी
मेरी जानकारी में हिन्दी में उपलब्ध तो नहीं है.. और मेरी कोई योजना इसके अनुवाद की नहीं है.. अंग्रेज़ी में पढ़कर अपनी जिज्ञासा का शमन करने की कोशिश कीजिये.. पर उसका अन्त जैसा कुछ तो नहीं मिलेगा.. ये प्रश्न किसी बहस में सुलझने वाले नहीं। वैसे भी उत्तर आधुनिक विद्वान मानते हैं कि सत्य एक नहीं कई हैं और सभी का सह अस्तित्व होता है..
समय जी
और रही बात मंतव्य की तो माओवाद के सन्दर्भ में दो पिछली पोस्ट इस ब्लाग पर थीं, इस पोस्ट को भी उसे परिप्रेक्ष्य में देखें..
तो भैया 'समय' जी यहाँ आ ही गए !
इन्हों ने छद्मनामी बनना क्यों चुना है? पता नहीं। छोड़िए क्या करना? आम खाने तक ही सीमित रहें।
..मेरा अनुमान उम्मीद से भी अधिक सही निकला। ये सज्जन अपने काम की जगह पर अवश्य पहुँचते हैं।
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