मुम्बई पर हुए हमलों को लेकर भारत और पाकिस्तान में हड़कम्प मचा हुआ है। भारत के अन्दर ये समझदारी है कि दस के दस आतंकवादी पाकिस्तान से बोट के ज़रिए आए थे और उनका मक़सद भारत के आर्थिक हितों को चोट पहुँचाना था जिसके लिए उन्होने लियोपोल्ड कैफ़े, ताज पैलेस और ओबेरॉय ट्राईडेन्ट जैसे होटलों को निशाना बनाया ताकि भारत के लोगों के भीतर एक खौफ़ पैदा करने के साथ-साथ विदेशियों को भी भारत आने और व्यापार करने से हतोत्साहित किया जा सके। नतीजतन भारत को भी पाकिस्तान की ही तरह एक असुरक्षित ज़ोन घोषित मान लिया जाय जहाँ क्रिकेट खेलने से अब भारतीय खिलाड़ी भी इन्कार करने लगे हैं।
मगर पाकिस्तान में आम राय है भारत की यह समझदारी निराधार है और इन हमलों का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं। पाकिस्तान ही नहीं अपने भारत के भी कुछ अति सक्रिय बुद्धि आश्रित जीवन जीने वाले बन्धु भी यह प्रचार करने लगे हैं कि यह हमले हिन्दुत्ववादी शक्तियों ने इज़्रयाइली गुप्तचर संस्था मोसाद के साथ मिलकर आयोजित किए हैं। इनका मानना है कि आतंक का इस आयोजन का मक़सद हिन्दुत्ववादी आतंक की जाँच को दफ़नाना और पूरा ध्यान मुस्लिम आतंकवाद की तरफ़ वापस घुमाना था।
इस सोच के अनुसार ए टी एस प्रमुख हेमन्त करकरे की हत्या कोई दुर्घटना नहीं बल्कि एक सुनियोजित साज़िश है। यहाँ तक कि सी एस टी स्टेशन पर ली गई फोटो में अजमल क़सव के हाथ में बँधा कलावा उस के हिन्दू होने का सबूत है। पाकिस्तान के लोग तो यह भी आरोप लगा रहे हैं कि हम हमले भारतीय गुप्तचर संस्था ने खुद आयोजित किए हैं ताकि वो पाकिस्तान पर हमला कर सके।
पाकिस्तानी पक्ष और हमारा अपना एक बुद्धिजीवी वर्ग सारे सबूतों को अपनी सहूलियत से विश्लेषित कर रहा है। वो मानते हैं सब कुछ भारतीय षडयंत्र है.. मगर हाथ के कलावे के सबूत को षडयंत्र का हिस्सा नहीं समझते.. उसे एक सच की तरह क़सव के हिन्दू होने का प्रमाण मान लेते हैं। हम मानते हैं कि करकरे, कामटे, और सलसकर का एक कार में बैठ कर कामा हस्पताल की ओर जाना के बुरा संयोग था.. वे इस में एक गहरी साज़िश की बू पाते हैं। दि़क़्क़्त ये भी है कि वे सारे घटना क्रम को भारतीय राजनैतिक परिस्थितियों के चश्मे से समझना चाहते हैं। मगर दुनिया छोटी हो गई है और आतंकवाद एक अन्तराष्टीय परिघटना है, जिसे सिर्फ़ बजरंग दल के चश्मे से समझना गहरी भूल होगी।
मुम्बई में आतंकवादी हमले के दो दिन पहले डी एन ए में एक रपट छपी थी जिसमें पाकिस्तान, अफ़्गानिस्तान और ईरान की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की एक अमरीकी योजना का उद्घाटन किया गया था। और यह भी बताया गया था कि इस योजना को लेकर पाकिस्तानी हल्क़ों में किस तरह की बेचैनी और खलबली मची हुई है। एक बेहतर मिडिल ईस्ट को स्थापित करने की अमरीकी सोच के तहत इस नक़्शे को सबसे पहले आर्म्ड फ़ोर्सेस जर्नल में छापा गया।
इस नए नक़्शे में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत को दक्षिण-पूर्वी ईरान का हिस्सा मिलाकर एक स्वतंत्र देश बना दिया गया है। हेरात समेत पश्चिमी अफ़्गानिस्तान को ईरान में शामिल कर दिया गया है। और नार्थ वेस्ट फ़्रन्टियर प्रोविन्स तथा पाक अधिकृत कश्मीर को अफ़्गानिस्तान के हवाले कर दिया गया है। ईरान और अफ़्गानिस्तान का नफ़ा नुक़्सान बराबर हो गया मगर पाकिस्तान को बुरी तरह क़तर दिया गया है। अगर अमरीका इस योजना को लागू कर ले गया तो पाकिस्तान पंजाब और सिन्द प्रांत की एक पतली सी पट्टी भर बन कर रह जाएगा।
अफ़्गानिस्तान में सात साल लम्बी लड़ाई आज भी किसी निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुँची है क्योंकि कबाइली पख्तूनो के लिए पाक-अफ़्गान सीमा का कोई महत्व ही नहीं है। और तालिबान लड़ाके भाग-भाग कर इधर-उधर होते रहते हैं। बहुत दिनों तक अमरीकियों ने पाकिस्तान से उम्मीद की वे अपनी सीमा तालिबानों से मुक़ाबला करेंगे। मगर उन्होने अपने वाएदों को सदा की तरह ज़िम्मेदारी से नहीं निभाया। लिहाज़ा आजकल अमरीकी सेना पाक सीमाओं का अतिक्रमण बिना उनकी अनुमति के करती रहती है। इस को लेकर भी पाकिस्तान में बेहद आक्रोश रहा है मगर अमरीकी शक्ति के आगे वे बेबस हैं और जानते हैं कि सीधे मुक़ाबले में उनका जीतना सम्भव है इसलिए आतंकवाद का गुरिल्ला युद्ध लड़ रहे हैं।
पाकिस्तान के तमाम आतंकवादी संगठन अपने देश के भीतर, अमरीकी ठिकानों पर हमले तो कर ही रहे थे, इस नक़्शे के सार्वजनिक होने पर और भी बौखला गए। और पाकिस्तान के बाहर भी सुरक्षित समझे जाने वाली मुम्बई जैसी जगहों पर अमरीकी, ब्रितानी और इज़्रायली नागरिकों को निशाना बना डाला। कोई कह सकता है कि मरने वालों तो अधिकतर हिन्दुस्तानी हैं। ठीक बात है लेकिन यह भी देखना चाहिये कि दस में सिर्फ़ दो आतंकवादियों ने शुद्ध भारतीय ठिकानों पर हमला किया.. जब कि छै ने विदेशियों की शरणस्थली पर और दो ने सिर्फ़ यहूदी ठिकाने पर। क्या इस से उनकी वरीयता का कुछ पता चलता है? यह हमला एक अन्तराष्ट्रीय युद्ध का एक हिस्सा था जो भारत की ज़मीन पर लड़ा गया।
आखिर में उन लोगों के लिए एक सलाह जो ये समझते हैं कि हिन्दुत्ववादी शक्तियों ने हेमन्त करकरे की हत्या करने के लिए यह षडयंत्र रचा- भाई लोगों ज़रा जनता का मूड पकड़ना फिर से सीखो! साध्वी प्रज्ञा और अन्य गिरफ़्तारियों को लेकर आम हिन्दू जनमानस में भाजपा के खिलाफ़ नहीं बल्कि उसके पक्ष में हवा तैयार हो रही थी। लोगों में करकरे के खिलाफ़ एक ग़ुस्सा विकसित हो रहा था.. और साध्वी के प्रति एक सहानूभूति। करकरे की मृत्यु से तो उलटा भाजपा के हाथ से एक चुनावी मुद्दा छिन गया है..
मगर पाकिस्तान में आम राय है भारत की यह समझदारी निराधार है और इन हमलों का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं। पाकिस्तान ही नहीं अपने भारत के भी कुछ अति सक्रिय बुद्धि आश्रित जीवन जीने वाले बन्धु भी यह प्रचार करने लगे हैं कि यह हमले हिन्दुत्ववादी शक्तियों ने इज़्रयाइली गुप्तचर संस्था मोसाद के साथ मिलकर आयोजित किए हैं। इनका मानना है कि आतंक का इस आयोजन का मक़सद हिन्दुत्ववादी आतंक की जाँच को दफ़नाना और पूरा ध्यान मुस्लिम आतंकवाद की तरफ़ वापस घुमाना था।
इस सोच के अनुसार ए टी एस प्रमुख हेमन्त करकरे की हत्या कोई दुर्घटना नहीं बल्कि एक सुनियोजित साज़िश है। यहाँ तक कि सी एस टी स्टेशन पर ली गई फोटो में अजमल क़सव के हाथ में बँधा कलावा उस के हिन्दू होने का सबूत है। पाकिस्तान के लोग तो यह भी आरोप लगा रहे हैं कि हम हमले भारतीय गुप्तचर संस्था ने खुद आयोजित किए हैं ताकि वो पाकिस्तान पर हमला कर सके।
पाकिस्तानी पक्ष और हमारा अपना एक बुद्धिजीवी वर्ग सारे सबूतों को अपनी सहूलियत से विश्लेषित कर रहा है। वो मानते हैं सब कुछ भारतीय षडयंत्र है.. मगर हाथ के कलावे के सबूत को षडयंत्र का हिस्सा नहीं समझते.. उसे एक सच की तरह क़सव के हिन्दू होने का प्रमाण मान लेते हैं। हम मानते हैं कि करकरे, कामटे, और सलसकर का एक कार में बैठ कर कामा हस्पताल की ओर जाना के बुरा संयोग था.. वे इस में एक गहरी साज़िश की बू पाते हैं। दि़क़्क़्त ये भी है कि वे सारे घटना क्रम को भारतीय राजनैतिक परिस्थितियों के चश्मे से समझना चाहते हैं। मगर दुनिया छोटी हो गई है और आतंकवाद एक अन्तराष्टीय परिघटना है, जिसे सिर्फ़ बजरंग दल के चश्मे से समझना गहरी भूल होगी।
मुम्बई में आतंकवादी हमले के दो दिन पहले डी एन ए में एक रपट छपी थी जिसमें पाकिस्तान, अफ़्गानिस्तान और ईरान की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की एक अमरीकी योजना का उद्घाटन किया गया था। और यह भी बताया गया था कि इस योजना को लेकर पाकिस्तानी हल्क़ों में किस तरह की बेचैनी और खलबली मची हुई है। एक बेहतर मिडिल ईस्ट को स्थापित करने की अमरीकी सोच के तहत इस नक़्शे को सबसे पहले आर्म्ड फ़ोर्सेस जर्नल में छापा गया।
इस नए नक़्शे में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत को दक्षिण-पूर्वी ईरान का हिस्सा मिलाकर एक स्वतंत्र देश बना दिया गया है। हेरात समेत पश्चिमी अफ़्गानिस्तान को ईरान में शामिल कर दिया गया है। और नार्थ वेस्ट फ़्रन्टियर प्रोविन्स तथा पाक अधिकृत कश्मीर को अफ़्गानिस्तान के हवाले कर दिया गया है। ईरान और अफ़्गानिस्तान का नफ़ा नुक़्सान बराबर हो गया मगर पाकिस्तान को बुरी तरह क़तर दिया गया है। अगर अमरीका इस योजना को लागू कर ले गया तो पाकिस्तान पंजाब और सिन्द प्रांत की एक पतली सी पट्टी भर बन कर रह जाएगा।
अफ़्गानिस्तान में सात साल लम्बी लड़ाई आज भी किसी निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुँची है क्योंकि कबाइली पख्तूनो के लिए पाक-अफ़्गान सीमा का कोई महत्व ही नहीं है। और तालिबान लड़ाके भाग-भाग कर इधर-उधर होते रहते हैं। बहुत दिनों तक अमरीकियों ने पाकिस्तान से उम्मीद की वे अपनी सीमा तालिबानों से मुक़ाबला करेंगे। मगर उन्होने अपने वाएदों को सदा की तरह ज़िम्मेदारी से नहीं निभाया। लिहाज़ा आजकल अमरीकी सेना पाक सीमाओं का अतिक्रमण बिना उनकी अनुमति के करती रहती है। इस को लेकर भी पाकिस्तान में बेहद आक्रोश रहा है मगर अमरीकी शक्ति के आगे वे बेबस हैं और जानते हैं कि सीधे मुक़ाबले में उनका जीतना सम्भव है इसलिए आतंकवाद का गुरिल्ला युद्ध लड़ रहे हैं।
पाकिस्तान के तमाम आतंकवादी संगठन अपने देश के भीतर, अमरीकी ठिकानों पर हमले तो कर ही रहे थे, इस नक़्शे के सार्वजनिक होने पर और भी बौखला गए। और पाकिस्तान के बाहर भी सुरक्षित समझे जाने वाली मुम्बई जैसी जगहों पर अमरीकी, ब्रितानी और इज़्रायली नागरिकों को निशाना बना डाला। कोई कह सकता है कि मरने वालों तो अधिकतर हिन्दुस्तानी हैं। ठीक बात है लेकिन यह भी देखना चाहिये कि दस में सिर्फ़ दो आतंकवादियों ने शुद्ध भारतीय ठिकानों पर हमला किया.. जब कि छै ने विदेशियों की शरणस्थली पर और दो ने सिर्फ़ यहूदी ठिकाने पर। क्या इस से उनकी वरीयता का कुछ पता चलता है? यह हमला एक अन्तराष्ट्रीय युद्ध का एक हिस्सा था जो भारत की ज़मीन पर लड़ा गया।
आखिर में उन लोगों के लिए एक सलाह जो ये समझते हैं कि हिन्दुत्ववादी शक्तियों ने हेमन्त करकरे की हत्या करने के लिए यह षडयंत्र रचा- भाई लोगों ज़रा जनता का मूड पकड़ना फिर से सीखो! साध्वी प्रज्ञा और अन्य गिरफ़्तारियों को लेकर आम हिन्दू जनमानस में भाजपा के खिलाफ़ नहीं बल्कि उसके पक्ष में हवा तैयार हो रही थी। लोगों में करकरे के खिलाफ़ एक ग़ुस्सा विकसित हो रहा था.. और साध्वी के प्रति एक सहानूभूति। करकरे की मृत्यु से तो उलटा भाजपा के हाथ से एक चुनावी मुद्दा छिन गया है..
23 टिप्पणियां:
भाई साहब इतनी ही समझ विकसित हुई होती तो बात ही क्या थी… लेकिन जैसे लालू-मुलायम-पासवान हैं वैसे ही पाकिस्तान में भी कुछ लोग हैं जो किसी भी तरह से "हिन्दू आतंकवादी" नाम की अवधारणा को स्थापित करने में जी-जान से जुटे हैं…
CST पर मरने वालों की संख्या 55 थी.
इस बात पर भरोसा करना मुश्किल है कि आतंकवादियों का मुख्य टार्गेट हिन्दुस्तानी नहीं बाहरी व्यक्ति थे.
मुझे लगता है कि आतंकवादियों ने आम के साथ गुठलियां भी चाहीं.
आम - हिन्दुस्तानी
गुठलियां - बाहरी व्यक्ति
इसलिये ऐसे स्थानों पर हमला किया गया जहां विदेशी होते हैं.
साथ ही यह भी न भूलें कि जिन आतंकवादी संगठनों का यह काम है उनका दुश्मन हिन्दुस्तान ही नहीं, इज़्राइल, अमेरिका और ब्रिटेन भी है... लेकिन जैसा कि लादेन कह चुका है, हिन्दुस्तान भी उनका दुश्मन है.
इन टार्गेट्स के जरिये ज्यादा से ज्यादा दुश्मनों पर एक साथ हाथ साफ कर सके.
सीमाओं के नवनिर्माण की बात अजीब लगी. इस प्रकार कैसे आतांकवाद पर काबू पाया जा सकेगा?
जानकारी पूर्ण लेख के लिए बधाई.
- देश प्रेमी
नक्शा देखा हुआ था.
हमले के बाद ही मैने लिखा था कि हिन्दू बहुल भूमि से भारतीयों, अमेरिकी, ब्रिताली और यहूदियों पर हमला हुआ है.
करकरे को हटाने के लिए इतना बड़ा भयानक नाटक करने की जरूरत थी? और जो खूद को मुस्लिम कह रहा है उसे धागे के आधार पर हिन्दु बनाने पर कौन तुला हुआ है? ऐसे लोगों की बुद्धी पर तरस आता है.
जानकारी पूर्ण लेख!
aur vo jo aatankavaadiyo ke statement aa rahe hai.n..jo bata rahe hai.n ki vo kis desh me paida hue the...! un sab pe kisi ka dhyan kyo nahi jaa rahaa.
vo kaleva hai ya friendship band..aaj mai bhi dekh rahi thi.
ऐसे ही पढ़ाते रहो,मेरे भाई ।
तथ्य परक लेख है।
बहुत अच्छा जानकारी परक ..विश्लेषणात्मक आलेख...ये हिंदु आतंकवाद की आधी अधूरी बिना किसी सिर पूंछ की अवधारणा ने आतंकवाद के खिलाफ लङाई को कमजोर किया है
लेख के लिये धन्यवाद!
वैसे आज शाम एक घटिया कहे जाने वाले चैनल ने अनजाने में बहुत अच्छा काम कर दिया है .उसने उस आतंकवादी का ठिकाना ,चोरी करते वक़्त उसके साथी का नाम ,उसके बाप उसके परिवार सबका पता दिया है.......पाकिस्तान सरकार ने कारगिल में अपने सैनिको को अपना सैनिक मानने से मन कर उनकी लाश लेने से मना कर दिया था उसे क्या उम्मीद करे ?पर वहां का मीडिया ?????उसने भी अपनी आँखे बंद कर ली है ?
मोसाद-सीआईए आदि वाली थ्योरी हमने भी सुनी है और ये भी कि करकरे को मारने के लिए 200 लोग मार दिए गए वैध सरकारों द्वारा। इन्हें सुनना भर ही पर्याप्त त्रासद है, इसपर प्रतिक्रिया तो खैर क्या करें। उर्दू प्रेस की भूमिका भी दु:खी करने वाली रही है।
इस कक्षा से मैं भी लाभान्वित हुआ। आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध एक अंतर्राष्ट्रीय युद्ध है। इसे शांति की शक्तियाँ मिल कर ही लड़ सकती हैं। एक राष्ट्र से आतंकवाद को साफ करना संभव नहीं। उसे दुनिया से ही उठाना होगा।
ये तो "कोलेटरल डेमेज" वाली
बात हो गई !
-कि हिन्दु भी मारे गये -
और कसब ,१ आतँकवादी, क्या सिर्फ धागे की वजह से हिन्दू माना जायेगा ?
देखिये, अब पाकिस्तान क्या करता है
लाल धागा यहाँ उत्तरप्रदेश में बहुत से मुस्लिम बाँधते हैं यही नहीं उन्नाव के पास मल्लावाँ मे बहुत से मुस्लमान हिदुओं की तरह धोती भी पहनते हैं तो क्या वे मुसलमान नहीं है?दर अस्ल जो देश बिहारी मुसलमानों को महाजिर कह के मारता रहा हो उससे इस तरह के जाहिलाना ज़वाब से ज्यादा की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है।
महत्वपूर्ण व विचारणीय।
आपका लेख मित्रों को भेज रही हूँ।
धन्यवाद।
भाई जब यह घटना क्रम जारी था कुछ विचारकों ने इसे सीधे साध्वी इत्यादि से जोड़ कर देखने की पैरवी की थी....लेकिन आप का लेख उन्हें शायद समझदार बानाए
Suresh, agar Lalu Mulayam ko gaali dene se mazaa aata hai to RSS aur Bal Thackeray ke jawaan kahaan hain?
Cyril, Laden ne tumhare hi kaan me kaha hoga ki India dushman hai?
Masijeevi
The role of Urdu press has been much better than others. Just one paper has printed a report speculating only about one aspect of it.
Like Saamna wrote a dirty piece. Can you call all Hindi newspapers disappointing?
Adi
आपके विश्लेषण और निष्कर्ष दोनों से सहमत। यह हमला अंतर्राष्ट्रीय युद्ध का हिस्सा था जो भारत की जमीन से लड़ा गया।
The following links mention where Laden has expressed open hostility against India.
Please continue supporting Osama bin Laden, and keep your eyes closed to all of his faults if you desire. Whoever you are.
http://www.saag.org/common/uploaded_files/paper83.html
http://www.southasiaanalysis.org/papers4/paper373.html
https://mailman.rice.edu/pipermail/sasialit/2001-September/007105.html
ऐसे लोगों से क्या कहियेगा जिनकी समझ ऐसी हो? यह सारी करतूत हमारी अपनी सोची समझी साजिश है.
"Hmm.....interesting! So, according to u Hindu extremists have a much track record than anyone else. Looks like you have spent a lot of time in India. Christian evangelists published books calling Indian gods & goddesses as whores & prostitutes in their zeal to spread the religion. But I guess the Hindus of India should keep quiet & not target churches. Similarly, Islamic invaders committed the largest known genocide on native Indians for not accepting their religion. Muhammad Ghori committed genocide against Hindus at Kol (modern Aligarh), Kalinjar and Varanasi. According to Hasan Nizami's Taj-ul-Maasir 20,000 Hindu prisoners were slaughtered and their heads offered to crows. Muslim emperor Timur himself recorded the invasions in his memoirs, collectively known as Tuzk-i-Timuri, boasting how "in a short space of time all the people in the [Delhi] fort were put to the sword, and in the course of one hour the heads of 10,000 infidels were cut off.
In 1920s, muslims in Kerala went on a rampage killing the majority Hindus for not accepting Islam. (moplah rebellion). They even tortured & killed pregnant women, hacking them to pieces & throwing the unborn fetuses in the bushes.
And as recently as 1990, 1000s of kashmiri pandits were ethnically cleansed by Islamic extremists in India.
But hey, all that is ok. Hindus still should not have hard feelings. After all, they belong to the majority community & so any form of retaliation by them against the peace loving minorities would be unacceptable!"
जानकारी पूर्ण लेख के लिए बधाई !!!!!!!!!
Ajit ji
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