शुक्रवार, 22 जून 2007

अछूत कौन थे - ३

अध्याय ५ : क्या ऐसे समानान्तर मामले हैं?

जी हाँ, आयरलैंड और वेल्स में भी इस तरह की घटनाएं घटी हैं। आयरलैंड के गाँवो के संगठन के बारे में जानकारी सर हेनरी मेन की किताब अर्ली हिस्ट्री ऑफ़ इन्स्टीट्यूशन्स में से मिलती है;

ब्रेहन का कानून एक कबायली समाज को चित्रित करता है, ऐसे समाज में कबीले की ज़्यादातर ज़मीन पर या तो मुखिया का या फिर अन्य कुलीन परिवारों का कब्ज़ा होता है। बाकी बची हुई बेकार या परती ज़मीन कबीले की सामूहिक सम्पत्ति होती है, जिस पर मूल रूप से मुखिया का नियंत्रण होता है। इस ज़मीन पर कबीले वाले पशु चराते है या इस ज़मीन मुखिया उन लोगो को बसाता है जो फ़्यूदहिर कहलाते हैं। ये अजनबी, छितरे हुए, बहिष्कृत लोग उसके पास संरक्षण के लिये आते हैं, इसके अलावा कबीले से उनका और कोई सम्बन्ध नहीं होता।

हेनरी मेन इन फ़्यूदहिर के बारे में आगे लिखते हैं; फ़्यूदहिर दूसरे कबीलों से भागे हुए अजनबी लोग थे जिनका सम्बन्ध अपने मूल कबीले से टूट चुका था.. एक हिंसक दौर से गुजरते हुए समाज में एक छितरे हुए आदमी के पास आश्रय और सुरक्षा पाने का एक मात्र उपाय था फ़्यूदहिर किसान बन जाना।

श्री सीमोम ने अपनी किताब ट्राइबल सिस्ट्म इन वेल्स में बताया है कि वेल्स के गाँव दो हिस्सो में बँटे होते, स्वतंत्र किसानों के घर और पराधीन किसानों के घर। इस विभाजन का कारण के बारे में वे लिखते हैं- आदिम कबायली समाज में दो स्वतंत्र व्यक्तियों के बीच सम्बन्ध का आधार रक्त सम्बन्ध ही था, जो रक्त सम्बन्धी न हो वह कबीले का हिस्सा नहीं हो सकता था। इस तरह आदिम वेल्स समाज में दो वर्ग थे; वेल्स रक्त वाले और अजनबी रक्त वाले। और इन दोनों के बीच चौड़ी खाई थी।

इस तरह से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत के अछूत ही अकेले ऐसे नहीं है जो गाँव से बाहर रहते हों। यह एक सर्वव्यापी परम्परा थी, जिसकी विशेषताएं थीं;

१. आदिम युग के गाँव दो हिस्से में बँटे रहते। एक हिस्से में कबीले के लोग रहते और दूसरे में अलग अलग कबीलों के छितरे लोग।
२. बस्ती का वह भाग जहाँ मूल कबीले के लोग रहते वह गाँव कहलाता। छितरे लोग गाँव के बाहर रहते।
३. छितरे लोगों को गाँव के बाहर करने का कारण था कि वह पराये थे और उनका मूल कबीले से कोई सम्बन्ध न था।

अध्याय ६: छितरे लोगों की अलग बस्तियां अन्यत्र कैसे विलुप्त हो गईं?

आदिम समाज रक्त सम्बन्ध पर आधारित कबायली समूह था मगर वर्तमान समाज नस्लों के समूह में बदल चुका है। साथ ही साथ आदिम समाज खानाबदोश जातियों का बना था और वर्तमान समाज एक जगह बनी बस्तियों का समूह है। रक्त की समानता के स्थान पर क्षेत्र की समानता को एकता का सूत्र मान लेने से ही छितरे लोगों की अलग बस्तियां बाकी जगहों पर नष्ट हो गईं।

एक खास अवस्था पर पहुँचने पर आदिम समाज में नियम बना जिसे कुलीनता का नियम कहा गया, जिसके अनुसार बाहरी आदमी दल का हिस्सा बन सकता था।

श्री सीमोम के अनुसार वेल्स की ग्राम पद्धति में..
१. सिमरू (दक्षिण वेल्स) में ९ पीढ़ियों तक लगातार रहने पर किसी अजनबी की सन्तति स्वयमेव कबीले का हिस्सा हो जाते।
२. या फिर किसी अजनबी की सन्तति बार बार सिमरुओं में ही विवाह होने पर चौथी पीढ़ी में सिमरू हो जाते।

सवाल है भारत में ऐसा क्यों नहीं हुआ? जबकि मनु ने इसका उल्लेख (१०.६४-१०.६७) भी किया है कि यदि कोई शूद्र सात पीढ़ियों तक ब्राह्मण जाति में विवाह करे तो ब्राह्मण हो सकता है। मगर प्राचीन विधान के चातुर्वर्ण्य का नियम था कि एक शूद्र कभी भी ब्राह्मण नहीं बन सकता। और मनु इस से डिग नहीं सके। नहीं तो भारत में भी छितरा समुदाय गाँव की मुख्य धारा में घुल मिल जाता और उनकी अलग बस्तियों का अस्तित्व खत्म हो जाता।

ऐसा क्यों नहीं हुआ? इसका उत्तर यही है कि छुआछूत नाम के एक नए तत्व के आ जाने का परिणाम हुआ कि आज भारत के हर गाँव में अछूतों की अलग बस्ती है।

जारी..

6 टिप्‍पणियां:

काकेश ने कहा…

काफी नई जानकारियां मिल रही हैं.धन्यवाद इसे प्रस्तुत करने के लिये.बाबा साहब ने इस विषय पर काफी शोध किया हुआ है ऎसा लगता है.आरक्षण के अधिकतर समर्थक या विरोधी उनके इस पक्ष को जानते ही नहीं.अगले अंको की प्रतीक्षा है.

अनामदास ने कहा…

मित्रवर
इस विशुद्ध श्रम के लिए आपका आभारी हूँ, सबको होना चाहिए. कई नई खिड़कियाँ खोल रहे हैं.
धन्यवाद

Farid Khan ने कहा…

काफ़ी विस्तार पूर्वक आप अपने अध्ययन को यहाँ पोस्ट कर रहें हैं.

मेरे लिए इस तरह का कुछ भी पढना बिल्कुल नया है ... अम्बेदकर के विचारों से परीचित करवाने का शुक्रिया.

अफ़लातून ने कहा…

अभयजी बाबासाहब का विशाल अध्ययन मौजूदा विश्विध्यालयों के कितने विभागों में शोध में सहायक हो सकता है? वसाहत के बारे में मानव भूगोल ,इतिहास, नृतत्वशास्त्र ,समाजाशास्त्र । जातियों को टिकाये रखने के लिए जो प्रथायें चलीं -विधवा विवाह पर रोक, सति प्रथा उनके बारे में भी बाबासाहब से ज्ञान मिलेगा ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

अभय जी नमस्ते !

श्री अम्बेडकरजी के विचारोँ को सरलता से रखने का शुक्रिया ~
कई धर्मोँ के बीच की खाई मेँ खान पान, रहन सहन ने भी प्रमुख भूमिका निभायी है.
हीटलर ने कई युरोपीय जीप्सी कौम के लोगोँ को मरवा दीया था (यहूदीयोँ के साथ )--
ब्राह्मणोँ मेँ माँस मदिरा सेवन को तिरस्कार और तिलाँजलि देना उन्हेँ आभिजात्य व दूस्रोँ को अस्पृशस्य ठहराने मेँ भी कई अँश तक रुढीवाद की बुनियाद मेँ काम करता रहा था --
ये प्रत्यक्ष न होकर साँकेतिक प्रभाव रहे होँगेँ --
इन मुद्दोँ पे उनके विचार क्या थे?
लिखियेगा - स्नेह,
लावण्या

अनूप शुक्ल ने कहा…

अच्छा लग रहा है। पढ़ रहे हैं!

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