आप तीनों के नाम एक पत्र
पहले भैया राहुल,
आप वामपंथी है.. आर एस एस और विहिप के बजरंगी दर्शन और सामाजिक व्यवहार से आपको समस्या है..क्योंकि उनमें मुसलमानों के प्रति एक विशेष पूर्वाग्रह है.. उनकी उग्र, दंगाई मानसिकता को आप एक छुद्रता और नीचता का प्रदर्शन मानते हैं.. यानी आप स्वयं को अधिक समझदार, अधिक विकसित, अधिक सभ्य मानते हैं.. तो आप ऐसे किसी व्यक्ति के विषय में क्यों इस प्रकार के छुद्र शब्द इस्तेमाल करते हैं.. जिनसे आपके मात्र वैचारिक विरोध है.. ? संजय बेंगाणी ने किसी को गाली तो नहीं दी.. ? कोई अपशब्द तो नहीं कहे.. ? क्या आप उन्हे इतना अधिकार भी नहीं देते कि वो ये तय करें कि वे क्या पढ़ेंगे.. क्या नहीं पढ़ेंगे.. और किसे पसन्द करेंगे, किसे नहीं.. ? क्या आपके जनतांत्रिक समाज मे मनुष्य के पास यह हक़ नहीं होगा..? और फिर ऐसी भाषा..?
अब दूसरी बात नारद के कर्ता धर्ताओं से..
भाई लोग आप लोगों ने बड़ी फ़ुर्ती दिखाई.. राहुल को एक मौका तो दिया होता अपनी गलती समझने और सुधारने का.. और इस तरह से त्वरित निर्णय का अर्थ क्या है.. आप सब मामलों में तो ऐसा निर्णय नहीं लेते.. अब देखिये भाई अरुण अरोड़ा जब चिट्ठे की दुनिया में आये तो बहुत गरमी और गुस्से में थे.. मोहल्ले में उन्होने अविनाश और रवीश से झगड़ा तो किया ही किया.. कुछ दिन बाद मुझे भी गरिया दिया.. और रियाज़ को तो कुछ ज़्यादा ही.. मुलाहिज़ा फ़रमायें..
इक था हमने पहले देखा
इक था हमने पहले देखा,देख लिया अब दूजे को
तरबूजे की बेल बदल गई रंग देख खरबूजे कॊ
खीरे ने छॊडी कडवाहट शक तो उसी ने उपजाया
निर्मल ककडी की बेलो मे जहर कहा से ये आया
अग्नि से जो चमक उठी तो बजार सारा गुलजार हॊ गया
सिसक रहे थे जलने वाले,हाशिये का व्यापार हो गया
फ़िर से सारे रियाज कर रहे वही गन्दगी लाने का
अफ़सोस इन्हे है साफ़ सुथरे रिलायंस के आ जाने का
सुअर कहा खुश रह सकते है,इतनी अच्छी मंडी मे,
साफ़ नहर मे कहा मजा जो है नाले की ठंडी मे
लौट लगाये बिना गुजारा बिन कीचड के है मुश्किल
निर्मल जल मे घोल गन्दगी आनन्द है इनकी मंजिल
जिसको प्यारा कूडाघर हो उसको एसी कब रास आया
कुआ ही प्यारा जिस मेढक को,उसको सागर कब भाया
7 लोगों की राय:
संजय बेंगाणी said...
तो आप पंगा लेने से बाज नहीं आने वाले. सही है. लगे रहे. अच्छी तुक्कबन्दी.
Suresh Chiplunkar said...
मैने पहले भी कहा था कि आप कविता अच्छी कर लेते हैं, अब लगे हाथों यह भी बता दो भाई कि ये "सूअर" कौन है ? क्या एक ही है या दो चार हैं ? गन्दगी में लोट लगाने के बाद क्या ये सूअर मानसिक बीमार हुए ? इस सब पर एक जाँच कमीशन बैठाने की आवश्यकता है... :) :)
Anonymous said...
अरे भाया, सब्जी मंडी मे बैठ कर ये क्या बांच रहे हो। किस सूअर की बात करते हो।"सिसक रहे थे जलने वाले,हाशिये का व्यापार हो गयाफ़िर से सारे रियाज कर रहे वही गन्दगी लाने का"एक सुझाव देता ही बिना माँगे- गंदगी मे मत जाया करो।जलने वालों की बात कर रहे हो भाया ये आग कहाँ लगी है? आग बुझाउ दस्ते को बुलवा लेते।नाह्क परेशान हो रहे हो। तुकबन्दी अच्छी है।
अभय तिवारी said...
क्या समस्या है भई?
mahashakti said...
तुक बंदी तो कोई आप से सीखे मजेदार लिखा है।
Sagar Chand Nahar said...
यानि आपने क्सम खा ली है कि आप अपनी रचनाओं के माध्यम से पंगे लेना नहीं छोड़ेंगे, ठीक है भाई लगे रहो। लेते रहो पंगे। जब उकता जाओगे खुद-ब-खुद छोड़ दोगे सब। उस दिन का इंतजार है।
अरुण said...
क्या समस्या है भई?भाई आप समस्याये सुलाझाने वाले वालेंटियर हो बडी अच्छी बात है,पर यहा आपको किसने बुलाया लगता है आपको भी गलत ट्रैक पर जाने की बुरी बीमारी है तुरन्त इलाज कराये और रही समस्या की बात तो भाई हमे तो कोई नही अपनी आप जानो
मुझे बहुत अच्छा तो नहीं लगा.. पर मैंने सोचा कि चुप रहूँगा और सहूँगा.. शायद बात हल हो जाय.. कुछ ऐसा ही हुआ.. अरुण जी अब मेरा लिखा पसन्द करने लगे हैं.. और मैं भी देख रहा हूँ.. जब वो गुस्से में नहीं होते बड़ा कमाल का लिखते हैं..और इसी वजह से उनके ब्लॉग का लिंक भी मेरे ब्लॉग पर है..
इसी तरह भाई काकेश, जिनसे मैं उनके मुम्बई आने पर मिला.. और जाना कि वे कितने गम्भीर और शालीन आदमी है.. उन्होने मेरे और अविनाश के बीच चले एक विवाद को दो कुत्तो की लड़ाई के समकक्ष रखा.. ऐसी एक तस्वीर डाल के.. अविनाश की तुलना वे एक पागल कटखन्ने कुत्ते से पहले ही कर चुके थे..
पर आपने न तो पंगेबाज अरुण जी को इस तरह की कड़ी कार्यवाही के योग्य समझा और न ही प्रिय काकेश को.. और ठीक ही समझा.. बस इस बार आप गलत निर्णय ले गये.. नारद एक फ़ीड एग्रीगेटर है.. उसे चिट्ठेकारों के आपसी विवादों में कूद कर कोई पक्ष लेने की क्या ज़रूरत है.. मेरा निवेदन है कि आप राहुल का चिट्ठा दुबारा बहाल करें.. राहुल क्या करते हैं वो दूसरा मामला है..
और आखिर में मेरे नए मित्र संजय बेंगाणी जी,
भाई आप मुम्बई आए हमारी संक्षिप्त मुलाक़ात हुई और आपने तस्वीरें भी खींची.. फिर मुझे उम्मीद थी कि आप इस यात्रा और मुलाकात का पूरा विवरण विस्तार से लिखेंगे.. जो आप ने अधूरा लिख के छोड़ दिया.. हम चारों में से एक ही व्यक्ति ने ये साहस किया और अब आप ऐसे लटका मत दीजिये.. उसे अन्त तक ले कर जाइये.. और फोटो भी छापिये..
और हाँ जिस टिप्पणी से ये सारा विवाद शुरु हुआ है.. आपकी वह टिप्पणी प्रतिरोध नामक एक नये ब्लॉग पर असगर वजाहत द्वारा लिखित शाह आलम कैम्प की रूहें लघु कथा के संदर्भ में थी..प्रतिरोध की वह पोस्ट और आपकी वह प्रतिक्रिया दोनों मैंने देखी.. आपने उस लघु कथा को ज़हर फैलाने के तुल्य माना.. आपकी वह बात तब भी मेरे गले नहीं उतरी.. उसके बाद आपने अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट चस्पाँ की उस से भी साफ़ नहीं हुआ कि आप क्या कह रहे हैं.. लोग आपके विषय में गलतफ़हमियां न पालें इसलिये आप से दो गुज़ारिश हैं..
१) इन बात पर ज़रा विस्तार दें कि क्यों एक मुसलमान कैम्प में दंगे के बाद अनाथ बेघर हो गये लोगों पर लिखी लघु कथा आपको ज़हर लगती है.. और क्यों उनका दर्द आपको मज़हबी दर्द लगता है..उनके इंसानी दर्द बनने के लिये उसे क्या करना होगा.. और..
२) अगर कोई आपके लिए लिखता है, "अगर ज़हर की बात करें तो सबसे ज़्यादा ज़हर आप जैसे संघ और विहिप के समर्थकों ने फैलाया है" तो आप का कहना है कि आप उनकी अज्ञानता पर केवल हँस ही सकते हैं.. लोगों की अज्ञानता पर हँस लेना अच्छा है.. पर इस पर एक सफ़ाई दे देना और भी अच्छा है.. फिर अज्ञान की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी..
आपके जवाब के इन्तज़ार में..
आपका मित्र
अभय तिवारी
18 टिप्पणियां:
भइया संजय, आपका यह नहीं पढ़ना.. और फिर थोड़ा पढ़कर बहुत-बहुत पढ़ लेना, देखिए, किस-किस तरह की आग फैलाता है!.. ब्लॉगर्स मीट के बहाने अच्छा-खासा आप हमारा परिचय लिखते, अभय का गंदा और हमारी अच्छी फोटो छापते.. सब छोड़कर अब बस हवाई तीर छोड़े जा रहे हैं!.. असग़र वज़ाहत की ज्यादा कहानियां मैंने भी नहीं पढ़ीं मगर ऐसी मार्मिक गुहार होती तो असग़र तो क्या, मैं मनोहर कहानियां भी जिम्मेदारी से पढ़कर अभय जी को जवाब लिख देता!.. आप खामखा एक काम टाले हुए हैं, इसी चक्कर में फोटोशॉप में हमारे बाल काला करने का वह काम भी भूल गए जिसके लिए आपके कान में फुसफुसाकर मैंने खास दरख्वास्त की थी?.. एक आदमी अपना काम जिम्मेदारी से करता नहीं दिख रहा.. कि यही इसी तरह आप सामाजिक जिम्मेदारी निभाना चाहते हैं?..
भाई अभय जी,
मैने काम को अधूरा छोड़ा नहीं है, मात्र विलम्ब हो रहा है. मैं लेखक न हो कर व्यवसायी हूँ, और समय निकाल कर लिखता हूँ. अब आगे का प्रकरण आपके घर का ही है :) प्रतिक्षा करें.
आपके सवालो के जवाब भी दिये जाएंगे. असगर साहब से मुझे कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है. मैने उनके वारे में ऐसा क्यों लिखा उसके लिए भी एक पोस्ट बनती है. लिखा जाएगा.
संजय , सब लिखें ।मुझे भी राहुल की भाषा अच्छी नहीं लगी। रोक न हो ।अभयजी ,आभार।
आपकी कई बातों से सहमत हूँ और कई से नहीं ..अब संजय भाई को आपने एक पोस्ट का आईडिया दे ही दिया है...एक पोस्ट का आइडिया मेरे को भी मिल गया.. जिन बातों से असहमति है उन पर समय मिलते ही लिखुंगा... मैं कहुंगा मैं लेखक न हो कर एक नौकर हूँ, और समय निकाल कर लिखता हूँ...इसलिये समय मिलते ही लिखुंगा..
मैं भी अफलातून जी के समर्थन में हाथ उठाता हूं
रोक न हो.
अभय जी मै यहा कुछ नही कहना चाहता,वजह कुछ कहने से अगर कटुता बढती है तो थॊडी सी चुप्पी अच्छी है,जीतू भाइ की दी गई धमकी जो सुबह नारद पर आई टिप्पणीयो मे थी और नारद से समय समय पर आये नोटिस, उन सब पर पूरा लम्बा लेख लिखा जा सकता है,जीतू भाइ की परेशानी भी मै समझ सकता हू मै गाहे बेगाहे नारद को सुना देता हू पर उनकी भी मजबूरी रवीश भाई जैसी है,जवाब है नही दे कहा से उन यक्ष प्रश्नो का,और अगर दे तो अपने कहे को गलत साबित करे..?अब यहा मै किसी भी भाइ से किसी सवाल का जवाब नही मांग रहा वो गुजरे वक्त की बाते है :)
मेरा आपसे बस यही कहना है कि लोग आपको तालीबानी कहे और आप हर बात मे दुसरो को संघी "ये कोई अच्छी बात नही है"
(अटल जी से साभा्र)
मैने दंगे देखे है झेले है चाहे कोई भी हो दोनो तरफ़ वही हाल वही मार काट,वही अफ़वाहे होती है
कृपया आप लोग भी संतुलित बात करे सभी को अच्छा लगेगा
क्या आपको गुजरात के अलावा,असम नही दिखाइ देता,कशमीर क्यो नही जाते भाइ
आप जरा इन संदर्भो के बारे मे भी लिखिये फ़िर बात बनती है
अब रही बात तुकबंदी की तो अब आपके उपर एक अच्छी सी जरुर लिखुगा
धन्यवाद की आपने मुझे भी अपने ब्लोग पर स्थान दिया,उम्मीद है दिल मे भी देगे
भाइ एक फ़ोटो जरा अचछी सी जिस्मे आपको कही मिलते ही पहचाना जा सके छापे :)
और भाइ अगर इस खुले पत्र मे कुछ भी बुरा लगे तो मै माफ़ी चाहता हू मै अभी कैसा भी कोई पंगा नही लेना चाहता,वैसे भी गरमी बहुत है
:)
प्रतिदावा:-भाइ मै आज के इस एपीसोड मे भागीदारी नही कर रहा हू केवल आपके चिट्ठे पर टिपिया रहा हू सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने मामले पर जो आपने छापा है :)
फ़िर वही बकझक और तूतू-मैमै चालू हो गई, बडी मुश्किल से बाजारु और मोहल्ले से छुटकारा मिला था, अब ये क्या नया पंगा हो गया है.. वैसे एक बात तो तय है कि कश्मीर पर ना तो कोई बोलेगा, ना पंडितों के कैम्प में कोई आत्मा जायेगी देखने कि उनके क्या हाल हैं, क्योंकि जो मुसलमान के पक्ष में लिखेगा वही प्रगतिशील है ऐसा मान लिया गया है, इसीलिये शिवराज पाटिल को वामपंथियों से प्रमाणपत्र लेने के लिये मुसलमानों के पक्ष में बोलना पडा, वरना उन्हें धर्मनिरपेक्ष कौन मानता ? तो भाईयों इस बहस मुबाहिसे में कुछ नहीं रखा, जब दंगे होंगे तब ये बुद्धिजीवी सबसे पहले घरों में घुसेंगे और हमें बचाने संघ ही आयेगा... और धर्मनिरपेक्षता का जो झंडा उठाये घूम रहे हैं, उन लोगों के घरों में भी हथियार मिल जायेंगे, सिर्फ़ एक सच्चे हिन्दू के घर में एक डंडा भी नहीं मिलेगा... यदि अपने आप को बडा़ और प्रगतिशील लेखक बनवाना है तो मुसलमानों के पक्ष में लिखो, हिन्दुओं को गाली दो, भाजपा-संघ को कोसो, फ़िर देखो कैसे आप पर अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कारों की बारिश होती है...
मुझे माफ़ किजिये मुझे ये सब समझ नही आता,मै सिर्फ़ एक कवि हूँ और कुछ नही नारद अब मुझे परिवार सा लगता है...मुझे इस तरह की मेल ना भेजा किजिये जिसको पढ़ कर एक दूसरे से नफ़रत और झगडे़ की बू आती हो...हाँ कविता अच्छी लगी चाहे वो आपने किसी पेर कमैंट ही किया हो...
सुनीता(शानू)
संजय जी.. आप के जवाब का इन्तज़ार है..
काकेश जी.. आपके व्यंग्य बाण की राह हम देख रहे हैं..
अरुण जी.. शुक्रिया आपने मएरे मंशे को गलत नहीं समझा.. पहचानने लायक फोटो देखियेगा संजय जी और शशि जी के साथ खड़े हुए.. संजय जी छापेंगे जल्दी ही..
सुनीता जी.. आपको कुछ गलत फ़हमी हुई ..न तो मैंने आपको कोई मेल भेजी.. न ही ये कविता मेरी है जो इस पोस्ट पर मौजूद है.. ये अरुण अरोरा द्वारा रचित है.. और आपकी तारीफ़ के हक़दार भी वही हैं..
अभय भाई मैने सोचा आपकी नाराजगी दूर आज ही करु,और यही करु ज्यादा अच्छा है तो लो पेश है
वही कविता पु्न: आपके सम्मान मेउम्मीद है पसंद आयेगी
इक था हमने पहले देखा,देख लिया अब दूजे को
तरबूजे की बेल बदल गई रंग देख खरबूजे कॊ
खीरे ने छॊडी कडवाहट मीठा बन कर वो आया
निर्मल ककडी की बेलो मे निर्मल रस सब कॊ भाया
लौट लगाये बिना गुजारा बिन मस्ती के है मुश्किल
निर्मल जल मे घोल केवडा आनन्द है इनकी मंजिल
कोई कितना चाहे पुकारे ये नही है वापस जाने वाले
बहुत मिला प्यार इन्हे अब,बढ गये यहा आने वाले
जिसको प्यारा लिखना हो उसको झगडा कब रास आया
कल कल बहना जिसको प्यारा,उसको सागर कब भाया
अब अभय भाइ वो बात भी कह रहा हू जो मै बार बार रोक रहा था,पहले रविश जी और अब राहुल जी ने जिस ढंग से बैंगणी बंधुओ के नाम के साथ
लेख लिखा था,वो सरासर गलत था अगर वह वक्त रहते खेद प्रकट कर देते तो हवाये गर्म होती न फ़िजाओ मे संदेश तैरता,पंकज जी का तो कोई आलेख मैने आज तक नही देखा तो ये सब क्या था,मै कल से उनके सारे पुराने लेख देख रहा था
और यहा मै इस घटिया लेख की भर्तसना भी करता हू,आज मै दोनो विचार धाराओ के बीच खडा हू,पर जो गलत है वो हमेशा गलत ही कहा जायेगा
अभय जी, आपने सवाल पूछा, जवाब नहीं मिला। आप तीन दिनों से पूछ रहे हैं। फिर भी नहीं मिल रहा जवाब। क्या वजह है। किसी को नंगा करने में तो एक मिनट नहीं लगाया इन लोगों ने। मूलत: यह विचारों की टकराहट है, जिसमें बलि का बकरा बाजार... बन गया। इसलिए मैंने तय किया है कि तकनीक की इजारेदारी का दम्भ भरने वालों के साथ ढाई आखर खडा नहीं होगा। मुझे इनकी यानी नारद की हिट्स नहीं चाहिए, भले ही मुझे कोई न पढे। मैंने इसका एलान अपने ब्लॉग (www.dhaiakhar.blogspot.com)
पर भी कर दिया है।
कितना अच्छा होता कि इसी बहाने हम ब्लॉग की भाषा पर संवाद करते और उसमें उन सबकी पडताल होती, जिसकी आपने भी चर्चा की है। लेकिन भाषा की भी राजनीति होती है, वह हवा में नहीं बनती... फिर भाषा पर यह कैसे बात करते... सो चुप करा दिया।
अभय जी सही मुद्दे उठाये हैं आपने । अच्छा यही हो कि इस मामले को समय रहते निपटा लिया जाये । अरे संजय भाई अब तो समय निकालिये । आपकी चुस्ती फुरती देखने का वक्त आ गया है । हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया अभी भी अपने शैशव काल में है, क्यों ना आपसी समझदारी से हम इसे सही दिशा दें और व्यर्थ के विवादों से बचें । असग़र वज़ाहत की उस लघुकथा से भी ज्यादा तल्ख़ और विवादित चीज़ें साहित्य में आसानी से पचाई और स्वीकृत की जा रही हैं । मुझे लगता है कि हम सबको और संवेदनशील, संतुलित और धैर्यवान बनना होगा ।
अच्छा लिखा है,
प्रतिबन्ध का सर्मथन मै भी नही करता हूँ, पर बाजार ने जो उद्दण्डता की उसके लिये यह करना जरूरी था। अगर बाजार को अपने किये पर शर्मिन्दगी है जो अक्षरग्राम पर सर्वाजनिक रूप से माफी माँगकर पुन: ऐसी गलती न करने की माफी मॉंग कर नारद पर आ सकते है। संचचालक मंडल मेरी बात पर ध्यान दें।
अभयजी, आपकी पोस्ट मैंने पढ़ी। राहुल के बारे में भी जाना।
नारद की इस निर्णय प्रक्रिया से मैं भी संबद्ध रहा इसलिये आपकी नारद के बारे में बातें भी ध्यान से
पढ़ीं। आपकी यह बात शायद सही है कि अगर नारद से राहुल का ब्लाग हटाने के पहले हम उनको चेतावनी देते, पोस्ट हटाने को कहते और जब वे न हटाते तो उनका ब्लाग नारद की लिस्ट से हटा देते। लेकिन यह चूक हो गयी इसके लिये मैं अपने को भी दोषी मानता हूं क्योंकि इस निर्णय में मैं भी शामिल रहा।
हालांकि आप देखें कि राहुल के ब्लाग पर जीतेंन्द्र चौधरी ने टिप्पणी करके उस पोस्ट को हटाने का अनुरोध किया था। लेकिन वह पोस्ट और टिप्पणी दोनों अंगद के पांव की तरह वहां जमीं हैं।
इस तरह के बैन-वैन का अभ्यास न होने के कारण भी हड़बड़ी हुई होगी। पहले की तथाकथित खुराफ़ातों पर कोई कार्रवाई न कर पाने की खीझ ने भी आग में घी का काम किया होगा।
लेकिन आप राहुल की पोस्ट देखें। इसके पहले की पोस्ट। उसमें वे ब्लागिंग करने वालों से पूछते/बताते हैं कि इसकी क्या सामाजिक उपयोगिता है। सामाजिक उपयोगिता के चिंतत युवा अगली ही पोस्ट में एक ब्लागर के खिलाफ़ असभ्य भाषा इस्तेमाल करने लगे यह कहीं से अच्छा नहीं लगता।
इसके पहले आपने जो पंगेबाज/मोहल्ला के उदाहरण दिये वे कहीं से भी अच्छे नहीं कहे जा सकते।
बेहद बचकाने अंदाज में पंगेबाज ने आप लोगों और पर लिखा था वह निंदनीय है। पंगेबाज को बैन भले न किया गया हो लेकिन उनको चेतावनियां दी गयीं और उन्होंने माना कि वे आगे से इस तरह का काम नहीं करेंगे।
मोहल्ले के बारे में भी तमाम बैन की बातें हुयीं लेकिन हम लोग कभी भी इसको नारद से हटाने को सहमत नहीं हुये।
अब बात फिर राहुल की। अगर राहुल मानते हैं कि उन्होंने संजय बेंगाणी के लिये जो पोस्ट लिखी वैसी नहीं लिखनी चाहिये तो वे उसे हटा दें और वायदा करें कि किसी ब्लागर के बारे में इस तरह की भाषा नहीं लिखेंगे तो हम लोग फिर से उनका ब्लाग नारद में रजिस्टर करने के बारे में विचार करेंगे।
अगर राहुल नहीं भी कुछ कहते हैं तो मैं स्वयं एक महीने तक उनकी पोस्ट देखूंगा और उनकी पोस्टों की भाषा आपत्तिजनक नहीं रहती है तो मैं स्वयं उनका ब्लाग(बाजार का अतिक्रमण) दुबारा नारद पर रजिस्टर कराने के लिये पहल करूंगा।
वैसे राहुल को लिखने के लिये ब्लाग की कमी नहीं है। दो ब्लाग हैं। वे वहां लिखते रह सकते हैं।लेकिन आप देखिये इस बारे में कई पोस्टें लिखीं जाने के बावजूद राहुल ने कोई प्रतिक्रिया किसी पोस्ट पर नहीं दी।
अभयजी, यह भी विचार करें कि अगर इस तरह की भाषा कोई ब्लागर कल को किसी महिला ब्लागर के लिये इस्तेमाल करता है तब भी क्या हम इतने ही आराम से चेतावनी, मेल आदि के दौर से गुजरना चाहेंगे।
वैसे, संजय बेंगाणी असग़र वज़ाहत के बारे में नहीं जानते तो उनको समय मिलने पर जानने का प्रयास करना चाहिये। वे हमारे समय के जाने-माने कथाकार माने जाते हैं। वैसे आपको शायद जानकर आश्चर्य हो कि मनोहरश्याम जोशी का जिक्र होने पर हमार एक चिट्ठाकार साथी ने पूछा था- ये जोशीजी कौन हैं?
आपकी इस पोस्ट से आपकी चिंता की प्रकृति का अन्दाजा लगता है। जिसकी मैं तहेदिल से तारीफ़ करता हूं।
नसीरुद्दीनजी, आपका गुस्सा आपको जायज लग सकता है। लेकिन आप मेरी बात पर गौर करिये। बाकी आप जैसा ठीक समझें।
यह विचार मेरे अपने निजी विचार ज्यादा हैं नारद से जुड़े होने के कारण प्रतिक्रिया कम। आशा है कि इनको उचित प्ररिपेक्ष्य में समझा जायेगा।
धन्यवाद सहित,
अनूप शुक्ल
भाई अभयजी, आपने बड़ी शालीनता से इन मुद्दो को उठाया है और इन साथियो से कुछ सवालों के जवाब भी मांगे हैं..मैं तो सोचता हूं कहीं ऐसा तो नही है नारद का सर कुछ ज़्यादा बड़ा हो गया है और इनके पैर सम्हाले नहीं सम्हल रहे.नारद को अपनी ज़िम्मेदारी का परिचय देना चाहिये.इनकी कोशिश तो ये होनी चाहिये कि ज़्यादा से ज़्यादा ब्लोग को कैसे जोड़ा जाय. पर अब मुझे इनकी मंशा पर शक ही हो रहा है. इस तरह के फ़ैसले से इनका गाम्भीर्य कम दंभ ज़्यादा झलकता है.नारद पर जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया गया है उसे कौन हटाएगा?मै भी बड़ी गर्मजोशी से अपने ब्लोग के लिये सामग्री जुटा रहा था पर अब मै निराश हूं.मै भी ब्लोग पर लगाए गए इस तरह के रोक का विरोध करता हूं.
सुरेश चिप्लूंकर! क्या कोई संघी लेखक है जिसकी कोई रचना आप प्रेमपत्र में लिख कर अपनी प्रेमिका को भेजते हैं/थे? क्या कोई संघी विचार है जो आप अपने बच्चे को सोते समय सुनाते हैं? उत्तर देकर मेरा ज्ञान बढाएं.
गुलशन
एक टिप्पणी भेजें