आज एन डी टी वी पर खबर थी सवेरे सवेरे.. बिहार में एक ५८ वर्षीय लडके और १३ वर्षीय औरत के बीच पनपा प्रेम सम्बन्ध.. लेकिन समाज के पिछड़े हुए क़ानून ने उनके प्रेम की पवित्रता को नहीं समझा और उन्हे भागना पड़ा.. कहाँ तलक भागते बेचारे ज़ालिम ज़माने से.. पकड़े गये.. १३ वर्षीय महिला को उसके घर वालों के हवाले कर दिया गया और ५८ वर्षीय लड़के पर पुलिस ने अपहरण का केस दर्ज कर दिया.. बताइये हुआ न अन्याय.. क्या एक मर्द और औरत को प्यार करने की आज़ादी भी नहीं है इस देश में.. ?
कुछ दकियानूसी क़िस्म के लोग हमारे समाज में आज भी ऐसे मौजूद हैं जो प्रेम करने वाले दो दिलों को उमर के दायरों में क़ैद करना चाहते हैं.. क्या प्रेम किसी उमर का मोहताज है.. किसी भौतिक शरीर की सीमाओं से अवरुद्ध है.. अगर आप अभी भी पुरातन पंथी सोच से ग्रस्त हैं तो प्लीज़.. प्लीज़ अमिताभ बाबू की हाल की फ़िल्मों पर नज़र डालें.. कभी अलविदा न कहना में सेक्सी सैम.. हर रात एक नई हसीना के साथ गुज़ारने में यक़ीन रखता है.. निशब्द में वह चुपचाप अपनी बेटी की सहेली को दिल दे बैठता है.. और चीनी कम में तो यह दर्शन अपनी पूरी सम्पूर्णता में निखर कर आता है..
आप बस जाइये और जा के फ़िल्म देखिये क्या होता है स्त्री पुरुष का सम्बंध जा के समझिये.. अमिताभ का फ़िल्म की तीनों स्त्रियों से कैसा बराबरी का सम्बंध है.. अपनी ८०- ९० वर्षीय माँ ज़ोहरा से वो तू तड़ाक से बात करता है.. सेक्सी वेक्सी नहीं कहता.. क्यों कि वो सेक्सी है भी नहीं.. बुढि़या को कौन सेक्सी कहेगा.. हाँ वो ज़रूर ठेल ठेल कर अपने बेटे को जिम भेजने की वकालत करती रहती है.. अरे तो.. सिर्फ़ ६४ साल का तो है.. तो.. पता है- पता है.. हमारे यहाँ औसत आयु भी कुछ ६४-६५ की है.. तो उस से क्या होता है.. मरने के करीब आ आय तो सेक्स के बारे में सोचना छोड़ दे.. ?.. आप भी न?
.. दूसरी है ३४ वर्षीय तब्बू.. वो तो खैर क्या कहें.. कटारी है कटारी.. देख के मन करता है.. बस कब मौका मिले और सेक्स कर लें उसके साथ.. क्यों आप का नहीं करता.. हमारा तो करता है.. अमिताभ का भी करता है.. आप को लग रहा है हम अश्लील बातें कर रहे हैं.. आप भी एकदम परेश रावल टाइप के आदमी हैं.. दकियानूसी गाँडी.. सॉरी.. गाँधीवादी.. पचास के हुए नहीं कि सफ़ेद कुर्ता पैजामा पहने के मान लिए कि मौज मजे की उमर गई.. अब तो बस जवानो को देख देख कर आहें भरते रहो और फिर गिल्टी फ़ील करो.. है ना..? बकवास है आपका सोचना.. प्यार और सेक्स की कोई उमर नहीं होती.. और लड़कियों को तो मैच्योर टाइप कुछ ज़्यादा ही पसन्द होते हैं.. एकाध टेस्ट लेगी बस कि कुछ करने का दम खम है कि नहीं.. जा के देखिये तब्बू कैसे टेस्ट लेती है..
और तीसरी जो ८-९ साल की बच्ची है.. उसका तो नाम ही जब सेक्सी रखा गया है तो सोच लीजिये.. जी सेक्सी.. हाँ सेक्सी.. अरे लड़की का नाम है.. उसके बाप ने रखा है और क्या.. ? क्या कोई शरीफ़ बाप अपनी बच्ची का नाम सेक्सी नहीं रख सकता.. ?आखिर क्या.. क्या बुराई है सेक्सी में.. या सेक्स में..?.. हैं? .. .. तो वो सेक्सी और अमिताभ बेस्ट ऑफ़ फ़्रेन्ड्स हैं.. खूब एड्ल्ट जैसी बाते करते हैं.. उसके रोमान्स को डिस्कस करते हैं.. और बदले में बस वो अमिताभ को ठेल ठेल कर एडल्ट फ़िल्म मँगा कर देखती है.. तो..? क्या उसका बाप.. ?.. मतलब..? मतलब क्या है आप का..? क्या आपने सब को अपनी तरह यौन कुण्ठाओं से लबरेज़ कुत्सित मनोभावों वाला समझ लिया..नहीं वो बाप कभी सीन में आता भी नहीं.. अमिताभ और वो बच्ची अकसर यहाँ वहाँ सोये रहते हैं.. बच्चों का यौन शोषण.. ?..हे भगवान..!! ..मैंने कोई ऐसी बात कही..? डाइरेक्टर ने ऐसा कुछ दिखाया फ़िल्म में..? ये आपके गंदे दिमाग़ की उपज है.. अमिताभ तो बेचारा इतना प्यार करता है उस मासूम कैंसर की मरीज बच्ची से.. कैंसर.. !!!???
जी कैंसर.. वो मरने वाली है.. आप ही जैसे लोगों के लिये डाइरेक्टर ने ये तोड़ पहले से सोच रखा है.. कोई सवाल करे इसके पहले ही बच्ची को इतना बेचारा पीड़ित बना दो.. कि साँप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे.. आप जैसे लोग इस पूरे सम्बंध पर सवाल खड़ा करने से पहले ही अपराध बोध से ग्रस्त हो जायें.. जी हाँ फ़िल्म के अंत में मर जाती है बेचारी सेक्सी और अमिताभ रो रो के अपनी गलती का एहसास करता है.. अपने बेडौल बदन के थुलथुले थक्कों को हिलाते हुए गुहार करता है कि कैसे उस से गलती हो गई.. उसे तब्बू को माँगने के बजाय सेक्सी को माँगना चाहिये था.. रोता है.. मुझे सेक्सी चाहिये सेक्सी चाहिये..
'मुझे सेक्सी चाहिये'- यही मूल मंत्र है फ़िल्म का और हमारे समय का.. जिसे आप नहीं समझ पायेंगे.. और न ही देख पायेंगे कि फ़िल्म के भीतर कितनी कलाकारी से परेश रावल को गाँडी...सॉरी गाँधीवादी नैतिकता का प्रतीक बनाकर हमारे समय में ऐसी सोच की विद्रूपता का पर्दाफ़ाश कर दिया गया है..यही सोच है जो इस देश को आगे बढ़ने से रोक रही है.. मगर आप नहीं समझेंगे.. आप ही जैसे लोग इस देश में पोर्नोग्राफ़ी फ़िल्मों को प्रदर्शित नहीं होने देते.. छोड़िये.. बस मुझे दो ही शिकायत है चीनी कम से.. क़ब्र में पैर लटकाये बैठी ज़ोहरा सहगल को ना तो हस्त मैथुन करते दिखाया और ना ही सेक्स की खोज करते.. क्यों नहीं दिखाया गया भाई..? कम से एक बार तो वायग्रा की चर्चा की जा सकती थी.. और बेचारी सेक्सी.. सेक्स का कोई अनुभव करने से पहले ही चल बसी..
मगर आप अभी भी इस फ़िल्म की हमारे समाज को जो मार्मिक ज़रूरत है उसे नहीं समझेंगे.. आप इस देश में जो भी प्रगति हो रही है उस सब के विरोधी है.. आप में से कुछ लोग किसानों की आत्मह्त्या, गुजरात में सामाजिक शांति, साम्प्रदायिक सौहार्द, मानव अधिकार जैसे विषयों को.. और कुछ देश में बिजली-पानी-पर्यावरण.. और कुछ मन की आध्यात्मिक शांति जैसे विषयों के क्षेत्र में होने वाले सकारात्मक बदलाव को ही प्रगति का सूचक मानते हैं.. दिमाग़ और दिल से नीचे हमारे यौन अंगो में लगातार होते रहनी वाली अशांति के शमन को आप किसी शांति में नहीं गिनते..? और उस अशांति के शमन के व्यापार के विस्तार को आप किसी प्रगति में नहीं गिनते..?
13 टिप्पणियां:
ब्रावो!
चीनी कम के बहाने एक बढ़िया विश्लेषण॥
साधुवाद
तो लौट ही आया आपका जुनून ..जारी रहे ..
बहुत बढिया बखिये उधेडे हैं भाई, मजा आ गया पढकर..
बहुत खूब अभय जी, कड़क समीक्षा लिखी है.
हम आपको यूंही तो मिस नहीं कर रहे थे!
वाह वाह अभय जी बहुत बढिया आलू-चना किया है
चीनी कम, से़क्स ज्यादा..
अमिताभ का वादा!
भाई मैंने ये फिल्म देखी नहीं पर देखने का मन जरूर था। अभी तक जिसने भी इसे देखा था, किसी के उद्गार इसके बारे में इतने कटु नहीं थे। आपकी राय से सहमत/असहमत होने के लिए फिल्म देखनी पड़ेगी।
सनीमा तो खैर जैसा है वैसा देखा जायेगा लेकिन आपने जो बताया कि देश् में तमाम समास्यायें हैं उनके बारे में कुछ सनीमा बनाने की बजाय लोग् देश के लोगों की व्यक्तिगत यौन समस्यायें का जायजा ले रहे हैं। रास्ता बता रहे हैं ये है तरीका मौज करने का।
वाह वाह गजब का सटायर लिखा है। खूब खबर ली फिल्मकारों की आपने।
कर दिया ना प्रचार...अब फिल्म देखनी पड़ेगी...
अब सोचते हैं देख ही ली जाये चीनी कम. बहुत चर्चा में है मगर अब देखकर जायजा लिया जाये.
दिमाग़ और दिल से नीचे हमारे यौन अंगो में लगातार होते रहनी वाली अशांति के शमन को आप किसी शांति में नहीं गिनते..? और उस अशांति के शमन के व्यापार के विस्तार को आप किसी प्रगति में नहीं गिनते..?
बहुत सही लिखा है गुरू, फिल्म इंडस्ट्री की प्रगति कलेक्शन के आंकड़ों पर है । और भाई लोग तो एक गोलीबारी को चूइंगम की तरह तानकर उसी से पैसा कमा रहे हैं । आप तो इंडस्ट्री में सक्रिय हैं, समझ सकते हैं कि हमारे निर्देशकों का आई0क्यू0 किस स्तर पर है
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