मैं आने वाले चुनावों में आआपा का समर्थन करने का इरादा रखता हूँ!
कारण:
१। अरविन्द केजरीवाल और योगेन्द्र यादव मेरे भीतर, किसी भी अन्य राजनेता से अधिक भरोसा जगाते हैं। मुझे वे किसी भी दल के अन्य नेताओं से अधिक ईमानदार, सत्यनिष्ठ, और अपने ध्येय के प्रति समर्पित समझ आते हैं।
२। वे साम्प्रदायिक नहीं हैं। आरक्षण को लेकर उनके बारे में कुछ संशय है। मगर मैं नहीं समझता कि वो आरक्षण के ख़िलाफ़ जाने की भूल करेंगे।
३। उनकी आर्थिक नीतियां स्पष्ट नहीं हैं। मगर इन हालात में जबकि भाजपा और कांग्रेस एक ही आर्थिक नीति की हिमायती है, आआपा कम से कम अन्य बिन्दुओं के आधार पर उनसे बेहतर विकल्प लगती है। और शायद वो ऐसी आर्थिक नीति लेकर आ सके जो समाज के समान विकास करने में मददगार सिद्ध हो, ऐसी उम्मीद तो की जा सकती है!
४। वे स्वराज की बात कर रहे हैं, शासन तंत्र की निर्देश श्रंखला को ऊपर से नीचे के बदले, नीचे से ऊपर कर देने की बात कर रहे हैं- ये बड़ा मुद्दा है। अगर वो ये न भी कर सकें तो भी इस मुद्दे को फोकस में लाने के लिए ही उन्हे वोट दिया जाना चाहिये ताकि आगे लड़ाई का मुद्दा ये रहे!
५। इस समय देश में उनके पक्ष में माहौल बना हुआ है। लोग एक विकल्प खोज रहे हैं। ख़ासकर कांग्रेस का विकल्प! आआपा में कांग्रेस का असली विकल्प बनने की सारी सम्भावना मौजूद है। ये कोई क्रांतिकारी विकल्प नहीं है। आआपा सारी समस्याएं सुलझा दे- ऐसी उम्मीद करना भी व्यर्थ है- पर उसे एक अवसर दिया जाना चाहिये! देखें, वे क्या कर सकते हैं!
६। ये ठीक है कि ऐसा विकल्प बनाना आसान नहीं। दो लोगों के भरोसे विकल्प नहीं बनता। देश भर में तमाम अवसरवादी तत्व आआपा ज्वाइन कर रहे हैं। वो अपनी पुरानी संस्कृति इधर भी ले आएंगे। पर क्या कर सकते हैं? हमारे लोग जैसे हैं वैसे हैं। अगर हमारे देश के बहुत सारे लोग भ्रष्ट, अवसरवादी, और गहराई में जातिवादी और साम्प्रदायिक भी हैं- तो हैं। शुरू यहीं से करना होगा! कोई जादू की छड़ी नहीं है। या तो फिर उम्मीद छोड़ कर आदमी बस गरियाता रहे- सब साले चोर है! इस मुल्क का कुछ नहीं हो सकता!
७। हो सकता है तमाम ऐसे मामले हों जिस पर आप आआपा से सहमत न हों, मैं भी नहीं हूँ। पर ये समय असहमत होकर नए विकल्प से बनने के पहले ही टूट कर अलग हो जाने का नहीं, बन रहे विकल्प को बल प्रदान करने का है! नहीं तो जान लीजिए अगर आआपा आने वाले चुनावों में एक महत्वपूर्ण संख्या में सीटें नहीं जीत सकी तो सरकार या तो कांग्रेस की बनेगी या फिर भाजपा की!
८। चूंकि मैं कांग्रेस के शासन से तंग आ चुका हूँ और मोदी को भी इस देश के सर्वोच्च पद पर नहीं देखना चाहता, इसलिए मैं आने वाले चुनावों में आआपा को वोट देने का इरादा रखता हूँ।
***
9 टिप्पणियां:
इस बार शिव सेना से क्या नाराजगी हो गई?
[प्रशंसा, आलोचना, निन्दा.. सभी उद्गारों का स्वागत है..
(सिवाय गालियों के..भेजने पर वापस नहीं की जाएंगी..)]
आपसे पूर्ण सहमति और आपमें पूर्ण निष्ठा और समर्पण
पिछली बार विधान सभा के चुनाव में उसे वोट ज़रूर दिया था, समर्थन नहीं किया था।
अफ्लू भाई आप जिस ओर इशारा कर रहे हैं वो मामला ये है कि महाराष्ट्र के पिछले विधान सभा चुनाव में मैंने शिव सेना को वोट दिया था और उनको ऐसा करने का कारण भी बताया था।
सब जानते हैं कि इस देश में मुस्लिम समुदाय के लोग उसी प्रत्याशी को वोट देते हैं जो भाजपा को हरा सकता है। मेरा शिव सेना को वोट देने के पीछे भी ऐसा ही तर्क था। चुनाव के पहले मराठी माणूस और भइया लोगों के मामले पर राज ठाकरे ने मनसे का गठन कर लिया था। और रोज़ाना राज्य में मारपीट हो रही थी। उद्धव ठाकरे ने चुनाव में जनता के वास्तविक मुद्दों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया था जिसमें विदर्भ के किसानों की समस्या भी शामिल थी। वो शिवसेना को उदार दल के रूप में बदलना चाह रहे थे। पर राज ऐसा नहीं चाहते थे। कांग्रेस दस साल शासन कर चुकी थी। क़यास थे कि उस चुनाव में कांग्रेस हार जाएगी पर मनसे बनने से समीकरण बदल गए। कांग्रेस ने जमकर राज ठाकरे को सपोर्ट किया और उत्तर भारतीयों को पिटने दिया। यहाँ तक कि बिहार से आए एक राहुल नाम की युवक की सरे आम हत्या कर दी गई क्योंकि उसके हाथ में पिस्तौल थी और वो राज ठाकरे को मारने का इऋादा लेकर आया था। उसे गिरफ़्तार किया जा सकता था। हाथ-पैर में गोली मारी जा सकती थी पर गोली सर में मारी गई। और उसके बाद किसी पुलिस अधिकारी पर कोई मुक़द्दमा नहीं चला।
मैं कांग्रेस की इस सामुदायिक विद्वेष को बढ़ावा देकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने की पुरानी नीति से बुरी तरह पक गया था। इसी नीति के चलते उन्होने भिंडरवाले जैसे लोग पैदा किए थे, और अब राज ठाकरे!
इन सारी बातों को मद्दे नज़र रखते हुए मैंने सोचा कि शिवसेना को उसके उदारता के रास्ते को पुरस्कृत करना चाहिए और कांग्रेस को उसकी मक्कारी के लिए दंडित करना चाहिए। इसलिए वोट शिव सेना को दिया। मेरा वोट मेरा है। और वोट देने का कारण भी। अफ़सोस ये है कि उस चुनाव में कांग्रेस फिर जीत गई और शिवसेना वापस अपनी संकीर्ण नीतियों पर वापस लौट गई।
इतने सारे अवतार इस देश से अधर्म का नाश कर गए उसके बाद बड़े बड़े समाजवादी दूसरी, तीसरी, सम्पूर्ण अपूर्ण क्रान्ति कर गए, धुरंधर साम्यवादी बड़े-बड़े कब्रिस्तान बनवा गए फिर भी आप किसी राजनीतिज्ञ पर विश्वास कर पा रहे हैं, अपने आपमें बहुत बड़ी बात है।
पता नहीं, राजनीति किस करवट बैठ रही है, व्यवस्था या तनिक और झिंझोड़ना लिखा है इसके भाग्य में।
माफ़ कीजिये, लोकतंत्र में सबका सम्मान होना चाहिए अगर अपनी २ पसंद का सवाल है तो हमें मोदीजी की बातों में एक विश्वास दिखायी देता है और शासन व्यवस्था के प्रति हिला हुआ विश्वास फिर से लौट आता है.
माफ़ कीजिये, लोकतंत्र में सबका सम्मान होना चाहिए अगर अपनी २ पसंद का सवाल है तो हमें मोदीजी की बातों में एक विश्वास दिखायी देता है और शासन व्यवस्था के प्रति हिला हुआ विश्वास फिर से लौट आता है.
आदरणीय, आज लगभग एक साल पूरा होने को आया आपके आ.आ.पा. के बारे में उद्धृत विचारो को, आज के परिदृश्य में क्या आपकी विचारधारा वही है इस पार्टी के बारे में या परिवर्तन आया कोई? आपने उल्लिख किया आ.आ.पा. को एक मजबूत विकल्प (कांग्रेस धारा ) के रूप में, किन मायनों में आ.आ.पा. कांग्रेस का विकल्प बन चुई है और आप की अपेक्षाओं पे कितनी खरी उतरी है, ये भी उत्सुकता है की आपके विचारों में क्या अभी भी कांग्रेस के विकल्प की तलाश जारी है?
आदरणीय एथिकल रॉक जनाब!
आआपा से मेरा भयानक मोहभंग हो चुका है! मैं ठगा हुआ सा महसूस कर रहा हूँ। अपनी मूर्खता की शिकायत करने जाऊं भी तो किसके पास?!
एक टिप्पणी भेजें