भारत की पाक-नीति मिस्र में मुँह के बल गिर पड़ी है। शर्म अल शेख में गिलानी और मनमोहन सिंह की मुलाक़ात के बाद एक उद्घोषणा के अनुसार :
१) दोनों देश सभी मुद्दों पर बात करने को राजी हो गए है। (सभी मुद्दों में कश्मीर मुद्दा भी शामिल माना जाएगा)
२) दोनों देशों ने माना कि आतंकवाद और वातचीत के बीच में कोई सीधा संबन्ध नहीं बनाया जा सकता। (यानी पाकिस्तान की ओर से कितनी भी आतंकी गतिविधियां हो, भारत ये नहीं कह सकेगा कि जाओ हम तुम से बात नहीं करते तुमने हमें मारा !)
३) पाकिस्तानी प्रांत बलूचिस्तान में अशांति पर भारत बातचीत करने को तैयार हो गया है। !!!??? (ये एक परोक्ष स्वीकार है कि वहाँ हो रहे आज़ादी के आन्दोलन को भारत प्रायोजित कर रहा है)
पाकिस्तानी प्रधान मंत्री ने कल रात से ही इसे अपनी जीत के रूप में प्रचारित करना शुरु कर दिया है। जबकि भारत ने तुरंत लीपापोती भी शुरु कर दी है। भारतीय मीडिया इसे अण्डरप्ले कर रहा है। कल रात एन डी टी वी को छोड़कर सब ने माया-रीता विवाद पर ही ज़ोर बनाए रखा। अखबारों में भी इस समर्पण को ज़्यादा अहमियत नहीं दी गई।
जबकि पाकिस्तान में हाल उलट हैं। निश्चित ही यह उनकी कूटनीतिक जीत है। पिछले महीने ही ज़रदारी मनमोहन के द्वारा बुरी तरह झिड़क दिए गए थे सरे मीडिया; कि भारत सिर्फ़ आतंकवाद के रोकथाम पर ही बात करेगा और कुछ भी नहीं। और एक ही महीने में इतनी भी बड़ी गुलाटी? राज़ क्या है।
निश्चित ही यह किसी दबाव में हुआ है। और वह अमरीकी दबाव के अलावा और क्या हो सकता है। अमरीका ने पाकिस्तान को तालिबान के खिलाफ़ लड़ाई के लिए कुछ मुआवज़ा तय किया था। लड़ाई लड़ने की मोटी आर्थिक क़ीमत के अलावा उनकी मुख्य शर्त भारत के साथ समीकरण में अपने पक्ष को भारी करवाना ही रही होगी। जिस को वे सार्वजनिक रूप से भी कहते रहे हैं।
आज मोहतरमा क्लिण्टन भारत पधार रही हैं। पांच दिन के लिए। और सब से दिलचस्प बात ये है कि न वो भारत आने से पहले पाकिस्तान जा रही हैं और न बाद में। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। अमरीका ने हमेशा भारत और पाकिस्तान को भारत-पाक की तरह हाइफ़ेनेट ही किया है जिसके प्रति लगातार भारत ने शिकायत की है। अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर पाकिस्तान से मुक्त होकर अपनी पहचान बनाने की यह क़ीमत चुका रहा है शायद भारत।
मेरा ख्याल है कि पाकिस्तान में भारत के प्रति इस नए अमरीकी झुकाव को लेकर कोई आन्तरिक आन्दोलन न खड़ा हो जाय इसलिए भारत को यह कूटनीतिक गुलाटी मारनी पड़ी है।
बहुत सारे लोग देश की कूटनीति को शुद्ध ठकुरैती की नज़र से देखते हैं। घुस जाओ! खदेड़ दो! नेस्तओनाबूद कर दो! मगर देश ऐसे नहीं चलता। कूटनीति में न तो कोई स्थायी मित्र होता है न शत्रु। यहाँ तक कि कोई स्थायी नीति भी नहीं होती; होते हैं सिर्फ़ स्थायी हित।
बहुत सम्भव है कि भारत के वर्तमान कर्णधारों ने ये फ़ैसला इसलिए लिया हो कि मोहतरमा क्लिण्टन ऐसा कुछ दे रही हों जो इस गुलाटी से कहीं अधिक देश के लिए हितकारी हो!
देखें क्या दे के जाती हैं मिसेज़ क्लिण्टन!
6 टिप्पणियां:
आगे आगे देखिये होता है क्या ?
राजनैतिक ब्लैकमेलरों की गलीज़ ज़मात तो आम चुनावों में काफ़ी हद तक किनारे लग गयी पर अब जो अग्रणी हैं क्या उनके बारे में निश्चिंत हुआ जा सकता है कि राष्ट्र हित को ही सर्वोपरि मानते हुए ही कार्य करेंगे? राजनीति सिर्फ़ व्यक्तिगत हितों को साधने का जरिया बन गयी है, बेसिक इम्प्रेशन तो यही है. सभी राजनैतिज्ञों के प्रति घोर नैराश्य ही उपजता है मन में.
आलेख बढ़िया है.
हम मुगलों के आगे घुटने टेक चुके हैं, हम अंग्रेज़ों के आगे घुटने के टेक चुके हैं, हम रूसियों केके आगे घुटने टेक चुके हैं, हम चीनियों के आगे घुटने टेक चुके हैं और अब पाकिस्तानियोंके आगे घुटने टेक रहे है तो आश्चर्य क्यों? अमेरिकी तो हमारे घुटने चिकित्सक हैं ही:)
बरसो से यही हो रहा है ....उनके आतंकवादी यहाँ जान लेते है ...पहले वे मानते नहीं .हील हुज्ज़त के बाद अगर मान गये तो पकड़ते नहीं .पकड़ ले तो छोड़ देते है ..कहते है कोमन कंसेंस नहीं बना...फिर कोई नेता आकर कह देता है अब हमारे बस में नहीं...हम कुछ नहीं कर सकते .पर दुखी है......आप मसले को बातचीत से सुलझायो....फिर उनका लीडर मारा जाता है .कहानी नए सिरे से शुरू......भारत बातचीत को तैयार....अब बताये बात चीत कर के क्या उखाड़ लेंगे
Except Balochistan issue, this is not the first time when India is diplomatically bowing like this . Anyway, u have a wonderful insight into international relations.
Hope i don't sound pompous while praising u. i really mean it.
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