ब्लॉग के सभी दोस्तों से माफ़ी.. पिछले कई दिनों से न तो ब्लॉग लिख रहा हूँ और न पढ़ पा रहा हूँ.. टिप्पणी तो ज़ाहिर है कहीं नहीं कर रहा.. हाँ इस बीच दिल्ली से यशवंत और उनके पनवेल के भड़ासी साथी डॉ० रूपेश से ज़रूर मुलाक़ात हुई.. ये ब्लॉगर मीट (कुछ लोग इसे मिलन कहते हैं और कुछ इसे संगत के नाम से नोश फ़रमाते हैं) मेरे घर पर ही सम्पन्न हुआ.. जिसमें मैंने यशवंत पर थोड़ी भड़ास निकाली और उसने निर्मलता से मुझे सुना.. प्रमोद भाई, अनिल भाई और बोधि के अलावा उदय भाई से भी इसी बहाने काम की अफ़रातफ़री के बीच, मिलना हो गया..
कुछ दोस्तों की चिट्ठियाँ आईं थीं.. उनका जवाब भी नहीं दे सका.. पर क्या है कि मैं एक स्टीरियोटिपिकल मेल हूँ विद वनट्रैकमाइन्ड.. सोचा कि अब जवाब लिख दूँगा कि तब.. मगर काम में मुब्तिला रहा और कई रोज़ निकल गए..इन दिनों कुछ ग़मेरोज़गार परवान चढ़ा हुआ है.. बीबी के ही भरोसे दालरोटी खाने लगूँगा तो स्टीरियोटिपिक्ल मेल की ईगो बड़ी गहरी डैन्ट हो जाएगी.. अभी भी कुछ प्रोजेक्ट्स निबटाने शेष हैं.. फिर फ़ुर्सत से लौटूँगा ब्लॉगिंग की दुनिया में..
मेरे एक लेखकीय गुरु रहे हैं मुम्बई में - सुजीत सेन.. उन्होने अर्थ और सारांश जैसी फ़िल्में लिखी थीं.. बाद में बहुत कुछ बाज़ारू भी लिखा... पर जो भी लिखा क़लम को दिल के क़रीब रखकर लिखा.. सब बनाने वाले तो महेश भट्ट नहीं होते न.. जो मर्म की बात का मर्म समझ सकें.. उनका ज़िक्र वी एस नईपाल ने भी अपनी किताब इन्डिया अ मिलियन म्यूटिनीज़ में भी एक छद्म नाम से किया है*.. सुजीत दा की एक बात हमारी फ़िल्म और टीवी इन्डस्ट्री के बारे में बड़ी सटीक थी.. वे कहते थे.. इन दिस इन्डस्ट्री.. इट्स आइदर फ़ैमीन ओर फ़ीस्ट.. नथिंग इन बिटवीन..
यही सूरतेहाल है.. बस यहाँ फ़ीस्ट और फ़ैमीन का अर्थ समय के सन्दर्भ में समझा जाय.. और फ़ीस्ट का अर्थ काम की बहुतायत निकाला जाय या रचनात्मक आराम की बहुतायत.. यह निर्णय आप खुद करें..
*ढाई बरस पहले पाँच दिल के दौरे झेलने के बाद सुजीत दा चल बसे..
13 टिप्पणियां:
Is post se hamein kyaa shikshaa miltee hai? bataayein. Aur paanch dilon ke daure ke bajaay likh dein dil ke paanch daure. baaqee aap samjhdaar hain.
शिक्षा की अच्छी याद दिलाई तुम ने इरफ़ान.. तुम्हारे शिक्षा के लिए कक्षा ३ की किताबें खरीद के रखीं थी..देखो न! अपनी मसरूफ़ियत में उन्हे भी भेजना भूल गया..खैर, तब तक तुम कक्षा २ के कोर्स से पढ़ते रहो.. :)
टिप्पणी पर प्रतिक्रिया....हा हा हा जैसा सवाल वैसा जवाब, अच्छा है!
प्रशंसा, आलोचना, निन्दा.. सभी उद्गारों का स्वागत है..
(सिवाय गालियों के..भेजने पर वापस नहीं की जाएंगी..)बहुत दिनो बाद दिखाई दिये हो..तो गालिया खाने को तैयार रहो ..
चलिये. कम से कम दिखे तो..काम तो खैर प्राथमिकता है ही, इन्तजार करेंगे.
"...इस बीच दिल्ली से यशवंत और उनके पनवेल के भड़ासी साथी डॉ० रूपेश से ज़रूर मुलाक़ात हुई.. ये ब्लॉगर मीट (कुछ लोग इसे मिलन कहते हैं और कुछ इसे संगत के नाम से नोश फ़रमाते हैं) मेरे घर पर ही सम्पन्न हुआ.. जिसमें मैंने यशवंत पर थोड़ी भड़ास निकाली और उसने निर्मलता से मुझे सुना..."
"...मैंने यशवंत पर थोड़ी भड़ास निकाली और उसने "निर्मलता" से मुझे सुना..."
निर्मल-आनंद की संगत में तो कोई भी भड़ासी निर्मलता की धारा में ही पवित्र स्नान कर निर्मल हो जाएगा। लेकिन उस "भड़ासी-डिक्शनरी" का क्या होगा?
ओह, मैं मूर्ख। देर से समझा। समय पर दूसरी क्या पहली कक्षा की किताब भी तो किसी ने नहीं भेजी। क्या करूं?
वैसे कितने भी बेवकूफ को यह तो समझना ही चाहिए कि निर्मल धारा में पवित्र स्नान के बाद क्या कोई भी दाग बाकी रह जाता है?
बधाई!
देर से आए, लेकिन "बहुत कुछ" "दुरुस्त" करते हुए आए!
दिखे तो सही आप!!
ये कहना तो बैमानी है कि बहुत दिनों बाद आप का लिखा देख कर अच्छा लगा, भगवान करे आप को कभी भी काम का अकाल न झेलना पड़े।
आप की स्टीरिओटिपीकल मेल और स्टीरिओटिपीकल फ़ीमेल की परिभाषा जानना चाहूंगी। सिर्फ़ जिज्ञासा है और कोई अल्टीरीयर मोटिव नहीं।
माना जाता है कि स्त्रियाँ स्वभावतः मल्टीटास्किंग की मास्टर होती हैं.. जबकि पुरुष एक काम को सम्हालने में ही हलकान हुए रहते हैं..
jay ho bhayi....aap ko padhna achcha lagta hai
सही है। अच्छा लगा इसे बांचकर। यशवंत बहुत लोगों से मिल लिये। सब मिलन के किस्से बताने चाहिये उनको।
स्टीरिओटिपीकल मेल और स्टीरिओटिपीकल फ़ीमेल
की जिज्ञासा हमें भी है और सुबह जब आपकी मेल पढ़ी तो भी इस 'मेल' पर ध्यान अटका था। बहरहाल अज़दक और अनामदास से सावधान रहें।
दादा,आप कितने जटिल किस्म के बुद्धिमान लोगों के बीच निर्मल आनंद की गंगा बहा रहे हैं सब के सब हंस हैं हम दो कौवे क्या गोते मार गये तो हंसों के संग बगुले भी उलाहना देने लगे...
स्वास्थ्य का ध्यान रखिये।
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