मगर नहीं.. जामा मस्जिद यहाँ कहीं नहीं है। जामा मस्जिद लाल क़िले और चाँदनी चौक के बीच की सड़क से थोड़ा नीचे चलकर, थोड़ा बायीं तरफ़ स्थित है? कुछ अजीब सी जगह नहीं चुनी गई है जामा मस्जिद के लिए.. एक ऐसे शहर की योजना में जिस में सब कुछ नाप तौल कर समकोणों पर बना हो?
या कुछ भी अजीब नहीं बिलकुल सही जगह चुनी गई है जामा मस्जिद के लिए। जामा मस्जिद ठीक वहाँ स्थित है जहाँ शाहजहाँबाद नामक इस शहर का दिल होता है। और लाल क़िला वहाँ है जहाँ इस शहर का दिमाग़। चाँदनी चौक का बाज़ार इस शहर की रीढ़ और उसकी गलियाँ(जो थी और हैं) पसलियाँ हैं। और ऐसा इसलिए है कि शाहजहाँ द्वारा बनाए और बसाए इस शहर की तामीर एक मानव शरीर की तरह भी की गई है।
इस कल्पना का आधार इख्वान अल सफ़ा के रसाइल से उपज रहा है। तमाम दूसरे विषयों के अलावा ये रसाइल व्यष्टि और समष्टि, मनुष्य और ब्रह्माण्ड का तुलनात्मक अध्ययन भी हैं। मनुष्य और ब्रह्माण्ड का सम्बन्ध ही सभी परम्परागत इस्लामिक स्थापत्य का आधार है। व्यष्टि के रूप में मनुष्य समष्टि का दर्पण है (हिन्दू दर्शन में काल पुरुष भी ऐसी ही अवधारणा है)। मनुष्य ब्रह्माण्ड की सभी सम्भावनाओं को अपने भीतर समेटे है और जगत-रचना की अंतिम अवस्था होते हुए, लौकिक और अलौकिक की संधि पर वह इस जगत के केंद में है।
जब हिन्दू दर्शन की ही तरह (दस द्वारों की नगरी) इन रसाइल का मानना है कि मानव शरीर एक शहर की भाँति बनाया गया है तो शहर को बनाने में मानव शरीर की बनावट से थोड़ी मदद ले लेना, नक़ल तो नहीं कहा जा सकता? तो बादशाह का क़िला, दिमाग़ की जगह- जहाँ से वह पूरे शरीर को नियंत्रित रख सके और धर्म रूपी जामा मस्जिद दिल की जगह - जहाँ से वह आस्था और आत्म बल का स्रोत बन सके।
शायद ऐसे ही प्रभाव रहे होंगे जिनके चलते दारा शिकोह ने मज्म अल बहरैन - समुद्र संगम जैसे ग्रंथ की रचना की जिसमें इस्लामिक दर्शन और वैदिक दर्शन की समानताओं को निरूपित किया गया है। इस ग्रंथ को दारा ने फ़ारसी और संस्कृत दोनों में साथ-साथ लिखा था।
18 टिप्पणियां:
क्या नजर है बंधुवर। अपने ही शहर के विषय में ये तो अपन को मालूम ही नहीं था। शुक्रिया
नापतौल के बने शहर का क्या हाल हो गया है लेकिन जानकारी देने के लिये धन्यवाद, काम की जानकारी थी।
रोचक [ और नया ] -rgds -manish
दिलचस्प !
अभय, मुंबई में रहते हुए जब कई बातों पर (खासतौर से स्त्री मुद्दों) से जुड़ी बातों पर मैं खुद को आपसे सहमत नहीं पाती थी, तब भी मुझे हमेशा ये लगता रहा कि आप बहुत ज्यादा पढ़ते हैं और चीजों के बारे में बड़ी गंभीरता और बारीकी से विचार करते हैं। ये पोस्ट मेरी सोच को और पुख्ता कर रही है। बड़ी बरीक नजर से देखा है आपने। हालांकि अब पुरानी बातों से भी वैसी असहमति नहीं है। मैं नारीवाद की मैकेनिकल समझ से अब ऊपर हूं।
शाहजहां को शायद धर्म के दर्शन पहलू में गहरी रुचि रही होगी या फिर उनके कोई सलाहकार महान दार्शनिक रहे होंगे। आगरा और दिल्ली में शाहजहां के जमाने की स्थापत्य कला और नगर-नियोजन में दार्शनिक सिद्धांतों की गहरी झलक दिखती है।
आपके इस लेख के लिए शुक्रिया। पुरानी दिल्ली की बसावट, नगर-निर्माण योजना के दार्शनिक पहलू की इतनी सुन्दर विवेचना को सामने लाने के लिए।
मसिजीवी और मनीषा, आप लोग ग़लत न समझें.. यह कोई मेरा निकाला निष्कर्ष नहीं है..इधर इतिहास का कुछ अध्ययन चल रहा है उसी कड़ी में Stephen P. Blake की किताब Shahajahanbad -The Sovereign City in Mughal India 1639-1739 में मिली यह जानकारी.. दिलचस्प लगी तो यहाँ डाल दी..
बड़ी दिलचस्प जानकारी है। लेकिन दिल और दिमाग के अलावा मानव शरीर में कुछ और अंग भी होते हैं- और वे कम महत्वपूर्ण नहीं होते! क्या दिल्ली के स्थापत्य में ऐसी कुछ और समतुल्यताएं भी मौजूद हैं?
हा हा हा.. गजब चुटकी ली है आप ने चन्दू भाई!
जिय जामा.. जिय शाहेजहाना.. जिंदाबात!
बेहद दिलचस्प जानकारी...
बढ़िया जानकारी निकाली है अभय भाई। बहुत दिनों बाद लौटे , सचमुच इतिहास में डूब कर ...
दिलचस्प लेख!
वाह!रोचक..।
abhay ji,
BAHUT KHUBSURAT AUR PRABHASHALI HAI AAPKA YAH BLOG...
USASE BHI JYADAA KAARGAR
KNOWLEDGE-BRIDGEBANA RAHE HAIN AAP!
SHUKRIYA AJIT JI KE SHABDON KE SAFAR KA JISNE IS SAHYATRI KO AESE ANOKHE PADAV PAR PAHUNCHA DIYA.
BAHUT KUCH JANNE...SIKHNE KI TAMANNA HAI.
DILLI KE DIL AUR DIMAG SE LEKAR BACH-BONE TAK JO KUCH AAPNE BATAYA HAI, USKE LIYE SHUKRIYA...DIL SE.
MITRON NE BHI PASAND KI.SARTHAK POST.THANKS...
अच्छा है, नई दृष्टि मिली.. दिल्ली पर डॉक्युमेंट्री बनाने के बावजूद इसतरह से सोच नहीं पाया था। शायद अगले कार्यक्रम में शामिल करूं..। कोई एतराज?
रोचक जानकारी लगी,धन्यवाद.
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