जवानी में आदमी शक्ति से, ओज से भरा होता है और बुढ़ापे में कमज़ोर। कुछ लोगों को यह बात अनैतिक लग सकती है मगर मुझे आज यह ठीक लगती है कि शक्ति से शुभता और कमज़ोरी से पाप उपजता है। इस समीकरण को 'कमज़ोर को प्यार करने' की ईसा की शिक्षा के विरुद्ध न समझा जाय। बल्कि सच तो यह है कि ईसा की शिक्षा में भी कमज़ोर और पाप के रिश्ते का स्वीकार है।
यहाँ पर मैं शक्ति को सत्ता के पर्यायवाची के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर रहा। बल्कि अक्सर सत्ता में बैठा व्यक्ति बेहद कमज़ोर होता है। और कोई भी व्यक्ति हमेशा शक्तिशाली और कोई दूसरा हमेशा कमज़ोर नहीं रहता। ज्योतिष में भी मानवीय गुणों के बल और शुभता के इस सम्बन्ध को ग्रहों के उच्च और नीच के विशेषणों से परिभाषित किया है।
आम तौर बूढ़े आदमी को बाबा मानकर आदर और सम्मान का पात्र समझा जाता है.. यह मान लिया जाता है कि उम्र बढ़ने के साथ उसके अनुभव में भी वृद्धि हो गई होगी। पर हमेशा ऐसा होता नहीं। शनि जो स्वयं बुढ़ापे का प्रतीक है दुःख का कारक है ज्ञान का नहीं। ज्ञान का कारक राहु है जो आदमी को अपने शासन काल में दर-दर भटका देता है। तो शायद चरैवेति चरैवेति का ही एक दूसरा रूप राहु में देखा जा सकता है। शंकराचार्य अगर परम ज्ञानी थे तो वे परम घुमक्कड़ होकर दर-दर भटके भी थे; और ये भटकना कुछ लोग मानसिक धरातल पर कर लेते हैं।
