गुरुवार, 29 नवंबर 2007
गूगल का स्काई
यहाँ देखिये इस फ़ीचर के बारे में गूगल की एक परिचयात्मक फ़िल्म..
बुधवार, 28 नवंबर 2007
आई आई टी से निकला ब्लॉग बुद्धि
माफ़ी चाहता हूँ बात शुरु होते ही बीच में चली गई। क्रम से बताता हूँ । कल शाम यानी बुधवार २७ नवम्बर को सात बजे से आई आई टी के सुरम्य प्रांगण में एक ब्लॉगर मिलन सम्पन्न हुआ। इस में शामिल होने वाले थे मेज़बान मनीष (जो स्वयं मुम्बई के मेहमान हैं) और विकास के अलावा अनीता कुमार, अनिल रघुराज, विमल वर्मा, प्रमोद सिंह, युनुस खान और मैं।
इसी निर्मल-आनन्द के बीच अनीता जी ने विकास को प्यार से झिड़का कि कुछ काम क्यूं नहीं करता और तुरन्त आज्ञाकारी बालक की तरह विकास ने अनीता जी के लाए नाश्ते/मिठाई को हम सब के हाथ में धकेल दिया। हम उन्हे इस को धन्यवाद दे रहे थे मगर उन्होने इसे अपने महिला होने का विशेषाधिकार कह कर टाल दिया।
(जिन्हे स्माइली की कमी महसूस हो रही हो वे कल्पना से यहाँ वहाँ टाँकते हुए चलें और जो खुले और छिपे रूप से स्माइली से चिढ़ते हैं वे देख सकते हैं कि उन्हे आहत करने योग्य यहाँ कुछ भी नहीं है!)
(तस्वीर में बाएं से दाएं: मनीष, अनिल भाई, युनुस, विमल भाई, विकास, प्रमोद भाई और कुर्सी पर अनीता जी)
तरल और सरल बातें तो बहुत हुईं पर एक ठोस बात ये हुई कि सभी ने अपनी तकनीकि कठिनाईयों का रोना रोते हुए पिछली ब्लॉगर मिलन में आशीष से की हुई गुज़ारिश और फ़रमाईश को याद किया। जिस पर विकास ने तपाक से इस काम को अपने दोनों हाथों से लूट लिया और देखिये उत्साही बालक ने काम शुरु भी कर दिया.. ब्लॉग बुद्धि नाम के इस ब्लॉग पर विकास पर अपने बुद्धि से जो विषय समझ आएंगे उस पर तो लिखेंगे ही साथ ही साथ आप सब की तकनीकि समस्याओं का समाधान भी करेंगे। आप को किसी भी प्रकार की तकनीकि तक्लीफ़ हो.. आप उन्हे मेल करें। वे हल मुहय्या करने की भरपूर कोशिश करेंगे ऐसा क़ौल है उनका..।
और हाँ विकास का नाम अंग्रेज़ी में Vikash लिखा ज़रूर जाता है.. पर पुकारने का नाम विकास ही है।
ये ब्लॉगर मिलन मेरे लिए इस लिए खास यूँ भी रहा कि मनीष ने बहुत कहने के बाद जब गाना नहीं गाया तो प्रमोद जी के कहने पर विमल भाई ने हमारे छात्र जीवन का एक क्रांतिकारी गीत गाया, मैंने और अनिल भाई ने साथियों की भूमिका ली। तन मन पुरानी स्मृतियों और अनुभूतियों से सराबोर हो गया। प्रमोद भाई को गाना याद था पर वे चुप रहे। बाद में उन्होने कहा कि उन्हे गाने के अनुवाद और धुन दोनों से शिकायत रही.. हमेशा से। आज जब विमल भाई ने इसे अपने ब्लॉग पर छापा तो मैंने ग़ौर किया कि तसले को बड़ी आसानी से थाली से बदला जा सकता है.. ह्म्म.. प्रमोद भाई की सटीक नज़र..
अनीता जी को दूर जाना था, उनसे फिर मिलने का वादा कर और विदा ले कर हम ने थोड़ा सा कुछ खाया-पिया और फिर चलने के पहले पवई झील के किनारे चाँदनी रात का कुछ लुत्फ़ उठाया!
क्योंकि हमारे पास दिमाग़ हैं!!!
आठ बच्चे एक दौड़ में भाग लेने के लिए ट्रैक पर तैयार खड़े थे.
रेडी! स्टेडी! धाँय!
एक खिलौना पिस्तौल के धमाके के साथ सभी आठों लड़कियाँ दौड़ने लगीं.
बमुश्किल वे दस पन्द्रह कदम ही दौड़े होंगे कि उनमें से सबसे छोटी फ़िसली और गिर गई, चोट लगी और दर्द के मारे रोने लगी.
जब बाक़ी सात लड़कियों ने ये रोना सुना, तो वे रुक गईं, एक पल को ठिठकी फिर मुड़ीं और गिरी हुई बच्ची के पास वापस लौट आईं.उनमें से एक ने झुक कर गिरी हुई बच्ची को उठाया, चूमा और प्यार से पूछा, ‘दर्द कम हो गया न’. सातों बच्चियों ने गिरी हुई बच्ची को उठाया, चुप कराया, उन में से दो ने गिरी हुई बच्ची को अच्छे से पकड़ा और सातों हाथ पकड़ कर विजय रेखा तक चलते चले गए.


अधिकारीगण सन्न थे. स्टेडियम, बैठे हुए हज़ारों लोगों की तालियों से गूँज रहा था. कई लोगों की आँखें नम हो कर शायद ईश्वर को भी छू रही थीं.
जी हाँ. यह हैदराबाद में हुआ, हाल ही में.
यह प्रतियोगिता राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान द्वारा आयोजित की गई थी.
प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी बच्चे स्पैस्टिक हैं. जी, मानसिक चुनौतियों से ग्रस्त.

सामूहिकता?
मानवता?
आपस में बराबरी?
सफल लोग उनकी मदद करते हैं जो सीखने में धीमे हैं, ताकि वे पिछड़ न जायँ. यह सच में एक बड़ा सन्देश है.. इसे फैलायें!
हम ऐसा कभी नहीं कर सकते क्योंकि हमारे पास दिमाग़ हैं!!!!
(इस प्रेरक प्रसंग का मैंने अनुवाद भर ही किया है अंग्रेज़ी से.. जिसे कपिलदेव शर्मा ने मेल में भेजते हुए आदेश दिया कि पब्लिश दिस.. ज़ाहिर है मैं आदेश टाल नहीं सका.. )