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मंगलवार, 8 जुलाई 2008

एकता की महाभारत

महाभारत की कहानी हर भारतीय के भीतर ऐसी रची-बसी है कि एक सहज उत्सुकता मेरे भीतर भी उमड़ रही थी कि मल्लिका-ए-सीरियल एकता कपूर इस महाकाव्य को क्या नया रंग प्रदान करती हैं। कल रात 'कहानी हमारे महाभारत की' का पहला एपीसोड प्रसारित हुआ। पहला नयापन तो उन्होने ये किया कि कहानी को दौपदी के चीरहरण से आरम्भ किया.. और स्त्री के अपमान और विनाश में उसकी भूमिका से जुड़े भारी-भरकम संवादों के ज़रिये कहानी को एक स्त्री-केन्दित झुकाव देने की कोशिश की। चलो ये उनका अपना संस्करण है..ठीक है।

मगर इस झुकाव को देने में वो इतना मशग़ूल हो गईं कि उन्होने कथानक से कुछ खटकने वाली आज़ादियाँ ले ली। जैसे कि दुःशासन का यह कहना कि द्रौपदी वो पहली नारी थी जिसके एक से अधिक पति थे। यह बात तथ्यात्मक रूप से ग़लत है।

प्राचीन समाज मातृसत्तात्मक समाज था। कुछ मातृसत्तात्मक समुदाय में स्त्रियाँ अपने घरों में अपनी माताओं-बहनों के साथ रहती थी। उनका अपना अलग कमरा होता जहाँ रात्रिकाल में उनके प्रेमी उनके साथ रमण कर सकते थे। ऐसी स्थिति में हर स्त्री के एक से अधिक प्रेमी होते। बच्चे माँ के घर में पैदा होते और वहीं पलते और पुरुष अभिभावक के रूप में मामा को पहचानते। चीन में कुछ कबीले ऐसे हैं जो अभी भी लगभग ऐसे ही सामाजिक नियमों के तहत रहते हैं।

हिमाचल और उत्तराखण्ड के पहाड़ों में भी स्त्रियों द्वारा कई पति रखने की प्रथा रही है। खैर.. एक शुद्ध साबुन बेचने के लिए सीरियल का निर्माण करने वाली निर्मात्री से मैं इतनी उम्मीद रखूँ ये नाजायज़ है। फिर एक दो और छोटी-छोटी चीज़े ऐसी थीं जो खटक गईं।

जैसे दुर्योधन को बताया जाता है कि महारानी श्रृंगार कर रही हैं जबकि मूल महाभारत में द्रौपदी रजस्वला होने के कारण एक वस्त्र में (तत्कालीन नियमों के अधीन) और खुले केशों में अपने शुद्ध होने के दिन की एकांत में प्रतीक्षा कर रही होती हैं।

जैसे दु:शासन का हाथ पकड़ कर द्रौपदी को खींचकर लाना मगर द्रौपदी का कहना कि ये दुष्ट मुझे बाल पकड़ कर लाया है।

जैसे दुःशासन द्वारा द्रौपदी के बाल पकड़ने पर और दुर्योधन के अपनी जंघा ठोंककर द्रौपदी को वहाँ बैठने का आमंत्रण देने पर भीम की दःशासन का सीना चीर कर उसका खून पीने की और दुर्योधन की जंघा तोड़ने की प्रतिज्ञा करना पूरे एपीसोड में ग़ायब रहा। इसी मौक़े पर द्रौपदी ने भी अपने बाल तब तक खुले रखने की प्रतिज्ञा की थी जब तक दुःशासन के रक्त से उन्हे धो न ले.. वह भी अनुपस्थित थी।

बाद में बोधिसत्व ने, जो इस सीरियल के रिसर्च और स्क्रिप्ट आथेन्टीकेटर हैं, बताया कि ये सिर्फ़ एक झलक था बाद में सब कुछ विस्तार से आएगा। उनकी बात सुनकर मैं आश्वस्त हुआ पर उनका क्या बोधिसत्व जिनके मित्र नहीं?

एपीसोड के आखिर में लहराती दाढ़ी विहीन मकरन्द देशपाण्डे महामुनि वेदव्यास के रूप में अवतरित हो कर मुझे चौंका गए.. व्यास के इस नए स्वरूप से अधिक भौचक्का करने वाला महाभारत के महाविनाश पर उनका प्रलाप था। अपनी उस चीखपुकार के कारण वो व्यास कम और धृतराष्ट अधिक लगे। व्यास भी एक चरित्र हैं महाभारत में.. पर प्रलाप उनकी चरित्र की गरिमा के परे है। बोधि भाई के पास इसका कोई उत्तर ज़रूर होगा।

वैसे भी ये सब छोटी-छोटी बाते हैं तुलसीदास ने राम़चरित मानस लिखते समय रामायण के बहुत से प्रसंगो के साथ आज़ादी ले ली थी। यहाँ तुलसी जैसा कोई आध्यात्मिक उद्देश्य तो किसी की निगाह में नहीं होगा पर व्यापारिक-आर्थिक उद्देश्य तो होगा। और पूरे महाभारत को आधे-आधे घंटे की अवधि की सीमाओं में तोड़ने से लेकर तमाम दूसरी सीमाएं भी होंगी। फिर भी हम शिकायत कर रहे हैं क्योंकि वह नहीं होगी तो भी ठीक नहीं..।

और आखिरी शिकायत हमारी द्रौपदी की लाज बचाने के लिए सुदर्शन चक्र के हैलीकॉप्टर की तरह आने और उसमें से उसकी रक्षार्थ साड़ी के रस्सी की तरह लटकने से हुई जो काफ़ी हास्यास्पद था। मैं एकता कपूर के विराट बालाजी प्रोड्क्शन्स से बेहतर स्पेशल इफ़ेक्ट की उम्मीद कर रहा था। क्योंकि जब मैंने पहले—पहल इस सीरियल के ट्रेलर्स देखे तो मैं बहुत प्रभावित हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी की कैलेण्डर आर्ट की अबाध पौराणिक परम्परा को पहली बार एकता कपूर ने तोड़ दिया।

भारी-भारी स्वर्ण जटित मुकुट और आभूषणों के भार से धँसे जा रहे तनों को एक सहज स्फूर्तता दे दी एकता ने अपने महाभारत में। जो सच में भारतीय आइकनोग्राफ़ी के लिए एक बड़ा क़दम है। पीटर ब्रूक ने अपनी महाभारत में ऐसा किया था। पर उनकी महाभारत एक एक्सपेरिमेंटल थिएटर था जबकि एकता की महाभारत शुद्ध बाज़ारू कसरत है। भारतीय पौराणिक छवि को वास्तविकता के क़रीब खींच कर उसने ये एक क्रांतिकारी क़दम उठाया है। और इस काम के लिए तो वो सचमुच बधाई की पात्र है।
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