बहुत-बहुत पहले सोचा हुआ होता था सत्य
फिर बोला हुआ हो जाता था सत्य
अभी हाल तक लिखा हुआ तो निश्चित होता था सत्य
अब समय ये है
कि सोचा हुआ सत्य नहीं
कहा हुआ सत्य नहीं
लिखा हुआ भी सत्य नहीं
तो क्या है सत्य?
मेधा के नए प्रवीण कहते हैं कि सत्य बँटा हुआ है
सब में सब जगह थोड़ा-थोड़ा
...
क्या सत्य भी बँट सकता है?
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सोमवार, 11 जनवरी 2010
मंगलवार, 2 जून 2009
बौद्धिक यायावर
कहा जाता है कि सत्य एक है, स्थिर है, अटल है, दुर्लभ है। उसके संधान के लिए अनुसंधान करने होते हैं, यत्न और अन्वेषण करने होते हैं। मैं ने अपने नन्हे स्तर पर सत्य की खोज की है, कर रहा हूँ।
ग्रंथो में, किताबों में, लोगों में, स्थानों में, अपनी बुद्धि के उपकरण को उठाकर मैं इतनी जगह भटका हूँ कि हाल ही में पाया कि मैं सत्य की खोज में एक बौद्धिक यायावर बन गया हूँ – एन इन्टेलेक्चुअल ड्रिफ़्टर।
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