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होता क्या है एडिक्शन..? किसी पदार्थ के सेवन की बार-बार तलब, चाहत, हुड़क ही तो लत पड़ जाना है। एक अनुभव के अनन्त काल तक पुनरुत्पादन की इच्छा। आप को कुछ जानी-पहचानी बात नहीं लग रही ये..? जीवित जगत का हर जीव-जन्तु अपने पुनरुत्पादन के ही काम में तो निरन्तर लगा हुआ है। कुछ जड़ पदार्थ मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर इस स्वभाव की अभिव्यक्ति करें तो यह चकित करने वाली बात ज़रूर है लेकिन प्रकृति के स्वभाव के अनुकूल ही है।
अस्तित्वात्मक दुविधा यह है कि आदमी इन पदार्थों के सेवन का प्रतिरोध कर के जीवन का समर्थन कर रहा है या प्राकृतिक स्वभाव का विरोध?