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गुरुवार, 17 जनवरी 2008

जहाँ पानी भी नहीं मिलेगा..

लीजिये पानी बोतल में तो बिक ही रहा था अब आप के घर में आने वाली पानी को भी निजी कम्पनियों के हाथों में सौंपने की योजनाओं पर अमल का काम शुरु हो चुका है। कोचाबाम्बा के अनुभव को दरकिनार कर के आम आदमी को ऐसी जगह ले जा कर मारा जा रहा है जहाँ पानी भी नहीं मिलेगा।

हिन्दुस्तान में इस की चर्चा मुम्बई और दिल्ली में होती रही है पर लागू हो रहा है सब से पहले कुन्दापुर कर्नाटक में। इस मूलभूत अधिकार- पानी- को मुनाफ़े का सौदा बनाने के लिए सबसे पहले नगर के सभी सार्वजनिक नलों का कनेक्शन काट दिया गया और अब हर नए कनेक्शन के लिए चार हजार रुपए का मूल्य रखा गया है। चार हजार!!?? ..सिर्फ़ पानी का कनेक्शन पाने के लिए.. और जो ये रक़म नहीं जुटा पाया उसका क्या होगा?

इस जन-विरोधी क़ीमत से अतनु डे भी खुश नहीं हैं जो खुद इस स्कीम की वकालत करते रहे हैं.. शायद वे निजी कम्पनियों से हमदर्दी की उम्मीद कर रहे थे। वैसे वो चिन्तित भी नहीं हैं; वे अभी भी अपने भोलेपन में इस क़ीमत को कम कर देने को बेहतर आर्थिक नीति बता रहे हैं। पर मैं पूछना चाहता हूँ कि अगर सर्वश्रेष्ठ आर्थिक नीति पानी के कनेक्शन की क़ीमत को लाख रुपये रखने की होगी तो क्या उसे ही लागू किया जाना चाहिये?
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