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बुधवार, 22 अगस्त 2007

रामजी करेंगे बेड़ा पार?

ज्ञान भाई की चिंता है कि सज्जनता की मूल्य की रक्षा होनी चाहिये। कोई गलत चिंता नहीं। जिस तरह से समाज में मूल्यों का ह्रास हुआ है। किसी भी मूल्य का कोई मूल्य नहीं रह गया। मैं तो समझ रहा था कि मनमोहन सिंह सज्जन हैं इस बात पर कोई सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता। मगर ज्ञान भाई की इस पोस्ट पर की गई टिप्पणी में संजय तिवारी ने उस पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। वैसे मैं व्यक्तिगत तौर पर मनमोहन जी का सम्मान और समर्थन करता हूँ। मगर राजनीति किसी के व्यक्तिगत सम्मान और समर्थन का मसला नहीं होता। वह तो नीतियों का प्रश्न है। जो भी विरोध और समर्थन होता है, वह नीतियों का होता है। और इस मसले पर जो विरोध हो रहा है वह पूर्णतया नीतिगत है, ऐसा मन मानना चाहता है।

लेकिन नाभिकीय समझौते जैसे पेचीदा मामले पर मेरी कोई जानकारी नहीं है। और कोई भी पक्ष लेने से पहले पता तो होना चाहिये कि आदमी किस बात का समर्थन/ विरोध कर रहा है? और मुझे इस की बारीकियाँ नहीं मालूम। फिर भी अनुभव से कहा जा सकता है कि अमरीका सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने हित में काम करता है। और जिस देश में पैर फैलाता है, उसे बरबादी की ओर धकेल देता है। अमरीका इस मामले में कितना हमारा हित-चिंतन कर रहा होगा, इस पर किसी को कोई शक़ नहीं होना चाहिये। और उसके किए वायदों पर कितना यकी़न किया जा सकता है इस के बारे में हमें अपने पड़ोसियों से बेहतर कोई नहीं बता सकता। जो आज तक अपने एफ़-१६ का इंतज़ार कर रहे हैं।

मगर दूसरी तरफ़ विरोध करने वालों पर भी नज़र डाल ली जाय। एक तरफ़ सीपीआई और सीपीएम हैं। जिनकी राजनैतिक बुद्धि की जितनी 'तारीफ़' की जाय कम है। सीपीएम चीन के आक्रमण के मुद्दे पर सीपीआई से टूट कर अलग हो गई थी। उन्हे चीन का पक्ष सही लगा था। आज कश्मीर में आज़ादी के सवाल पर चिंता व्यक्त करने वाले कैसे तिब्बत की आज़ादी के प्रति संवेदना नहीं रख पाए? (अक्साई चिन पर उनका दावा तिब्बत पर उनका दावा सिद्ध होने के बाद ही सिद्ध होगा।) और सीपीआई ने अपनी स्वतंत्र राजनैतिक सोच का परिचय तब दिया, जब पूरा देश तानाशाही का विरोध करते हुए इंदिरा गाँधी की इमरजेंसी के खिलाफ़ गोलबंद हो गया था। तो इस दल ने श्रीमती गाँधी का दमनकारी हाथ मज़बूत करने का निर्णय लिया था।

आज यह लोग इस मसले पर कितनी राजनैतिक परिपक्वता पर सोच रहे होंगे इस पर फिर मुझे गहरा संदेह है। तीन सालों से वे दिल्ली में बैठकर सत्ता की आग में हाथ भी सेंक रहे हैं और धुँए से भी बचे हुए हैं। उन्हे भी तो अपने मतदाताओं को जो कांग्रेस की प्रतिस्पर्धा में इन्हे वोट देते हैं, बताना है कि वे कांग्रेस के धुर-विरोधी हैं। आर्थिक नीतियों पर तो एक विनिवेश के मामले के सिवा सब मक्खन माफ़िक सर्र से निकला जा रहा है। मज़दूरों और छोटे-मझोले व्यापारियों के कपड़े उतारे जाने वाले बिलों को वे ध्वनि मत से पारित करते रहे हैं तो अब कुछ तो विरोध करना है ना। और इस बात की क्या गारंटी है कि वे इस समझौते में चीन की हानि ज़्यादा और अपने देश का हित कम देख रहें हो? और ये क्यों न मान लिया जाय कि अमरीका इस पूरे समझौते में में इसका ठीक उलट देख रहा हो-- हमारी शक्ति बढ़ाकर चीन के आकार को पिचकाने की एक कोशिश।

रह गई भाजपा, उस की बात न ही की जाय तो ठीक होगा। वे कब क्या कहेंगे और कब उसी से उलट जायेंगे कुछ तय नहीं। बस एक चीज़ से नहीं उलटते- अपने सतत मुसलमान-विरोध से। पिछले चुनाव में उस से भी उलटने का एक प्रयास दर्शाया था। धड़ाधड़ मुस्लिम सम्मेलन और आरिफ़ मोहम्मद खान तक को पकड़ लिया था। मगर हारकर अपनी पुरानी नीति पर लौट आए। तो उनके इस विरोध को गम्भीरता से न लिया जाय। ये माना जाय कि अगर सरकार गिर गई और खुदा न खास्ता उनके हाथ सत्ता लग गई। तो वे इसी समझौते को ससम्मान लागू करेंगे।

पत्रकारों, विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों में से किसी को भी अपने आप में मैं भरोसे के काबिल नहीं समझता? कौन किस स्वार्थ से बोल रहा है आप कैसे जानते हैं? क्या सचमुच सागरिका घोष को देश के हित की चिंता है या उन्हे और राजदीप को अपने सी एन एन वाले साझेदारों/ मालिकों की चिंता की चिंता है? रात को सोते समय उनके मानस पर अपनी घटती-बढ़ती टी आर पी का ग्राफ होता है या देश की ऊर्जा ज़रूरतों में नाभिकीय दखल की तार्किक ऊहापोह? इसलिए अपनी एक स्वतंत्र समझ न विकसित कर पाने और किसी दूसरे के मत पर भी विश्वास न धर पाने की सूरत में हम अपने आप को एकदम असहाय पा रहे हैं। हमें नहीं मालूम कि सही पक्ष क्या है।

तो हे प्रभु अब तुम ही सँभालना इस देश की नैय्या। एक पहलू और है जिसके बारे में ज़्यादा बात नहीं हो रही है, सुरक्षा का। इस देश के तीन बड़े गाँधियों की तो सुरक्षा कर नहीं पाए, इस संवेदनशील तत्व की लम्बे समय तक सुरक्षा कैसे होगी। यह सवाल भी रह-रह कर परेशान करता है। चेर्नोबिल अफ़्रीका के किसी देश में नहीं हुआ था। हे राम जी.. तुम्हारा ही सहारा है।

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