पहले बोलते थे- जै सिया राम! बोलते थे राम-राम! नाम भी होते थे राम सजीवन, राम पदारथ, राम खिलावन, राम कृपाल, राम गोपाल। जन-जन राम से ओत-प्रोत था, सराबोर था। लोग चुहुल में माँ को माताराम भी कहते। अल्पसंज्ञा और संज्ञाशून्य हस्तियों को भी नाम प्रत्यय से पुकारते थे, जैसे कुत्तेराम, और पेड़राम। अवसरवादी भी आयाराम-गयाराम की उपाधि ले कर राम का प्रसाद पा जाते। पिंजड़े में क़ैद मिट्ठू भी पहले सीताराम का पाठ ही सीखता।
लेकिन आडवाणी जी ने अपनी राजनीति खेलकर सब नरक कर दिया। अब लोग राम का नाम लेने में शर्माने लगे हैं। क्योंकि ‘जै श्री राम’ कहते ही एक साम्प्रदायिक फ़िज़ा तैयार हो जाती। क्रूर और हिंसक स्मृतियां कुलबुलाने लगती हैं। राम के नाम के साथ किए इस अपराध के लिए मैं निजी तौर पर आडवाणी जी को कभी माफ़ नहीं कर सकता।
पहले लोग ‘जै श्री राम’ नहीं ‘जै सिया राम’ बोलते थे। पहले पद में ‘सिया’ को निकाल कर बाहर कर के राम के मर्यादा पुरुषोत्तम छवि पर जो धब्बा है वह और गहरा गया है। जबकि ‘जै सिया राम’ में राम के अपराध के प्रति एक विद्रोह है कि राम जी भले आप ने सीता मैया को निकाल दिया हो, हम तो उन्हे हमेशा याद करेंगे और आप के पहले याद करेंगे।
जै सिया राम!
यह कहते हुए सीता को हम राम से वापस मिला देते हैं और राम की छवि को निर्मल बना देते हैं।