मंगलवार, 27 नवंबर 2007

असली आतंकवादी!

चूँकि आतंकवाद मासूम लोगों को अपना निशाना बनाता है, जो बूढ़े बच्चे औरतें कोई भी हो सकते हैं और होते हैं इसीलिए दुनिया के सारे भले लोग मज़हब के नाम पर गुमराह हो गए इन आतंकवादियों के खिलाफ़ हैं। वार मेड ईज़ी नाम की फ़िल्म कुछ ऐसे आँकड़े की चर्चा करती है जिस से आप कुछ अलग सोचने पर मजबूर हो सकते हैं.. यहाँ पर फ़िल्म के कुछ फ़्रेम्स देखिये..



इस वेब साइट के हवाले से इराक़ में अब तक ११,१८,८४६ लोग मारे जा चुके हैं.. और जिस में से सिर्फ़ दस प्रतिशत ही सैनिक थे.. शेष मासूम जनता यानी लगभग दस लाख निर्दोष लोग अमरीकी आतंकवाद का निशाना अकेले इराक़ में बन चुके हैं। अल क़ाइदा, जैश और लश्कर तो बुश जैसे असेम्बली लाइन हत्यारों के आगे चरखा-हथकरघा हैं।
९/११ में २९७३ लोग मारे गए थे जिसमें ग़ैर-अमरीकी लोग भी शामिल थे जबकि इराक़ युद्ध में अब तक मरे अमरीकी सैनिकों की आधिकारिक गिनती २९७४ के पार जा चुकी है। अनाधिकारिक गिनती कहीं ज़्यादा है। और एक अन्य आकलन के अनुसार इतनी धनराशि खर्च हो चुकी है कि अगर उसे आम अमरीकियों के बीच बराबर बाँट दिया जाय तो हर एक के हिस्से में दस हज़ार डॉलर आएंगे!
इतनी जान-माल की क्षति आखिर 'अमरीका' आखिर किस के लिए उठा रहा है.. सच तो यह है कि अमरीका कह कर हम जिसे पुकारते हैं उन अमरीकी कॉर्पोरेशन्स को अपने अमरीकी नागरिकों की ही परवाह नहीं हैं इराक़ियों और अफ़्गानियों को तो वे कहीं गिनते ही नहीं.. वे सिर्फ़ अपना मुनाफ़ा गिनते हैं।

10 टिप्‍पणियां:

  1. असली आतंकवादी किसी और रूप में विश्व भर में अपने आतंक का साम्राज्य चला रहा है, शिकार बन रहा है आम इंसान !

    विश्व युद्ध की आग में जल रहा,
    मानव का ह्रदय सुलग रहा !!

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  2. कुछ तथ्‍य, जो विभिन्‍न स्रोतों से ज्ञात हुए हैं :

    - जब न्‍यू अर्लिंएंस में हर्रिकेन कैटरीना तूफान आया था, उस समय लोगों की मदद के लिए वहां कोई फोर्स नहीं थी, क्‍योंकि सबको इराक में झोंका जा चुका था और बुश खुद छुट्टियां मना रहे थे।

    - इराक युद्ध के समय अरुंधती रॉय ने न्‍यूयॉर्क में इस सबके विरोध में एक भाषण दिया था, जो बाद में हिंदी अनुवाद में भारत की कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुआ, लेकिन न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स और वॉशिंगटन पोस्‍ट समेत अमरीका के किसी भी अखबार में अरुंधती के आने और उनके उस भाषण की कोई कवरेज नहीं हुई, एक लाइन तक नहीं।

    अमरीका नई पीढ़ी के सपनों का देश है, सबके अरमानों का देश। खून, हत्‍या और लूट की संस्‍कृति का देश। तीसरी दुनिया के गरीब अभावग्रस्‍त मुल्‍कों की रीढ़हीन नई पीढ़ी की आत्‍मा पर मालिकाना हक रखने वाला देश। इस देश में आज भी करोड़ों होंगे, जो आपके इस लेख से सहमत नहीं होंगे, जो इराक, मुसलमान और आतंकवाद को एक-दूसरे का पर्याय मानते हैं। मेरे जानने वालों में ऐसे बहुतेरे हैं। हिस्‍ट्री चैनल देखकर दुनिया और इतिहास के बारे में अपनी राय कायम करने वाले।

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  3. जो आंकड़े आपने दिए है वो युद्ध और आतंकवाद की विभीषिका दर्शाते है और ये भी परिलिक्षित होता है की किस तरह से मरने वालों मे आम इंसानों की संख्या निरंतर बढ़ रही है. क्या पता कब इस स्थिति मे सुधर होगा?

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  4. इसलिए इस्लामिक आतंकवाद जायज है?

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  5. नहीं आतंकवाद तो नाजायज़ ही है संजय जी.. पर इस्लामिक आतंकवाद का विरोध करते-करते कहीं ज़्यादा बड़े आतंकवादी अमरीका का समर्थन करने लगना नाजायज़ है।

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  6. हर वक्त की अपनी बेवकूफियां होतीं हैं, जिन पर समाज नाज करता है... कुछ साल पहले ये जाति और धर्म के आधार पर होता था और आज देश के नाम पर ... आज के दौर मे कोई देश के नाम पर १० लाख लोगों का कत्ल करके भी उदार बना रहता है जबकि धर्म के नाम पर १ व्यक्ति की हत्या उसे अंधविश्वासी और कट्टर घोषित करने के लिए काफ़ी हैं ...
    जरूरत धर्म की भी है , जाति की भी रही होगी और देश की भी ...पर इसका मतलब और इनसे लगाव की कीमत हमें ख़ुद ही तय करने होंगे.....

    मनोज

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  7. इन तथ्यों के आधार पर अमेरिकी राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी कहा जा सकता है। लेकिन उसे न सिर्फ अमेरिका के नागरिकों का, बल्कि दुनिया के बहुत से राष्ट्रों की सरकारों का भी अंध समर्थन हासिल है।

    बुश, मोदी, बुद्धदेव जैसे उदाहरण दर्शाते हैं कि लोकतंत्र किस सहजता से आतंकवाद को वैधता प्रदान कर सकता है।

    जन चेतना के जागरण और नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के बगैर लोकतंत्र की प्रणाली किस प्रकार सत्ता के महत्वाकांक्षी लोगों द्वारा दुनिया को विनाश की ओर ले जाने का माध्यम बनती जा रही है, यह हम समझ सकते हैं।

    आज के दौर में विश्व के उन सभी नागरिकों को, जो खुद को नैतिक और स्वतंत्र समझते हैं, हर प्रकार के आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिए। कम से कम इंटरनेट पर ऐसे करोड़ों नेटिजन अपनी अलग पहचान और आवाज तो जाहिर कर ही सकते हैं।

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  8. इराक के आंकड़े ( यानि 90%) तो सचमुच चिन्ताजनक है। इसका मतलब दुनियाँ का सबसे बड़ा आतंकवादी बुश को ही क्यों ना कहा जाये?

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  9. जीवन मे अधिकतर दो खराब वस्‍तुओ मे से कम खराब वस्‍तु को चुनना पडता है।
    भारत के हिसाब से कम खराब अमेरिका लगता है।

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