सोमवार, 27 अगस्त 2007

विनोद-विलास

नीत्शे की किताब बियॉन्ड गुड एन्ड ईविल के बारे में मैंने पिछली पोस्ट में चर्चा की थी.. आज उसी किताब के चौथे अध्याय Epigrams and Interludes से कुछ और जुमले पेश कर रहा हूँ--

८३

सहज-वृत्ति (इन्सटिंक्ट) --जब घर में आग लगी हो तो आदमी को खाने-पीने की सुध नहीं रहती-- सही है, पर बाद में राख के ढेर पर खाया जाता है वही खाना।

९२

अपनी प्रतिष्ठा के लिए किसने एक बार भी नहीं दिया है अपना बलिदान?

९७

क्या? महान व्यक्ति? मुझे तो हमेशा अपने आदर्श का अभिनेता भर दिखाई पड़ता है।

९९

निराशा की आवाज़: "मैंने सुनना चाही एक अनुगूँज और सुनाई दी सिर्फ़ प्रशंसा--"

१२०

ऐंद्रिकता अक्सर प्रेम को इतनी तेज़ी से विकसित कर देती है कि उसकी जड़ें कमज़ोर रह जाती हैं और आसानी से उखड़ आती हैं।


4 टिप्‍पणियां:

  1. लग रहा है पुस्तक ही खरीदनी पडेगी.

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  2. अरे अभय भाई क्या करते हॊ..तुंम भी ..? हम तो गिनती देख समझे थे की ७०/८० तो होगी ही कम से कम ..ये तो १०% भी नही निकली..पर बढिया थी..

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  3. मेरे भाई अभय,

    बढ़िया लगा इस पुस्तक के बारे मे खबर....

    तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.

    समझ सकते हो न!!! अब यही तो माहौल है. :)

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